अर्पित चौपड़ा, खवासा
यह प्रतिष्ठा प्रतिमा की प्रतिष्ठा नहीं बल्कि हमारे जीवन और हमारी आत्मा की प्रतिष्ठा है। मंदिर, गांव और घर के साथ हमे अपनी आत्मा को भी सजाना है, यदि हमने अपनी आत्मा को नहीं सजाया तो यह सब व्यर्थ हो जाएगा। प्रतिष्ठा के माध्यम से हमे अपनी आत्मा को सजाना है तभी हमारा यहाँ आना सार्थक होगा।
उक्त उद्गार परम पूज्य, धर्म दिवाकर, अखण्ड सूर्यमंत्र आराधक, गच्छाधिपति, अचार्यदेवेश श्रीमद विजय नित्यसेन सूरीश्वरजी ने खवासा में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि हमे उत्साह में उपयोग, विवेक और प्रभु आज्ञा का ध्यान रखना है। हमें अपने अंदर की अशुध्दियों को दूर करना है। अपने अंदर जो मान-सम्मान का रोग लगा हुआ है उसे खत्म करना है तभी यह प्रतिष्ठा सार्थक हो पाएगी। धर्मसभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ मुनिराज वीररत्न विजयजी ने कहा कि विवेक बिना मनुष्य जानवर के समान है। बिना विवेक के मनुष्यों की भीड़ जानवरों के झुंड के समान है। मानव जीवन में ही हम आत्मा का कल्याण कर सकते है। परमात्मा का हम पर असीम उपकार है उस उपकार को हमे नहीं भूलना है। यदि हम उस उपकार को भूल गए तो हमे 84 लाख योनि में भटकना पड़ेगा। धर्मसभा को मुनिराज चारित्ररत्न विजयजी मसा और प्रसन्नसेन विजयजी मसा ने भी संबोधित किया।
हुआ भव्य मंगल प्रवेश
भगवान मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय में प्रतिष्ठा करवाने के लिए परम पूज्य, धर्म दिवाकर, अखंड सूर्यमंत्र आराधक, गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद विजय नित्यसेन सूरीश्वरजी मसा, वरिष्ठ मुनिराज वीररत्न विजयजी मसा, मुनिराज चारित्ररत्न विजयजी मसा, मुनिराज प्रसन्नसेन विजयजी मसा, मुनिराज तारकरत्न विजयजी मसा एवं मुनिराज निर्भयरत्न विजयजी मसा ठाणा 6 का भव्य मंगल प्रवेश खवासा नगर में हुआ। बैंडबाजों, ढोल और शहनाई के साथ समाजजनों और ग्रामवासियों ने मुनिमंडल की अगवानी की। प्रवेश जुलूस में बालिकाएं एवं महिलाएं सिर पर कलश उठाकर चल रही थी। जगह-जगह अचार्यदेवेश की गहुली की गई। प्रवेश करते हुए मुनिमंडल नवनिर्मित मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय पहुँचे जहां भगवान के दर्शन-वंदन करने के बाद प्रवचन पंडाल पहुंचकर धर्मसभा को संबोधित किया।

