हज़रत ईब्राहिम अलेहिस्सलाम की याद में मुस्लिम समाज कल मनाएगा ईदुल अजहा पर्व

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सलमान शैख़@ पेटलावद
मुस्लिम समाज द्वारा कुर्बानी का पर्व ईदुल अजहा कल मनाया जाएगा। अगर बारिश हुई तो नगर के पुराना बस स्टैंड पर स्थित जामा मस्जिद और नदी किनारे स्थित हुसैनी मस्जिद में में ईद की नमाज अदा की जाएगी, वहीं अगर मौसम खुला रहा तो फिर ईदगाह में सामूहिक रूप से सुबह साढ़े 8 बजे ईद की नमाज अदा होगी। नमाज के बाद दुआएं होगी और उसके बाद सभी एका-दूसरे को गले लगाकर ईदुल अजहा की मुबारकबाद पेश करेंगे।
समाजजन हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की कुर्बानी की याद में यह पर्व मनाएंगे और घरो-घर कुर्बानी करेंगे। नमाज अदा करने के बाद समाजजन कब्रस्तान जाकर वहां अपने खानदान के मरहूमों की कब्र पर फातेहा पढक़र उनके हक में दुआएं करेंगे। समाजजनो ने अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक बकरे बाजार से खरीदे थे, जिसकी कई दिनो देखभाल करने के बाद आज उसकी कुर्बानी दी जाएगी।
*क्यो मनाया जाता है यह पर्व-*
ईमाम अब्दुल खालिक साहब ने बताया मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानि ईदुल अजहा आता है। इसमें बकरे की कुर्बादी दी जाती है। दरअसल, कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। यह कहानी ईब्राहिम अलेहिस्सलाम की है। एक दिन उन्हें सपने में अल्लाह के दीदार नसीब हुए, उन्होने उनसे अपने बेटे ईस्माईल को कुर्बान करने को कहा। अल्लाह की बात मानकर ईब्राहिम अलेहिस्सलाम छूरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, तभी अल्लाह के फरिश्तो ने ईस्माईल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया। इस तरह उनके हाथो मेमने की जिबह होने के साथ पहली कुर्बानी हुई, अल्लाह इस कुर्बानी से राजी हो गए, तभी से बकरीद मनाई जाने लगी।
खास बात यह है कि कुर्बानी के लिए किसी भी बकरे का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कुर्बान किया जाने वाले बकरे को कोई बीमारी ना हो, उसकी आंखें, सींघ या कान बिल्कुल ठीक हो, वह दुबला-पतला ना हो. यही नहीं, बकरा बहुत छोटी उम्र का हो तो भी उसकी कुर्बानी नहीं की जा सकती। दो या चार दांत आने के बाद ही उसकी कुर्बानी दी जाती है।

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