धारा 165 ( क ) को लेकर झाबुआ कलेक्टर के रुख से मचा हाहाकार

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झाबुआ  लाइव डेस्क की EXCLUSIVE पब्लिक इंटरेस्ट रिपोर्ट । 

खून अरमानो का
खून अरमानो का

एक कहावत है ” अंधेर नगरी – चौपट राजा” ओर इस कहावत को सही होते देखना हो तो झाबुआ चले आईये । यहा की कलेक्टर डा अरुणा गुप्ता का ” मप्र भू राजस्व संहिता ” की धारा 165 ( क ) के बारे मे कानून के विपरीत निजी राय बनाकर थोपना जिससे सैकड़ो लोग पीड़ित ओर परेशान हो चले है मगर सरकार के अधिकारी इस समस्या पर ध्यान देने को तैयार नही है अपनी पदस्थापना से लेकर आज तक के कार्यकाल मे कलेक्टर अरुणा गुप्ता ने एक भी मंजूरी नही दी है जिससे लोग परेशान है । 

धारा 165 ( के ) कैसे बनी जी का जंजाल ऐसे समझे

म.प्र. भू-राजस्व संहिता की धारा 165 (क) जिसमे गैर आदिवासी की परिवर्तित भूमि के क्रय-विक्रय की कलेक्टर से अनुमति लेनी होती हे यह क्रय-विक्रय करनेवाले दोनों ही पक्ष व शासन के लिए गले की हड्डी साबित हो रही हे । जिस आदिवासी समाज को ध्यान में रखकर यह धारा लागू की गई थी उनका भी इससे कोई  फायदा नहीं हो रहा हे उल्टे नुकसान ही हो रहा हे ।एक और तो इस धारा के कारण यह जिला विकासक्रम में पिछड़ रहा हे वही दूसरी और शासन को राजस्व की भी हानि हो रही हे । इस धारा से गैर आदिवासियों में जमीन का हस्तानान्तरण कछुआ चाल से ही हो पा रहा हे और उसकी वजह कलेक्टर से इसकी अनुमति की प्रोसेस हे । इसमें आवेदन कई मंजिलो को पार करते हुए कलेक्टर के पास पहुचता हे और प्रक्रिया काफी महँगी व थकाने वाली होती हे जिससे भूमि लेने-देने वाले दोनों ही पक्ष अपने उद्धेश्य में सफल नहीं हो पाते हे । यह भी तब जब कलेक्टर इसको गंभीरता से ले इस पर आदेश जारी करे अन्यथा तो भगवान ही मालिक हे ।

खुद राजस्व अमले की रिपोर्ट की अनदेखी 

एक और धारा165(क) व दूसरी और वर्तमान कलेक्टर की इससे अनभीज्ञता यहाँ की जनता को भारी पड़ रही हे । एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा की कहावत पुर्णतः चरितार्थ हो रही हे । पटवारी,आर.आई. , तहसीलदार व SDM सारी एजेंसिया शासन की ही हे और इनके द्वारा तैयार रिपोर्ट पर कलेक्टर द्वारा आदेश न करना उल्टा क्रय-विक्रय करने वाले को आरोपित करना कि तुम भू-माफिया हो काफी हास्यास्पद और कष्टदायक हे । यह कौन से कानून में लिखा हे कि एक भूमि का एक से अधिक बार लेन-देन नहीं हो सकता । कलेक्टर झाबुआ के इस रुख से मंजूरी के कई आवेदन लंबे समय से लंबित हे जिससे दोनों ही पक्षकारों में बे-वजह विवाद और आर्थिक नुकसान हो रहा हे । इन सबसे ऊपर शासन को राजस्व की हानि हो रही हे ।

पूव॔ के सभी कलेक्टरस॔ देते रहे अनुमति 

पूर्व कलेक्टरों द्वारा भी नियम के तहत इस संबंध में मंजूरियां दी गई हे फिर वर्तमान कलेक्टर का यह रुख समझ से परे हे । वे इनके बारे में नहीं जानती तो जानकर मंजूरी दे न कि उनको वापस लौटाए । यदि कोई आपत्ति हो तो उसका निराकरण किया जा सकता हे मगर सिरे से ख़ारिज कर देना यह तो कोई न्याय नहीं ।अब समय आ गया हे कि इस धारा की समीक्षा की जाए क्योकि यह अपने मूल उद्धेश्य में सफल नहीं हुई हे उल्टे गैर आदिवासियों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रही हे ।

इस तरह की परेशानी मे फंसे लोग 

धारा 165 ( क ) की मंजूरी ना मिलने से कई तरह की व्यावहारिक दिक्कते आ रही है मसलन किसी ने जमीन खरीदी का एग्रीमेंट दिखाकर रजिस्ट्री का लोन लिया है तो रजिस्ट्री नही हो पा रही है ओर उन्हें बैंक का ब्याज देना पड रहा है । किसी के एग्रीमेंट का टाइम ओवर हो गया तो उसकी टोकन मनी डूबने ओर जमीन हाथ से निकल जाने का खतरा बढ गया है । किसी ने बाजार से कर्ज उठाया तो वह भी परेशान है ।  मगर कलेक्टर शायद मंत्रालय मे रही है तो उन्हें व्यवाहारिक धरातल का अहसास नही है ।