गंभीर स्थिति न बनाए ये कमियां; कोरोना की तीसरी से पहले..100 बैड वाला सिविल हाॅस्पिटल ही बीमार..

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सलमान शैख़@ झाबुआ Live..
कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए भले ही स्वास्थ्य विभाग ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन जब इसका रियलिटी चैक किया गया तो पेटलावद के सिविल हाॅस्पिटल सहित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों व प्राथमिक-उपस्वास्थ्य केंद्रो में स्थिति यह है कि वहां स्पेशलिस्ट डाॅक्टरों की कमी है। ग्रामीण क्षैत्रों की बात की जाए तो कई जगह डाॅक्टर जाते ही नहीं है और कई उपस्वास्थ्य केंद्र बंद ही पड़े है। ऐसे में यदि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर आती है तो गंभीर मरीजों के इलाज में मुश्किल हो सकती है।
गौरतलब है कि करीब 3 लाख की आबादी को अपनी सेवाएं दे रहा पेटलावद सिविल अस्पताल इन दिनों एक्सपर्ट डाॅक्टरो की कमी से जूझ रहा है। स्टाफ की कमी होने के दो मुख्य कारण हैं, पहला ये कि अस्पताल में जितने स्वीकृत पद हैं उनमें से कई पद खाली पड़े हुए हैं और दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है कि कोरोना के चलते स्टाफ की ड्यूटी फील्ड और कोरोना वायरस के कामों में लगी हुई है, जिसके चलते अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। यही वजह है कि क्षैत्र की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी अपना उपचार कराने के लिए निजी चिकित्सालयों का रूख करना पड़ता है। सरकारी अस्पताल तो नाममात्र के रह गए है। इस ओर न तो किसी अधिकारी, न नेता न किसी जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहे है। सुविधाओं के अभाव के साथ मानव संसाधन की कमी भी एक बड़ी समस्या हैं।
इतनी बड़ी आबादी और डाॅक्टर केवल 8-
अस्पताल के ओपीडी में रोजाना नए और पुराने करीब 200 मरीजों का प्राथमिक इलाज किया जाता है जो कोरोना काल दौरान घट गया था, लेकिन एक बार फिर से मरीजों का आवागमन अस्पताल में शुरू हो गया है। आपातकाल और वार्ड में करीब 100 मरीजों का इलाज किया जाता है। इन सभी मरीजों की देखरेख की जिम्मेदारी मात्र 8 डॉक्टरों पर है, जिसमें सामान्य रोग विशेषज्ञ को रोजाना 50 अधिक मरीजों की जांच करनी पड़ती है। वर्तमान में मात्र 8 चिकित्सक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ हैं। इनमें डाॅ. एमएल चोपड़ा मेडिकल स्पेशलिस्ट जो कि बीएमओ जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इस नाते उन्हें प्रशासनिक कार्यों के साथ अस्पताल की व्यवस्थाएं देखने में काफी परेशानी आ रही है। इन 7 डाॅक्टरो में 1 शिशु रोग विशेषज्ञ, 1 स्त्री रोग विशेषज्ञ, 1 सर्जन और 4 मेडिकल ऑफिसर है। जबकि यहां कुल 16 पद खाली पड़े है, जिसमें हड्डी रोग विशेषज्ञ, सोनोग्राफिक्स स्पेशलिस्ट आदि के पद रिक्त है। जिनमें से 50 फीसदी चिकित्सक मैदानी अमले के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में लगे रहते हैं। जबकि सिविल अस्पताल के लिए स्वीकृत पदों में यहां कुल 21 विशेषज्ञों के साथ ही 89 अन्य स्टाफ की नियुक्ति यहां होना है।
नर्सिंग काॅलेजों के स्टूडेंट कर रहे पूर्ति-
यही नही पेटलावद सिविल हाॅस्पिटल में पिछले दो-तीन वर्शो के हाल देखे तो अगर नर्सिंग होम काॅलेजों के स्टूडेंट अगर हाॅस्पिटल में अपनी सेवाएं न दे तो वहां की हालात बद से बदतर हो जाए। यह तो भला हो उन स्टूडेंटों का जो मरीजों की देखरेख के अलावा अन्य कार्य रोजाना यहां अपनी सेवाएं देकर बखूबी पूरा कर रहे है।
बच्चों के सिर्फ 1 विषेशज्ञ डाॅक्टर, कैसा होगा इलाजः
पेटलावद क्षैत्र के हजारों बच्चों के लिए केवल एक ही षिषु रोग विषेशज्ञ है। वह भी पेटलावद सिविल हाॅस्पिटल में पदस्थ है। अन्य स्वास्थ्य व उपस्वास्थ्य केंद्रों पर एक भी शिशु रोग विषेशज्ञ नही है। ऐसी स्थिति में बच्चों का इलाज आखिर कैसे हो सकेगा। यह एक बड़ा चिंता का विशय है। आने वाले समय में यही कमियां गंभीर स्थिति को जन्म दे सकती है। शासन-प्रशासन इसे पूरा करने पर जल्द ही विचार करे।
