पंचायत चुनाव लोकतंत्र का आधार होते है इस बार हो रहे पंचायत चुनाव कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति वाले है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे झाबुआ अलीराजपुर जिले में कांग्रेस ने पिछले डेढ़ वर्ष से हर चुनाव लगातार हार रही है। स्थानीय नगरीय चुनाव से लेकर सहकारिता के चुनाव तक और विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक कांतिलाल भूरिया जैसे कद्दावर नेता के होते हुए भी कांग्रेस को लगातार पराजय का मुंह देखना पड़ा। लेकिन झाबुआ और अलीराजपुर की जिला पंचायत भी कांग्रेस हार जाती है तो यह आदिवासी अंचल कांग्रेस मुक्त हो जाएगा। कौन बन सकता है झाबुआ अलीराजपुर का जिला पंचायत अध्यक्ष और क्या है उसके समीकरण। देखिए हमारी इस ख़ास ख़बर।
कलावती भूरिया पिछले 15 वर्ष से झाबुआ जिला पंचायत की अध्यक्ष है। कलावती न केवल प्रदेश कांग्रेस सचिव रही बल्कि कांतिलाल भूरिया की भतीजी भी है। झाबुआ जिला पंचायत के कुल 14 वार्ड है और प्रथम चरण के परिणामों में जिले की पेटलावद जनपद क्षेत्र की तीन जिला पंचायत वार्डों में कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी घोषित हुए है। हालांकि, कांग्रेस के भीतर कांतिलाल कलावती कांग्रेस विरूद्ध सिंधिया समर्थक जेवरिर वालसिंह कांग्रेस नाम के दो गुटों में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। पेटलावद क्षेत्र के जीते हुए तीनों जिला पंचायत सदस्यों को दोनों गुट अपना अपना समर्थन मान रहे है।
आगामी दो चरणों में जिले की थांदला, मेघनगर, झाबुआ और राणापुर में चुनाव होने है। ये इलाके कांग्रेस समर्थक माने जाते है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में विपरीत नतीजों के बावजूद यहां कांग्रेस को खास समर्थन मिला था। अब खाद और बीज संकट ने कांग्रेस के लिए यहां संजीवनी का काम किया है। ऐसी स्थिति में पूरी संभावनाएं है कि पेटलावद जैसे नतीजे यहां भी दोहराए जा सकते है।
राजनीतिक गलियारों में आकलन है कि कांग्रेस को 14 सीटों में से कम से नौ या दस सीट मिल सकती है। इसमें अधिकांश भूरिया गुट समर्थक होंगे। यदि यही अंतिम परिणाम रहे तो कलावती भूरिया का चौथी बार अध्यक्ष बनना तय दिख रहा है।
यदि कांतिलाल भूरिया गुट के समीकरण गड़बड़ा जाते है और उनकी बजाए जेवियर-वालसिंह गुट से जुड़े उम्मीदवारों का दबदबा रहता है तो माना जा रहा है कि यह अपनी ही पार्टी की कलावती भूरिया को रोकने के लिए बीजेपी से हाथ मिला सकते है। यदि ऐसा होता है तो अध्यक्ष फिर भी भूरिया बनेगा। इस बार कलावती की जगह जसवंत सिंह भूरिया की ताजपोशी हो सकती है। जसवंत सिंह मौजूदा सांसद दिलीप सिंह भूरिया के बेटे है और रामा ब्लॉक से चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे है।
कलावती गुट और बीजेपी ज्यादा सीट नहीं जीतती है तो भी अध्यक्ष भूरिया ही बनना है। कलावती और जसवंत भूरिया के बजाए जेवियर और वालसिंह गुट से चुनाव लड़ रहे भूरिया उम्मीदवारों में से कोई एक ही अध्यक्ष बनेगा। इन हालात में बीजेपी कलावती को रोकने के लिए जेवियर-वालसिंह गुट से हाथ मिला सकती है। कुल जमा अध्यक्ष कलावती बनती दिख रही है लेकिन यदि कुछ गड़बड़ हो जाती है तो भी बाजी किसी ने किसी भूरिया के हाथ ही लगेगी।
अब बात अलीराजपुर अंचल की है। यहां चुनाव कोई भी जीते अध्यक्ष चौहान का बनना तय दिख रहा है। दरअसल, यहां हालात झाबुआ से बिलकुल उलट है। बीजेपी यहां मजबूती से अपने पैर जमाए हुए है। कांग्रेस यहां बैकफुट पर है और उसका जमीन पूरी तरह से खिसकती हुए दिख रही है।
अलीराजपुर में 12 वार्ड है और अध्यक्ष पद के लिए सात सदस्यों का समर्थन जरूरी है। अभी अध्यक्ष की दौड़ में दो ही नाम आगे है और दोनों ही चौहान होने के साथ एक ही परिवार के है। विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक जमाने वाले विधायक नागर सिंह चौहान की पत्नी अनिता सिंह चौहान इस दौड़ में सबसे आगे है।
नगर पालिका का चुनाव हार चुकी अनिता के राजनीतिक पुनर्वास के लिए उनके दबंग और कद्दावर नेता के रूप में पहचाने जाने वाले पति नागर सिंह पूरी ताकत लगा रहे है। जिले में उनकी छबि और पकड़ के चलते इस बार की आशंका बहुत कम है कि अनिता के चुनाव जीतने के बाद उनके अध्यक्ष पद की दावेदारी को लेकर पार्टी में किसी तरह का कोई विरोध हो।
फिर भी एक संभावना है कि यदि अध्यक्ष पद के लिए कही से आवाज उठ सकती है तो वो पार्टी और परिवार के भीतर ही हो सकती है। अध्यक्ष पद के लिए दूसरे दावेदार इंदरसिंह चौहान भी इस परिवार से है। विधायक नागर सिंह चौहान के भाई अंतर सिंह भी चुनाव लड़ रहे है। अपने भाई की तरह वह भी कद्दावर और दबंग नेता के रूप में पहचाने जाते है। यदि सीटों के समीकरण में कोई कमी रह जाती है तो हो सकता है कि इंदरसिंह की लॉटरी लग जाए। यहां कांग्रेस पूरी तरह मुकाबले से बाहर नजर आ रही है। यहां चुनाव पूरी तरह बीजेपी और चौहान परिवार पर केंद्रित हो गए है।