कॉलेज में जनजातियों के आधुनिक तकनीकी के प्रभाव एक दिनी सेमिनार आयोजित

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झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने महाविद्यालय में जनजातियों के आधुनिक तकनीकी का प्रभाव पर एक दिवसीय संगोष्ठी सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विधायक एवं जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष कलसिंह भाबर, विशेष अतिथि नगर परिशद अध्यक्ष बंटी डामोर, जनपद अध्यक्ष राजेन्द्र भगत, पूर्व नगर परिषद उपाध्यक्ष अशोक अरोरा, भाजपा युवा मोर्चा जिला महामंत्री संजय भाबर, डॉ. सुनील गोयल, डॉ. यशपाल व्यास आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. संघवी ने की। सरस्वती वंदना पूर्वा जैन तथा उपासना कटारा ने प्रस्तुत की। इसके बाद स्वागत नृत्य दीपिका मैड़ा व भावना पारगी ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत पुष्पहारों से महाविद्यालय परिवार द्वारा किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ. मीना मावी ने विस्तार से प्रस्तुत की। साहित्यकार डॉ. सीमा शाहजी ने जिले की आदिवासी महिलाओं पर अपनी रचना प्रस्तुत की। स्वागत भाषण प्राचार्य डॉ. संघवी द्वारा दिया गया। विधायक भाबर ने कुरीतियों को खत्म करने तथा संस्कृति को विकसित करने पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि आदिवासी रीति रिवाज के पीछे वैज्ञानिक तथ्य जिसको समझने का प्रयास करें। नकारात्मक विचारों को छोडक़र सकारात्मक विचारों को अपनाए। नगर परिषद अध्यक्ष बंटी डामोर ने कार्यक्रम के लिए शुभकामनाएं दी। कार्यक्रम में उपस्थित संजय भाबर ने कहा कि शासन ने किसानों के लिये तकनीकी संसाधन विकसित कर खेती को बेहतर बनाया है। कृषि व अन्य संसाधनों के शोधकर्ताओं से आग्रह किया है कि आज हमारा समाज ट्रायबल होते हुए समाज की विचारधारा भारतीय अवधारणा के माध्यम से पाश्चात्य अवधारणा से न हो। हमारी संस्कृति बनी रहे। तकनीकी का बिंदु बिजली विहीन जैसे जीवन जीना संभव नही है। बिजली के बिना मृत्यु भी संभावित है। ऐसा उदाहरण उन्होने दिया। डब्ल्यूएचओं रिपोर्ट अकाल मृत्यु बिजली के न मिलने के बिना भी संभव है। ऐसा ही एक उदाहरण 1990 के करीब पूर्व सांसद दिलीप भूरिया के बारे में भी बताया कि उस समय षिक्षा व प्रौद्योगिकी का विकास न होने के कारण अपराध बहुत ज्यादा थे, जिसकी वजह से प्रदेष की सभी जेलो में अपराध सबसे ज्यादा जनजातीय समाज के थे, उसमें झाबुआ जिले के सबसे ज्यादा थे। उस समय शिक्षा, शराब और कुरीतियों के प्रति जनजागृति अभियान चलाया गया और जेलो में जाकर भी उन्हे सुधारने की कोषिष की गई, जिससे शिक्षा के अच्छे स्तर पर झाबुआ जिले के जनजाती आदिवासी समाज है। इसके साथ ही कवि गुलजार की कविता का उन्होने उदाहरण दिया कि किताबे हमारी सबसे अच्छी दोस्त है, तकनीक ज्ञान के साथ बनी रहे, उसका दुरूपयोग न हो। डॉ. प्रदीप संघवी ने राज योग मेडिटेषन पर अपने विचार रखे। डॉ. षिवराजसिंह मुवेल ने जनजातियों का विकास कैसे हो, विषय पर प्रकाश डाला। तत्पष्चात आषा ठाकुर, प्रो. रमेश चौहान, प्रो. अरविंद कुमार सोनी, दुर्गा चौहान, मंगला गरवाल, अभिषेक सिंह, उत्तम मीणा, डॉ. सोहन पाटीदार, डॉ. केएस बघेल ने अपने शोध पत्र पढ़े। महाविद्यालय के छात्र पुरसिंह वसुनिया ने अनुसूचित जाति का विकास कैसे हो, इस पर प्रकाश डाला। शोध सेमिनार में लगभग 200 शोधार्थियों ने विभिन्न महाविद्यालयों से सहभागिता की। पीपीटी सत्र का संचालन डॉ. सुनील गोयल प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र शासकीय महाविद्यालय अंजड़ जिला बड़वानी ने किया। शोधार्थी काजल जायसवाल ने पीपीटी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त स्टाफ एवं कर्मचारियों का सक्रिय सहयोग रहा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मीना मावी तथा आभार डॉ.जीसी मेहता ने व्यक्त किया।

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