आचरण में शुद्वता नहीं है तो भगवान की कृपा नहीं मिलती, जीवन में यदि सत्य आ गया तो धर्म और कर्म स्वत: ही जा जाएगा- पंडित लोकेशानन्द शास्त्री

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 जितेन्द्र वाणी @नानपुर

  भगवान की कृपा के बिना कथा श्रवण करना संभव नहीं है, पूण्यशाली ही भगवान की कथा में आ पाता है। जो जैसी भावना से कथा सुनता है, भगवान वैसा ही फल देता है। विचार रखना हो तो श्रेष्ठ ही रखना, विचार की फिक्र हो तो ही विचार शुद्ध होते है। विचार शुद्ध नहीं होने से ही मानसिक तनाव बढता है। हर व्यक्ति को अपने विचारों में शुद्धता रखनी चाहिए। कई लोगों का आचरण शुद्ध नहीं होता है वे बोलते क्या है और करते क्या है। कथा श्रवण से जीव का आचरण सुधरता है। यदि आचरण की शुद्धता नहीं है तो भगवान की कृपा नहीं हाने वाली। ये बात स्थानीय सोरवा नाका स्थित मां वाटिका गार्डन में श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित लोकेशानन्द शास्त्री बेटमा वाले ने कही।
उन्होने कहा कि कभी अन्न और प्रकृति का अपमान नहीं करना चाहिए। वर्तमान में जितना अंगूठा लोग मोबाइल पर चलाते है उतना भगवान की माला जपने में चलाएं तो उनके कई भव तर जाएंगे। हम कभी सीखने का प्रयास नहीं करते, संसार सागर के चक्रव्यूह में कुदने की जल्दी रहती है, लेकिन उतना ज्ञान हासिल नहीं करते, इसिलए विपत्तियों क सामना करते है। उन्होने प्रात:काल महाभारत, मध्यान्ह में रामायण और सायं काल श्रीकृष्ण की चर्चा करते हुए जीवन जीने का तरीका और इसका महत्व बताया।
बिना सत्य के जीव का उद्धार नहीं
पंडित शास्त्री ने कहा कि भागवत ऐसा ग्रंथ है जिसमें किसी देवा की स्तुति नहीं की गई, बल्कि सत्यं परमभिमही अथा सत्य की की स्तुति सर्वप्रथम की गई है। भागवत के अधिष्ठायक देवता श्रीकृष्ण है। बिना सत्य के दिया गया दान, नाम सब व्यर्थ हो जाएगा। उन्होने कहा कि आजकल कई लोग खूब कथा सुनते है, मंदिर जाते है और पेटभर कर झूठ बोलते है, कई लोग तो सुबह उठकर ही झूठ बोलना शुरू कर दते है, ऐसे लोग हमेशा विफल होते है, हमेशा सत्य बोलेने का प्रयास करे। उन्होने कहा कि सत्य को याद नहीं रखना पडता है, बिना सत्य के जीवन का उद्धार नहीं है। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता। सत्य को कभी याद नहीं रखना पडता है। आजकल लोग झूठी प्रशंसा पसंद कर स्वयं को बडा मानते है, लेकिन वे सत्य सुनकर आबाद नहीं होना चाहते है। जीवन की सत्यता भगवान ही है, लोग सत्य से विमुख हो रहे है लेकिन प्रभु का नाम ही सत्य है।
उन्होने भागवत कथा के प्रारंभ में मंगलाचरण का महत्व बताते हुए कहा कि इसमें तीन मंगलाचनण है पहला सत्य, दूसरा धर्म और तीसरा कर्म। यदि जीवन में सत्य जा जाएगा तो धर्म और कर्म स्वत: ही आ जाएंगे। आज के समय में व्यक्ति को सरल होना चाहिए, इस तन का कोई मोल नहीं है, यदि कर्म अच्छे होंगे तो किस्मत दासी हो जाएगी। उन्होने महाभारत युद्ध के अंत का वर्णन करते हुए बताया कि क्रोध में व्यक्ति का विवेक समाप्त हो जाता है।
मां का ह्दय समुद्र से भी गहरा, कभी उसका अपमान मत करना
कथा के दौरान पंडित ने मां की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि मां का ह्दय समुद्र से भी गहरा होता है, कभी उसका अपमान मत करना। मां सारे कष्टों को धारण कर लेती है लेकिन अपनी संतान पर किसी प्रकार का कष्ट नहीं आने देती है। वो बच्चों के लिए अपना सर्वस्व लूटा देती है, मां को बच्चों की गलती नजर नहीं आती, उसे खरोंच भी आ जाएं तो मां को नींद नहीं आती। लेकिन कलयुग में कई बेटे मां को डांट देते है, अपमान कर देते है। मां का ह्दय जब टूटता है जब कोई बेटा अपनी पत्नि के सामने उसको डांट देता है या अपमान कर देता है। पुरे परिवार को सम्हालने का सामर्थ्य मां में है, उस मां को कभी नीचे मत दिखाना। वहीं उन्होने कहा कि जब पूरी दुनिया आपसे जीतना चाहती है तब सिर्फ पिता ही ऐसा व्यक्ति होता है जो बेटे से हारना चाहता है। मां बाप का ऋण किसी से उतरने वाला नहीं है, जिस घर में मां नहीं होती है वो घर, घर नहीं होता है। संसार बाद में आपको जानेगा और पचानेगा परंतु मां 9 महीने पहले ही आपको जानती है और पहचानती है वो बच्चे के गर्भ में आते ही उसे लाड करने लग जाती है। जब बच्चा बडा होता है और कही से घर पर आता है तो मां उसका पेट देखती है कि बच्चा कही भूखा तो नही है। मां कभी अपनी संतान को भूखा नही सोने देती। यदि भगवान से भी पहले कोई तत्पर खडा होता है तो वो मां ही होती है। मां जितना त्याग दुनया में कोई नहीं कर सकता है। कथा के दौरान बडी संख्या में नगर के श्रद्धालु मौजूद रहे और कथा के बीच में भजनों पर थिरकते हुए प्रभु की भक्ति में लीन रहे।

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