बड़ी ही मुश्किल से मिलता है मनुष्य भव, अहंकार छोड़ पुरुषार्थ करने से ही मिलते हैं परमात्मा : साध्वी अविचलदष्टाश्रीजी

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पारा। हम सभी चैतन्य पदार्थ है फिर भी संसार में जीव अपनी वर्तमान पर्याय में अहंकार करते दिखते हैए किसी को रूप का मदए किसी को जाती का मद तो किसी को कुल का मद पर अगर आपने इस पर्याय में आत्मा का हित कर स्वरुप की प्राप्ति नहीं की तो हममें और दूसरे पशु योनियों में क्या फर्क रह जाएगा क्योंकि वो भी तो अपना पेट भरते है और काल खत्म होने पर नइढ पर्याय ग्रहण करते है। ये प्रेरक उद्गार साध्वीवर्या अविचलद्रष्टाश्रीजी ने गुरू ज्ञान मंदिर मे अपने प्रवचन में कहे और बताया कि अगर हमने अपनी विवेक से हिताहित का विचार नहीं किये और व्यर्थ में अहंकार कर भव ही बढ़ाये तो इसलिए ये अति दुर्लभ मनुष्य पर्याय का उपयोग तो सिर्फ स्व-स्वरुप को पाने में लगाना चाहिए तभी हम कह सकते है की हम जैन हैं और अगर अपना हित ना कर सिर्फ गर्व से कहा रहे कि हम जैन हंै तो ये कहकर अहंकार कर हम उसके परिणाम स्वरुप निगोद में चले जाएंगे। अनंत काल के बाद हमें मनुष्य जीवन मिलता है अतरू हमें अपने इस भव में पुरुषार्थ करना होगा। जिनवाणी को सुन कर उस पर चिंतन . मनन करना होगा शायद तभी हम अपनी आत्मा को परमात्मा के करीब ले जा पाएंगे।