भगवान की भक्ति निस्वार्थ होनी चाहिये संत रविदास जैसी होना चाहिये–संत रघुवीरदास

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थांदला आज भगवान की भक्ति दिखवा बन गई है हर कोई अपने धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में प्रदर्शित करना चाहता है मन्दिरों में पुजा दर्शन में व्यक्ति भगवान के समक्ष अपनी लम्बी चोडी निजस्वार्थ की लिस्ट प्रकट कर इसके बदले भगवान को चढावा चढाने की बात करता है भगवान व्यापारी नही दयालु है । उसकी पुजा दर्शन निजस्वार्थ बिना किसी माॅंग के करना चाहियें ।
भक्त संत रविदास के प्रंसग की विस्तृत व्याख्या करते हूए संत रघुवीरदासजी ने स्थानिय हनुमान मन्दिर बावडी पर आयोजित तृतीय दिवस की श्रीमद भागवत कथा में बताया की रविदास अपने चर्मकार व्यवसाय के साथ हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते थे उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान ने उनका आतिथ्य सत्कार कर पारस मणी देने की पेश कश की चमडे काटने की रापी को पारस का स्पर्श करवाकर स्वर्ण की रापि में परिवर्तित किया लेकिन भक्त रविदास ने उसे उठाकर गंगा जी में प्रवाहित कर दिया ।
अपनी विस्तृत व्याख्या में संत श्री ने बताया की कुछ अंतराल के बाद पुनः संत रविदास की आर्थिक स्थिति को देखने स्वंय भगवान आये और रविदास को दिये गये पारसमणी के सबंध में पुछताछ करने पर उन्होने बताया आपका पत्थर जहाॅं रख गये वही है अरे वह रापि जिसे आपने स्वर्ण में परिवर्तित की मेरी कोई काम की नही होने से मेंने गंगाजी में प्रवाहित कर दी । उसके बाद पुनः भगवान ने अपने भक्त रविदास की पुजा में रखे शालीग्राम के निचे नियमित स्वर्ण मुद्राए दी लेकिन अंत रविदास उन्हे भी लगातार प्रतिदिन गंगा जी में प्रवाहित करते रहे । अंत में ईश्वर को रविदास जैसे निस्वार्थ भक्त के समक्ष नतमस्तक होना पडा ।
तुतीय दिवस की कथा बडी संख्या में श्रेातागण उपस्थित थे ।

भारत में सबसे ज्यादा गाॅंव भीम के नाम पर -संत रघुवीरदास जी

भीम भगवान शिव का ही अवतार थे महाभारत काल में पाण्डवों ने बारह बारह वर्ष के दो वनवास भोगे जिनमें देश के कोने तक भ्रमण किया आज भी देशभर में भीम के नाम से गाॅंवो के नाम सबसे ज्यादा है तथा उनके पद चिन्ह प्रमाणिकता की जल सरंचनाॅए आज भी स्थित है ।सूदूर इस वनवासी अंचल में गाॅंव का नाम भीमकूण्ड होने यह प्रमाण है इस क्षैत्र का सबंध भगवान श्री कृष्ण और पाण्डवों से है । आदिवासी और भगवान शिव जिन्हे भी हम आदि देव कहते है दोनो में आदि शब्द हजारों वर्षो से चला आ रहा है जिनका कूछ तो सबंध है हम राम , कृष्ण , शिव की परम्परा वाले लोग है भगवान राम शबरी भीलन माता के घर गये थे। उक्त उदगार भागवत कथा के निमित थांदला में विराजमान संत रघुवीरदास ने देर सायं समीपस्थ ग्राम भीमकूण्ड में उपस्थित ग्रामवासीयों से धर्म चर्चा करते हूए व्यक्त किये ।
संत श्री ने दोपहर मे कथा स्थल से व्यासपीठ पर जाने के दौरान भीमकूण्ड शब्द सुना और जानना चाहा इस पर देर सांय भीमकूण्ड गाॅंव पहॅूंचने की इच्छा जताने पर देर रात्रि पहॅूंचेे। इस अवसर पर ग्रामवासीयों माता बहनो के व्दारा बडी संख्या में मंगल गीत भजन गाकर संत श्री की आगवानी और पुष्प माला से स्वागत किया । इस अवसर पर बडी संख्या में उपस्थित ग्रामवासीयों से धर्म चर्चा में सनातन हिन्दू धर्म को गाॅंव गाॅंव तक पहूचने की पद्धति बताते हूए कहाॅ की जिसने कभी धर्म ग्रंथ नही पढा जो पढना नही जानता था लेकिन जिन्होंने अपने पूर्वजों के संस्कारों को पीढीदर पीढी ग्रहण किया है निभाया है और आने वाली पीढी को भी बतातें आ रहे उसी से यह धर्म संस्कार आदिकाल से बढता चला आ रहा है । हम सब हिन्दू है हमारे पूर्वज प्रकृति की पूजा का संस्कार हमें दे कर गये है । हम अपने परिवार व्यवस्था में गोत्र को मानते है अपने भाई बंद के बीच विवाह संस्कार सबंध नही करते है यही तो आदि संस्कार है सनातन हिन्दू संस्कार है जो हममें प्राचीन हिन्दू रिती से चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेंगा । । इस अवसर पर विरसिंग बामनिया, गलिया अमलियार,लूंजा अमलियार,कसना राठौर,पंुजा वानिया, मोहन वानिया,मुकेश बामनिया,बसु अमलियार,झीतरा अमलियार,कसना अमलियार, रतलाम-धार विभाग के जनजाति कार्य प्रमुख कैलाश अमलियार, संकूल प्रमुख बंदसिंग कतिजा, गेंदालाल भाभर, हिरा अमलियार,केथरी नरवलिया,भुरी अमलियार,मनीषा बामनिया,लक्ष्मी बामनिया,पार्षद रोहित बैरागी,मुकेश पंचाल , दिलीप पंचाल,महेश प्रजापत, जसवंत बामनिया,मकना अमलियार, सही बडी संख्या में ग्रामवासीगण उपस्थित थे ।

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