सलमान शैख़@ झाबुआ Live..
आस्था और विश्वास की डोर के सहारे ग्रामीणों ने दहकते अंगारो (चूल) पर चलकर परंपरा का निवर्हन किया और मन्नत उतारी। मौका था गल-चूल पर्व का।
धुलेंडी पर मप्र के झाबुआ जिले के पेटलावद विकासखण्ड के ग्राम बावड़ी, अनंतखेड़ी, टेमरिया आदि स्थानो पर यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाया गया। ग्रामीण मन्नतधारियों ने दहकते अंगारो से भरे गड्डे के बीच नंगे पैर गुजरते हुए अपनी मन्नत पूरी की। साथ ही अपने आराध्य भगवान को शीश झुकाया। यह सिलसिला शाम तक जारी रहा। आस्था के इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए न केवल स्थानीय बल्कि पड़ोसी रतलाम व धार जिलो से भी ग्रामीणों का जनसैलाब उमड़ा। पुलिस ने कार्यक्रम स्थल के आसपास सुरक्षा के कड़ें इंतजाम किए।
क्या है चूल परंपरा:
करीब तीन-चार फूट लंबे तथा एक फीट गहरे गड्डे में दहकते हुए अंगारे रखे जाते है। माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का स्मरण करते हुए जलती हुई आग में से निकलते है। अच्छी फसल एवं शांति व सद्भावना के लिए यह परंपरा वर्षो से निभाई जा रही है।
*इन्होनें निभाई परंपरा:*
ग्राम व आसपास के करीब 40 से अधिक श्रद्धालुओं ने इस परंपरा को बखूबी निभाया। जिसमें कई श्रद्धालुओं ने धधकते अंगारो पर गुजरे और मन्नत उतारी। इस बीच करीब 20 किलो घी की आहुति चूल में दी गई। इस पौराणिक परंपरा को निभाने का क्रम दशकों से चला आ रहा है। हर साल इसका निर्वहन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। चूल वाले स्थान में अंगारो के रूप लगाई जाने वाली लकडिय़ां और मन्नतधारी के आगे-आगे डाले जाने वाला घी गांव के अनेक घरों से श्रद्धानुरूप आता है।
*टेमरिया में ये चले दहकते अंगारो पर:
यहां कोमल गिरी, तोलसिंह भाभर, संजय गेहलोत, नारायण राठौड़, सुरेंद्र आंजना, ईश्वर आंजना, मुकेश भाभर, कृष्णकांत शर्मा, शम्भू मेड़ा, गिरधारी आंजना, हरिओम आंजना, प्रहलाद आंजना, रामेश्वर माल, राजमल गांधी, रूखी आंजना, गंगा आंजना, भूली आंजना, शांतिबाई आंजना, प्रहलाद मालवीय, भरत सिंगाड, अमरसिंह गरवाल, मांगीलाल मोरी, सोहन पारगी, लूणा माल, रतन मेड़ा, वेशा गरवाल, सोहन चरपोटा, गोपाल मेड़ा, कालूसिंह गरवाल आदि श्रद्धालुओं ने चूल पर चलकर परम्परा का निर्वहन किया। ये सभी ग्रामीण टेमरिया ग्राम सहित करडावद ओर देहन्डी ग्राम से थे।
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