पर्युषण पर्व में धर्मावलंबियों में छाया उत्साह, हर दिन हो रहे आयोजन

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अलीराजपुर। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व को अहिंसा के आराध्यों जैन समाज द्वारा विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजनों के साथ आंनदोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। पर्व के प्रारंभ से ही जैन समाज में अपार अत्साह व उल्लास का वातावरण देखा जा रहा है। श्वेतांबर जैन मंदिर में प्रतिदिन प्रतिक्रमण, पक्षाल पूजा व भक्तामर पाठ, भक्ति तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों व प्रवचन का आयोजन किया जा रहा है। समाज सदस्यों ने बताया कि सोमवार से कल्पसूत्रजी का वाचन प्रारंभ किया जाएगा, रविवार शाम को समाजजन गाजो बाजों के साथ कल्पसूत्रजी के लाभार्थी परिवार सुरेंद्रकुमार मन्नालालजी काकडीवाला के निवास पर कल्पसूत्रजी लेने गए, इस दौरान लाभार्थी परिवार द्वारा प्रभावना का वितरण भी किया गया। महापर्व के तीसरे दिन राजेंद्र उपाश्रय में प्रचवन देते हुए सचिन प्रभावचंद्र जैन व सचिन अशोक कुमार जैन ने कहा कि पर्युषण क्रोध, मान और लोभ के दरवाजे बंद कर अपनी आत्मा के पास रहने का नाम है। पाप को रग रग से विसर्जित करा दे, वही पर्युषण पर्व है, आत्मा के वास्तविक रूप व लक्षण धर्मों को पहचानना ही पर्यूषण है। महापर्व के पावन 8 दिनों में 5 कर्तव्य एवं 11 विशेष नियमों का पालन करे। जिनमें तपश्चर्या, सुपात्र दान, दया, दान, अमारी प्रवर्तन (अहिंसा पालन) परमात्मा पूजन, पौषध, सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्य परिपाटी, प्रभु भक्ति शामिल है। महापर्व का सबसे प्रमुख दिवस क्षमापना दिवस है जिसे संवत्सरी भी कहते है संवत्सरी अर्थात वर्ष भर में एक बार इस दिन श्रावक वर्ष भर में मन वचन काया से किए गए पापों की, जाने-अनजाने हुई गलतियों की क्षमा मांगते है एवं दूसरों को क्षमा करते भी है। जीवन में क्षमाशीलता का गुण आ जाने पर मनुष्य दुख देनें वालों से भी प्रेम कर स्वयं को सुखद महसूस करते है। इस प्रकार पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का सही आराधक आत्मिक गुणों को विकसित करते हुए आत्मोत्थान के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित हुए बिना नहीं रहता। उन्होंने कहा कि आज का युग विकास का युग है। विकास की बहुत सारी शाखाएं हैं भौतिक विकास, आर्थिक विकास, बौद्धिक विकास किंतु अध्यात्म चेतना का विकास नहीं हो रहा है। जब अध्यात्म चेतना का विकास नहीं होता, तब स्थितियां जटिल बन जाती हैं और जब चेतना का अंध पतन होता है तब मानसिकता दूसरे प्रकार की बन जाती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रह जाता। जो मन में आता है, कर लेता है। पर्युषण का एक अर्थ है, कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अविस्थत होगी अतरू यह पर्युषण पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है। वक्ताओं ने अष्टानिका व्याख्यान में अयोध्या के राजा भरत चक्रवर्ती (भगवान आदिनाथजी के पुत्र) के पुत्र के वृतांत के माध्यम से बताया कि मनुष्य जो धर्म कार्य कर सकता है वह कार्य देवी-देवता चाह कर भी नहीं कर सकते है। मनुष्य उपवास, तप, जप, पूजा आदि सभी कार्य कर सकता है परंतु देवता यह धर्म कार्य नहीं कर सकते है। इसलिए जब भी पर्व तिथि आए तो तपस्या करना, जिनेश्वर भगवान की वाणी सुनना, स्वामी वात्सल्य, नवकारसी आदि धर्म कार्य अवश्य करना चाहिए। मनुष्य भव बार बार नहीं मिलने वाला है, एक बार मनुष्य भव हाथ से निकल गया तो फिर 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा। दोपहर में मंदिर पूजा का आयोजन किया गया।