लाखो लोगो को बेहतर स्वास्थ्य का अभी भी है इंतजार-
पेटलावद क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। यहां पर लगभग 240 राजस्व ग्राम है, जहां 3 लाख से अधिक लोग निवास करते है। यही वजह है कि यह क्षैत्र जिले की सर्वाधिक आबादी वाला विकासखण्ड है। पेटलावद शहर में 1 सिविल हास्पिटल जो हाल ही में शुरू हुआ है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 76 उपस्वास्थ्य केंद्र और 7 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। पेटलावद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रतिदिन 12 से 15 से अधिक प्रसव केस आते है। इन लाखो लोगो को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतजार अभी भी है। पेटलावद जैसी एक बड़ी तहसील में स्वास्थ्य सुविधाओं का पिछड़ना कहीं न कहीं सरकार और सिस्टम का फेलियर साबित हो रहा है। यहां एक्सपर्ट डाॅक्टरो की कमी पिछले कई सालो से खल रही है।
जो डाॅक्टर है वे दिन-रात कर रहे एक-
हालांकि जो भी डाॅक्टर पेटलावद में है, वो कोरोना काल से आज तक दिन-रात मरीजों की सेवा में लगे हुए है। उनकी इस सेवा के जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है। अपने-अपने स्तर पर मरीजों की देखरेख करना, उन्हें सही उपचार मिल रहा है या नही इसकी जानकारी जुटाना हर वो काम बखूबी पूरा कर रहे है, बस कमी है तो कुछ और एक्सपर्ट डाॅक्टरो की, जिनकी नियुक्ति यहां होने के बाद इन डाॅक्टरो का हौंसला और बड़ जाएगा।
डाॅ. केडी मण्डलोई के बाद अनुभवी डाॅक्टर को तरस रहा पेटलावद नगर-
नगर में अनुभवी डाॅक्टर के नाम पर केवल एक ही डाॅक्टर है वह है सेवानिवृत्त डाॅॅ. एसके महाजन। इनके साथ एक ओर डाॅक्टर थे, जिनका पूरे पेटलावद क्षैत्र से गहरा नाता रहा है। वह थे डाॅ. केडी मण्डलोई। बीते कोरोना काल ने उनका दुखद निधन हो गया था। हालांकि सिविल हाॅस्पिटल से उनकी सेवानिवृत्ति पहले ही हो चुकी थी, लेकिन उनके बाद एक भी अनुभवी डाॅक्टर पेटलावद को नही मिला है। पेटलावद अस्पताल में ऐसा कोई विशेषज्ञ यहां नियुक्त नही हुआ, जो हर समय, हर घड़ी मरीजों की सेवा में तत्पर रह सके। जिन डाॅक्टरो की यहां नियुक्ति हुई है, उनमें अनुभव की कमी साफ झलकती है, यह हम नही कह रहे, पेटलावद की जनता इन दिनों महसूस कर रही है। जिसका खामियाजा नगरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। अनुभवी डाॅक्टरों के अभाव में नगरजनों को इंदौर, रतलाम जैसे बड़े शहरों में अपना उपचार करना पड़ रहा है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि पेटलावद सिटी को डाॅ. केडी मण्डलोई जैसे एक्सपर्ट अनुभवी डाॅक्टरों को भेजा जाए ताकि यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था फिर से अच्छी हो सके।
आए दिन लेबोटरी रहती है बंद-
पेटलावद सिविल हाॅस्पिटल की लेबोटरी आए दिन बंद रहती है। आज शुक्रवार को भी जब हम सिविल हाॅस्पिटल पहुंचे थे तो लेबोटरी बंद थी। यहां केवल मलेरिया की जांच हो सकती है। डेंगू, चिकनगुनिया आदि बीमारियों की जांच के लिए अभी तक कोई व्यवस्था नही हो पाई है।
सिटी स्कैन की कमी, वैकल्पिक इंतजाम जरूरी-
पेटलावद में अब सबसे ज्यादा किसी संसाधन की कमी खल रही है तो वह है सीटी स्कैन मशीन। सीटी स्कैन की सुविधा केवल जिले में है। ऐसे में तीसरी लहर आने पर संभावित रोगियों की जांच में परेशानी आएगी। सूत्र बताते है कि अभी पेटलावद में मशीन की व्यवस्था होने की आस नही है। ऐसे में वैकल्पिक इंतजाम करना जरूरी होगा। जो ऑक्सीजन प्लांट लगा है वह भी पेटलावद के जनसहयोग से अस्पताल में लगाया गया है। शासन स्तर से आखिर कब क्षैत्रवासियों को जरूरी संसाधनों की सौगात मिलेगी। यह एक विचारणीय प्रश्न है।
शासन से मांग की है-
अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित नहीं हो रही है। हां यह सही है कि चिकित्सक समेत अन्य स्टाफ की कमी है। इसके लिए शासन स्तर पर मांग रखी जा चुकी है। जो निर्णय होना है वरिष्ठ स्तर पर ही होगा।
– डॉ. एमएल चौपड़ा, बीएमओ, पेटलावद।