आदिवासी अंचल में इन दिनों ताड़ी का सीजन अपने शबाब पर, भरपूर आवक से ताड़ी प्रेमी के चेहरों पर चमक दिखाई दे रही

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जितेंद्र वर्मा, जोबट

जोबट में इन दिनों ताड़ी की बहार दिखाई दे रही है इस क्षेत्र में ताड़ के पेड़ों पर बड़ी संख्या में लटके ताड़ी के वारिये (मटके) और ताड़ी बेचने के लिए बने नील तंबू की छोटी-छोटी दुकान हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं जोबट क्षेत्र के सड़क मार्गों पर जगह-जगह खुले ताड़ी की छोटी-छोटी दुकान पर भीड़ दिखाई दे रही है बताया जाता है कि ताड़ी आमतौर पर चार प्रकार किस्मों की होती है -ताड़ी का मुख्य मौसम दिसंबर से मई तक होता है फरवरी से मार्च तक आने वाली ताड़ी को वांझिया तथा अप्रैल से मई तक मिलने वाली को फलनियां ताड़ी कहा जाता है। इसके अलावा अन्य महीनों में भी ताड़ी आती है, लेकि न उसमें वह बात नहीं होती। जून से अगस्त तक निंगाल एवं सितंबर से दिसंबर तक चौरियां ताड़ी आती है। स्वाद व सेहत के लिए वांझिया ताड़ी को सबसे अच्छा माना जाता है वही वंझ्या जनवरी और फरवरी मार्च के बीच तक उपलब्ध रहता है, जिसका स्वाद सुबह-सुबह बहुत अच्छा होता है और लगभग 10 से 12 बजे के बाद सूरज की धूप लगने से ताड़ मे अल्कोहल की मात्रा अधिक हो जती है दूसरी ओर,फालन्या जो मार्च से मई तक उपलब्ध रहता है वह गर्मी के कारणो से फालन्या की ताड़ खटी हो जाती है जिस वजह से ताड़ी में डबल अल्कोहल की मात्रा बढ़ जाती हैसुबह की ताड़ी मीठी होती है।

उल्लेखनीय है कि सुबह के समय पेड़ से मिलने वाली ताड़ी मीठीएवं स्वादिष्ट होती है। इसको पीने पर नशा देरी से आता है। दोपहर में निकलने वाली ताड़ी थोड़ी कड़क और शाम के समय निकलने वाली तो अत्यंत ही नशीली रहती है। एक पेड़ से 10-12 लोटी ताड़ी एक समय में निकल पाती है और एक लोटी की कीमत 20 रुपए के लगभग मे मिलती है। सुबह निकलने वाली ताड़ी को आदिवासी भाषा में नीरा कहते हैं, जोकि मीठे शरबत जैसी होती है।इन दिनों क्षेत्र में ताड़ी की अच्छी आवक होने लगी है इन दिनों मुख्य रास्तों के किनारे जगह-जगह खुले में ताड़ी बिक रही है ताड़ के पेड़ से ताड़ी उतारने के लिए पैरों के पंजे की मदद से वे रस्सी के सहारे ताड़ पर चढ जाता है और पेड़ की टहनियां क़ो तीखे औजार से छील कर टहनियों के नीचे मटकियों बंद कर रख दिया जाता है जिसमें एक-एक बूंद इकट्ठी होती है वह सुबह तक बंधा हुआ पुरी मटकियों भर जाती है इन दीनो क्षेत्र में ताड़ी की अच्छी माँग रहती है यहाँ ताड़ी के सीजन में बाहर से आने वाले शोक मिजाज लोग इसका मजा लेने से नहीं चूकते हैं आदिवासियों के अलावा नगर के लोग भी भरपूर मात्रा में इसका सेवन करते हैं कुछ लोगों का कहना रहता है कि इस प्राकृतिक पेय को सीमित मात्रा में पिया जाए तो नुकसान नहीं करता, बल्कि पाचन क्रिया अच्छी रखता है। इस क्षेत्र में ताड़ी की अधिक बिक्री होने से ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोग सुबह-सुबह अपनी मोटरसाइकल पर केन बाँधकर दूर-दूर तक ताड़ी लेने के लिए निकल पड़ते हैं एक मोटरसाइकल सवार लगभग 100-125 लीटर ताड़ी प्रतिदिन लाकर विभिन्न बाजारों में बेच देता है। ग्रामीण क्षेत्र से लाकर बाजार में वह करीब 40-50 प्रतिशत अधिक भाव से बेचता है। मोटे अनुमान के अनुसार क्षेत्र में इन दिनों रोजाना हजारों रुपए का ताड़ी का व्यवसाय हो रहा है।

व्यवसाय में महिलाएं अधिक

ताड़ी के व्यवसाय में सड़क किनारे लगी दुकानों पर पुरुषों के बजाय स्त्रियां अधिक नजर आ रही हैं। इसके पीछे स्त्रियों का मत है कि पुरूष खेती व अन्य व्यवसाय में व्यस्त रहते है ऐसे में घर के काम खत्म कर खाली समय में महिलाएं ताडी बेचने जाती है ओर परिवार में आर्थिक मदद में सहयोग करती है ।

ताड़ी पीने के फायदे

कहा जाता है कि ताड़ी से नशे के साथ पेट के रोगों का निदान भी करती है। इसके सेवन से पाचन क्रिया सही रहती है। सुबह के समय उतारकर पीगई ताड़ी मीठी होती है, जो शरीर के लिए ज्यादा लाभ कारी होती है। शाम के समय पी जाने वाली ताड़ी में खट्टापन होता है व ज्यादा नशा आता है।

चार प्रकार की ताड़ी

ताड़ी का मुख्य मौसम दिसंबर से मई तक होता है। फरवरी से मार्च तक आने वाली ताड़ी को वांझिया तथा अप्रैल से मई तक मिलने वाली को फलनियां ताड़ी कहा जाता है। इसके अलावा अन्य महीनों में भी ताड़ी आती है, लेकि न उसमें वह बात नहीं होती। जून से अगस्त तक निंगाल एवं सितंबर से दिसंबर तक चौरियां ताड़ी आती है। स्वाद व सेहत के लिए वांझिया ताड़ी को सबसे अच्छा माना जाता है।