स्वतंत्रता सेनानी, वीर योद्धा, महामानव भगवान टंट्या मामा के शहादत दिवस पर समाजजनों ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि

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पियुष चन्देल, अलीराजपुर

अलीराजपुर में 04 दिसम्बर को स्थानीय टंट्या मामा मुर्ति स्थल पर आदिवासी समाज के विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा एकत्रित होकर टंट्या मामा की प्रतिमा की पूजा अर्चना की गई उसके पश्चात उनके विचारों को आम जन तक पहुचाने के लिए आदिवासी छात्र संगठन के पदाधिकारी सवल चौहान ने अपने विचार अभिव्यक्त किये, जोबट से पधारे वीरेन्द्र बघेल व लालसिह डावर ने भी टंट्या मामा के विचारों एवं सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला ओर बताया कि आजादी के संघर्ष के समय में ये एक ऐसे योद्धा रहे है, जिन्होंने उस समय की विपरीत परिस्थितियों में जंगलों में रहकर अंग्रेजों व अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपना सशख्त अभियान चलाया, जिसके चलते ये योद्धा अंग्रेजी हुकूमत के लिए आँख में चुभने लगा व अंग्रेजों एवं साहूकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी जब फिरंगीयो की एक भी योजना सफल नहीं हुई तब फिरंगी सरकार ने उन पर राजद्रोह का मामला लगाया।
उक्त कार्यक्रम में मुकेश रावत, अरविंद कनेश, विक्रम चौहान , नितेश अलावा, सरस्वती तोमर, केरम जमरा, मुकेश अजनार आदि ने अपने विचार रखे एवं कहा कि टंट्या मामा अपने आप मे एक यूनिवर्सिटी है, जिनके बारे में जितना अध्ययन किया जाए उतना कम है। ये बात अंग्रेजों ने भी मानी और उन्हें रॉबिनहुड की उपाधि दी। आज भी निमाड़-मालवा सहित आदिवासी समाज मे लोग गीतों के माध्यम से उनके शौर्य को याद किया जाता है। टंट्या मामा अपनी टुकड़ी के माध्यम से अंग्रेजों एव राज रजवाड़ों से लूटा हुआ अनाज, कपड़े आदि जरूरतमद लोगो मे बाट दिया करते थे, जिसके चलते गरीब लोगो के लिए वो मसीहा से कम नहीं थे, इसीलिए लोगो ने उन्हे मामा की उपाधि दी क्योंकि वे भूखे को अनाज और वस्त्र विहीन को कपड़े देते थे। दुखियों की जड़ी बूटियों से सेवा करते थे, इसलिए वो टंट्या भील से टंट्या मामा बन गये। कार्यक्रम का संचालन रतन सिंह रावत द्वारा किया गया एव आभार रमेश डावर द्वारा किया गया । इस दौरान बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।

 

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