सिलिकोसिस बीमारी से सिलसिलेवार मौतों के आगोश में झोंसर के ग्रामीण

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334झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
एक वर्ष में परिवार के तीन कमाऊ सदस्यों की मौत हो जाने से परिवार टूट सा गया। वही बूड़ी मां भी अब अंतिम सांसे गिन रही है। परिवार में एक बहन और पत्नी के साथ दो छोटे बच्चे हैं, इस परिवार का अब आगे क्या होगा कोई नहीं जानता है। एक वर्ष में परिवार के तीन सदस्यों की मौत सिलिकोसिस बीमारी से हुई जिसमें 25 वर्षीय युवक कलसिंह हुरसिंग मुणिया की मृत्यु तीन दिन पहले हुई, वही पिता हुरसिंग एक वर्ष पहले बीमारी से लड़ता हुआ काल के गाल में समां गया तो 20 वर्षीय भाई अमरसिंह भी बीमारी के चपेट में आने से 6 माह पूर्व ही दुनिया छोड़ गया। परिवार के तीन सदस्यों की मौत सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमार से हुई तो मां भी इसी बीमारी की चपेट में आकर जिंदगी-मौत से संघर्ष कर रही है।
सिलिकोसिस बीमारी रोजगार जुटाने के लिए गुजरात जाने वाले लोगों को तोहफे के रूप में मिलती है और वे कुछ समय में ही बीमारी से लड़ते मौत को गले लगा लेते है। यह एक परिवार की नहीं क्षेत्र के कई परिवारों की कहानी भी इसी तरह की है। इस प्रकार गुजरात की पत्थर की फैक्ट्रियों में काम करने वाले हजारों मजदूरों के साथ हुआ है, कई परिवार तबाह हो गए हैं तो कई तबाह होने की कगार पर है।
झोंसर में एक परिवार के 10 सदस्यों की मृत्यु-
इस प्रकार का घटनाक्रम ग्राम झोसर के मुणिया परिवार के साथ भी हुआ है, जिसमें 5 वर्ष में सिलिकोसिस बीमारी से मुणिया परिवार के 10 सदस्यों की मृत्यु हो गई है, जिसमें रमेश मडिया 25 वर्ष, पांच वर्ष पूर्व, पारसिंग 21 आयु 3 वर्ष पूर्व, 21 वर्षीय राजू तीन वर्ष पूर्व, 23 वर्षीय कमल 3 वर्ष पूर्व, 19 वर्षीय गुड्डी , 19 काली, 18 वर्ष की कमला सभी दो वर्ष पूर्व, मडिया 50, जेमाल 24 वर्ष पूर्व और कमल 20 वर्ष छह माह पूर्व मौत के आगोश में समां गए। अब झोंझर के मुणिया परिवार में एक महिला ही जीवित है।
मदद के नाम पर सिर्फ सरकारी दिलासे-
बीमारियों से लड़ते आदिवासियों को मदद के नाम पर शासन द्वारा कोई सहायता नहीं दी गई है। आज तक परिजनों को शासन की ओर से कुछ नहीं मिला है, काम करने वाले फैक्ट्री मालिकों ने भी कोई सहायता नहीं दी है। काम करते करते बीमार होने पर उन्हें काम से निकाल दिया जाता है और अपने घर आकर ग्रामीण अपने खर्च पर अपना इलाज करना प्रारंभ करते है किन्तु इलाज से भी कोई लाभ नहीं होता है और मौत के आगोश में तपड़ते-सिसकते समां जाते है। यह 2 परिवार है किन्तु पेटलावद तहसील में ऐसे लगभग 30 परिवार है जिन्होंने गुजरात की फैक्ट्रियों में काम करते हुए अपने परिजनों को खोया है।
सहायता के नाम पर सिर्फ कोर्ट में केस –
सरकार के द्वारा इन गरीबों की वास्तविक पहचान के लिए कोर्ट में चल रहे केस को लेकर पिछले दिनों वरिष्ठ जजों की एक टीम पेटलावद क्षेत्र में आई थी और बयान लेकर चली गई। टीम के जाने के बाद दो ओर लोगों की मौत हो गई है। आखिर यह मौत का सिलसिला कब तक चलेगा और परिजनों को सहायता कब मिलेगी? कई परिजन तो सरकार की मदद की आस में ही अपना जीवन चक्र समाप्त कर चले गए किन्तु कोई सुध लेने वाला नहीं मिला।
फैक्ट्रियों पर आखिर कार्रवाई कब?
अवैध रूप से गुजरात में संचालित इन फैक्ट्रियों पर कार्रवाई कब होगी। रोजगार के नाम पर आदिवासियों के जीवन से खेलने का यह कुचक्र कब रुकेगा। आखिर सरकार में बैठे नुमांइदे इस और ध्यान कब देंगे। ऐसे ज्वलंत सवाल जब पीडि़तों से मिलने कोई जाता है तो उनकी आंखों में देखे जा सकते है। एक बूढ़ी मां का कहना है कि मेरे परिवार के 10 लोग मर गए यदि अब मुझे सरकार सहायता भी देती है तो मैं उसका क्या करूंगी? आखिर मेरे पास अब कौन बचा है?
परिवार में कमाने वाला कोई नहीं-
मेरे पति और दो जवान बेटे इस बीमारी की चपेट में आ कर मर गए और मैं भी अब मौत का इंतजार कर रही है। मेरी बहु और दो छोटे बच्चे है। अब इनका क्या होगा यही दर्द सताता है। परिवार में कमाने वाला कोई नहीं।
– अमरी बाई मुणिया, बीमारी महिला ग्राम उन्नई
कई बार शासन प्रशासन को गुहार लगा कर सहायता दिलवाने की मांग की गई किन्तु आज तक कोई सहायता नहीं मिली। पंचायतों के अधिकार में जो आता है वह सहायता दी गई है।
-देवा भाई, सरपंच ग्राम पंचायत उन्नई
हमारे गांव में पूरे परिवार के परिवार तबाह हो गए किन्तु कोई सुनने वाला नहीं है, हर बार कोई न कोई अधिकारी जांच के लिए आते है किन्तु लाभ कुछ नहीं होता है। हम देख रहे है एक एक कर सभी लोग मौत की ओर बढ़ रहे है।
राजू भाई, ग्रामीण मातापाड़ा.

अब सुनो जिम्मेदारों की-
स्पेशल टीम जानकारी जुटाने आई थी उस समय हम उनके साथ सहयोग करने गए थे। इसके बाद सहायता को लेकर अभी तक कोई निर्देश नहीं मिले है, जो भी निर्देश मिलेंगे उस अनुसार सहायता की जाएगी।
-सीएस सोलंकी, एसडीएम

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