दुर्लभ मॉनिटर लिजार्ड (गोह) पर तस्करों की नजर; यह है मुहमांगी कीमत की वजह ..

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झाबुआ Live डेस्क
आधुनिक तकनीकी ने काफी तरक्की कर ली है। ऊंची-ऊंची मीनारों पर चढऩा अब मुश्किल नही रहा। पलक झपकते ही किसी भी ऊंचाई तक पहुंचा जा सकता है। फिर चाहे वह पहाड़ की हो या किसी बिल्डिंग की। लेकिन जब तकनीकी का विकास नही हुआ था। तब भी इस ऊंचाई तक पहुंचा जाता था। लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा, तब पहाड़ों या ऊंचे किलों पर चढऩे के लिए एक जंगली जीव का सहारा लिया जाता था।

जी हां, हम बात कर रहे है गोह के नाम से पहचानी जाने वाली मॉनिटर लिजार्ड नामक जानवर की। जिसकी इन दिनों वन विभाग की नाक के नीचे धड़ल्ले से तस्करी चल रही है। वन्यजीव अपराधो से जुड़े शिकारी धड़ल्ले से इनका शिकार कर रहे है और उनके अंंगो को मुंहमांगी कीमत पर बेच रहे है। चिंता की बात है कि वन विभाग असहाय बना हुआ है।बताया जा रहा है मॉनिटर रिजर्ड भारतीय वन जीव के कानून के अंदर आती है। साल 2017 में इंदौर में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने एक कम्पनी पर दबिश देकर बड़ी कार्यवाही की थी। विदेशी में इनकी भारी डिमांड है। इसलिए एमपी में इसकी तस्करी जोरो पर है।
ताजा मामला एमपी के झाबुआ जिले के पेटलावद में सामने आया था। जहां करड़ावद-पेटलावद के बीच अवैध रूप से गोह को पिंटू पिता बाबू नाथ निवासी बामनिया व राजेश पिता कालू चामटा निवासी मेघनगर अपनी बाईक से ले जा रहे थे। तभी मुखबीर की सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम पहुंची और इन दोनो आरोपियो को 2 जिंदा गोह सहित गिरफ्तार कर थाने लाई। अधिकारियो ने वन्य जीव अधिनियम 1972 की धारा 2, 9, 39, 48(ए), 50 और 51 के तहत प्रकरण दर्ज कर आरोपियो न्यायालय में पेश किया था। जहां न्यायाधीश संजीव कटारे ने उन्हें जेल भेजने के आदेश जारी कर दिए। इसके बाद दोनो को जेल भेजा गया। सूत्रों के मुताबिक जिस आरोपी पिंटू नाथ से इस वन्य प्राणी को जप्त किया गया है। बताया जा रहा है कि पिंटू नाथ के परिवार का पूर्व में भी वन्य प्राणियों की तस्करी में आपराधिक रेकार्ड रहा है तथा इस परिवार के विरूद्ध पूर्व में न्यायालय में प्रकरण चले है। इस तरह से पींटू नाथ व उनका परिवार वन्य प्राणियों की तस्करी के लिए क्षेत्र में प्रख्यात भी है। अगर वन विभाग की टीम इस मामले की तह तक पहुंचती है तो जरूर टीम के हाथ गोह मामले में शामिल बड़े तस्करो तक पहुंच सकते है।
क्या है मॉनिटर लिजार्ड (गोह)-
मॉनिटर लिजार्ड को गोह भी कहते है। मगरमच्छ की तरह का एक बेहद छोटा जानवर है। यह छिपकली से थोड़ा बड़ा होता है। दलदली इलाकों में मिलने वाला यह जीवन सांप की तरह जीभ लपलपाता है। यह ज्यादातर ठंडी जगह में पाया जाता है। जैसे खेजडी के पेड़ में या नम भूमी में बिल बना कर। सांप अपना बिल नहीं बनाता है लेकिन इसके पंजे होते है जिनसे यह अपना बिल बना भी लेता है। यह कीट मकोड़े को खाकर पेट भरता है।
पुराने समय में ऊंची दीवारो मे लिया जाता था इसे काम में-
इसकी दो ख़ासियत है, पहली यह कि इसकी मजबूत पकड। यह अगर अपने पंजे से किसी चीज को पकड ले तो एक साथ दो आदमी भी मिलकर छुडाना चाहे तो नहीं छुडा सकते है। इस की इसी ख़ासियत की वजह से इसे पुराने समय में युद्ध के समय दुश्मन के किले पर ऊँची दीवार पर चढऩे में इसे काम में लेते थे। इसकी कमर पर एक मजबूत रस्सी बांध दी जाती थी। फिर इसे दीवार पर छोड़ दिया जाता था। जब यह दीवार के शीर्ष पर पहुच जाता था तब उसी रस्सी के सहारे सैनिक चढ़ जाते थे। दूसरी ख़ासियत है इसकी मजबूत शारीरिक संरचना इससे यह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जि़ंदा रह सकता है। इसकी चमड़ी भी बहुत मजबूत होती है। जिससे राजस्थान की घुमंतू जाती (कालबेलिया, बिन्जारा, नाथ, बावरिया) के लोग इसकी चमड़ी से जुतिया बनवाते है। जो बहुत ही टिकाऊ होती है। एक मिथक भी है की बरसात के दिनों में इसके ऊपर बिजली गिरने का खतरा अधिक रहता है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो विशेषज्ञ ही बता सकते है।
एक अंग की कीमत 15 हजार रुपये तक-
ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंधविश्वास है कि गोह के प्राइवेट पार्ट को खाने से यौन शक्ति बढ़ती है। यही कारण है कि इसकी बाजार में खासी मांग है। कहा जा रहा है कि गोह के एक प्राइवेट पार्ट की कीमत बाजार में 10 से 15 हजार रुपये के आसपास है। इसे तस्कर दो हजार में थोक में बेचते हैं।