बड़े बांधो के निर्माण से स्थानीय संस्कृति को लगा ग्रहण: मिश्र

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अब तक 6 करोड़ विस्थापितों को उठाना पड़ी है परेशानियां

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झाबुआ। रविवार को विकास संवाद के चिन्मय मिश्र द्वारा पत्रकारों से मुखातिब हुए। उन्होंने इस दौरान कहा कि आधुनिक विकास में यदि हममें से कुछ के लिए जीवन आसान किया तो अनेक लोगों का जीवन दूभर भी हो गया है। मिश्र ने बताया कि ऐसी ही एक त्रासदी बडे़ बांधों से होने वाले विस्थापना की है। एक मोटे अनुमान के अनुसार आजादी के बाद से अब तक करीब 6 करोड़ लोग बड़ी विकास योजनाओं में विस्थापित हुए हैं और उनमें से 70 प्रतिशत अधिक आदिवासी है। ऐसी ही एक परियोजना सरदार सरोवर बांध और उससे निर्मित होने वाला जलाशय भी है, जिसकी डूब में करीब 200 किलोमीटर लंबाई जो कि कमोबेश इंदौर से भोपाल की दूरी से ज्यादा है, डूब मंे आएगा। इस डूब में आने वाला अधिकांश क्षेत्र मध्यप्रदेश का है। इसमें चार जिले के अनेकांे गांव व बड़ी बस्तिया के अलावा 275 के करीब गांव डूब आ जाएंगे इस डूब में मंदिर मस्जिद आदि के अलावा अनमोल उपजाउ भूमि भी इस परीधि में आ रही है। चिन्मय मिश्र ने आगे बताया कि इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में निवासरत लोग भी बेघर हो जाएंगें और उनकी संस्कृति पर भी काफी प्रतिकूल असर पडेगा। विकास संवाद भोपाल ने इस विपदा को पहचान कर डूब क्षेत्र की संास्कृतिक विरासत की जो हानि का सर्वेक्षण व दस्तावेजीकरण कराया है।चिन्मय मिश्र ने मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र व गुजरात के डूब क्षेत्र का एवु पुनर्वास केन्द्रों का अध्ययन करके इसे तैयार किया है। नर्मदा घाटी में बन रहे और बन चुकें बांधों का विस्तृत इतिहास एवं संघर्ष के इतिहास को भी तैयार किया है। मिश्र के अनुसार इस कारण से हमारी सांस्कृतिक हानि पर पहली बार अध्ययन किया गया है। उन्हांेने सरकार के नदी जोड़ने के अभियान के बारे में बताया कि आज ब्रह्मपुत्र नदी के अलावा ऐसी कौन सी नदी है जिसमें पानी बारह मास रहता है। ऐसे में नदी नही जलाशय याने बड़े तालाब झील बनाये जावेगें जिससे पानी में गंदगी के साथ ही कई बीमारियां भी जनस्वास्थ्य को प्रभावित करेगी। उन्होंने झाबुआ, धार निमाड, अलीराजपुर आदि जिलों के बारे में बताया कि यहां की संस्कृति को ऐसे कारणों से प्रभावित करने तथा उन्हंे नेस्तनाबूद करने का प्रयास चल रहा है। उन्होंने विस्तार से बाल विवाहितों की मोैजूदा स्थिति के अलावा बचपन से दूर करते रिश्ते आदि पर भी बेवाक तरीके से अपने अध्ययन से निकले निष्कर्षों के आधार पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने प्रेस एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया से उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक प्रलय से टकराते समाज और संस्कृति के बारे में भी अध्ययन करके समाज हित में आवाज बुलंद करने का आव्हान किया।