नंगे पैर दहकती आग और दहकते अंगारों से गुजरे मन्नतधारी

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शान ठाकुर, पेटलावद

क्षेत्र में वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते कई स्थानों पर ‘चुल कार्यक्रम’ का आयोजन हुआ। जहां सैकड़ो मन्नतधारियो ने दहकती आग और दहकते अंगारों से गुजर कर अपनी मन्नत पूरा होने पर हिंगलाज माता का धन्यवाद दिया। दरसअल होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी की शाम पेटलावद के ग्राम करवड़, टेमरिया, रायपुरिया सहित कई स्थानों पर वर्षों पुरानी परंपरा अनुसार चुल कार्यक्रम आयोजित हुए। जिसमें मन्नतधारियो ने दहकती आग और अंगारों पर चलकर हिंगलाज माता को धन्यवाद दिया। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति हिंगलाज माता को साक्षी मानकर मन्नत लेता है तो उसकी हर मन्नत पूरी होती है। फिर मन्नतधारी आग और अंगारों पर चलकर अपनी मन्नत पूरा होने पर हिंगलाज माता का धन्यवाद देते हैं। यह परंपरा क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही है। जिसका आज भी क्षेत्र में निर्वहन किया जा रहा है। मन्नतधारियो की माने तो जब वह दहकती आग और अंगारों से गुजरते हैं तो उन्हें किसी भी तरह की चोट या दर्द नहीं पहुंचता है। उनके लिए अंगारे भी माता हिंगलाज के आशीर्वाद से फूल बन जाते हैं। मन्नतधारियों में बच्चे, बुजुर्ग, महिला शामिल होते हैं। यह पूरा नजारा पुलिस प्रशासन की आंखों के सामने होता है। पुलिस प्रशासन की और से सुरक्षा के पुख्ता इंतेजामत किए जाते हैं। कार्यक्रम में क्षेत्र से हजारों लोग पहुंचकर कार्यक्रम के साक्षी बने।

इसी के साथ क्षेत्र में गल का आयोजन भी हुआ। जिसमे ग्रामीण अपनी मन्नतें उतारने तथा गल पर्व में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे और फिर शुरू हुआ मन्नत उतारने का दौर। मन्नतधारी लाल-पीले वस्त्र पहनकर आए और उन्होने अपने शरीर पर हल्दी लगा रखी थी। सर्वप्रथम मन्नातधारियों ने गल देवता की नारियल चढ़ाकर तथा अगरबत्ती लगाकर पूजा-अर्चना की। इसके बाद गल पर चढ़ने का दौर शुरू हुआ। लगभग 30 फीट ऊंचे गल पर बंधी लकड़ी पर मन्नातधारियों ने लटककर चारों ओर घूमकर अपनी मन्नातें उतारी। किसी ने सात बार तो किसी ने 11 बार घूमकर मन्नात उतारी। वहीं ढोल-मांदल की थाप पर नृत्य भी किया गया। पेटलावद क्षेत्र में रायपुरिया में गल का आयोजन हुआ।