कर्मो का क्षय करने के लिए जीव को पुरुषार्थी बनना पड़ता है : मुक्तिप्रभाजी

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
धर्म कार्य के लिए समय नहीं है मनुष्य समझता है कि समय बहुत है लेकिन समय खिसकता चला जाता है। पर्युषण महापर्व आठ दिनों का धर्म का मेला है इसलिए इन दिनों कर्मो का क्षय करने के लिए जीव को पुरुषार्थी बनना पड़ता है। संसार में तीन सत्ता है राजसत्ता, कर्मसत्ता और धर्मसत्ता थोड़े समय में राजसत्ता की प्राप्ति के लिए उचित अनुचित सभी तरीके अपनाये जाते है लेकिन क्या राजसत्ता सुख देती है जितना बड़ा पद उतनी स्वतंत्रता का अंत होता है। उक्त उदगार स्थानक भवन में विराजित महासती मुक्तिप्रभा जी ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कर्म मोह से उत्पन्न होते है और मोह ममता के कारण जीव चाहकर भी पूरी धर्म आराधना नहीं कर पाता है कर्म सत्ता जीव को नाच नचाती रहती है इसलिए कर्म क्षय करने है तो राजसत्ता से नही होंगे धर्म सत्ता की शरण को स्वीकार करना होगा। शरीर के मस्तक रूपी थाल पर सफेद चावल रूपी बाल आ गए है तो वे ये सूचना दे रहे है की अब साधना के लिए तत्पर हो जाओ। जीवन का प्रारंभ कृष्ण पक्ष से और अंत शुक्ल पक्ष से करना है यह समझ जरुरी है। राजसत्ता पाकर विवेक खोने वाले मनुष्य का पतन निश्चित है कर्म को क्षय करने के लिए धर्म की आराधना जीवन में उजास फैलाएगी। प्रेमलता जी ने कहा कि धर्म कार्य में अंतराय देना अनुचित है। धर्म कार्य में सहायक बनने में ही जीवन की सार्थकता है। हमारा शरीर शाश्वत रहने वाला नही है यह अग्नि की भेट चढ़े इसके पूर्व धर्म आराधना द्वारा कर्मो का क्षय कर लेना है। आराधना के इन दिनों में तप त्याग एवं प्रत्याख्यानो का दौर जारी है पारसमल सोलंकी एवं कल्पना सोलंकी सजोड़े दीर्घ तपस्या कर रहे है कई अन्य तपस्याए भी जारी है। नवयुवक मण्डल द्वारा अंताक्षरी व एक मिनिट प्रतियोगिता का भी आयोजन रखा गया।

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