यहां पढ़े-शीतला माता व्रत-पूजन विधि-समय व आरती

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झाबुआ लाइव के लिए रायपुरिया से आशीष त्रिवेदी की रिपोर्ट-
होली के बाद उत्तर भारत में प्रमुख पर्व शीतला सप्तमी अष्टमी का होता है। इस दिन बासी या एक दिन पूर्व बना हुआ भोजन किया जाता है। परिवार की महिलाएं सुख-समृद्धि की कामना, परिवार में खुशहाली, शांति व आर्थिक तरक्की के लिए इस व्रत को करती है व माता शीतला की पूतन व व्रत करती है। 
श्री भगवती चरित्र के अनुसार
अनन्त ब्रह्मांडों का जो अपने भृकुटि विलास मात्र से सर्जन पालन संहार करती है। उन महात्रिपुरसुन्दरी राजराजेश्वरी आद्याकालिका ने अपने भक्तों की रुचि ओर स्वभाव के अनुसार अपनी 9 करोड़ देवी मूर्तियां संसार में प्रगट की है। जिन्हें 9 करोड़ दुर्गा कहा जाता है।
श्री दुर्गा नवकोटी मूर्ति सहिता विश्वेश्वरि पाहिमाम-
ये भगवती की आत्मशक्ति स्वरुपिणी भगवती के ही स्वरूप है। ओर भगवती की शक्ति गण है। उनमे 9 दुर्गाएं प्रमुख है जिनमे सप्तमी तिथि की अधिस्ठात्री गर्दभ वाहिनी भगवती कालरात्रि सभी शक्ति गणों में प्रधान है। इनकी सेवा करने से काल का भय भी समाप्त हो जाता है। इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। भगवती कालरात्रि के ही 2 स्वरूप हैए एक तो दुष्टो का नाश करके पाखंडियों को दंड देने के लिए कालरात्रि ओर दूसरा अपने भक्तों की रोग पीड़ा का निवारण करने उनके यहां धन धान्य भरने के लिए श्रीशुभंकरी। भगवती कालरात्रि का शुभंकरी स्वरूप ही शीतला माता के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक नगर गांव में शीतलामाता का शक्तिपीठ अवश्य ही होता है, जो गांवों को रोग मुक्त करके भक्तो का कल्याण करती है। यही भगवती सभी ग्राम देवताओ की माता के स्वरूप में भी पूजी जाती है। इनकी प्रधान प्रतिमा कद साथ भगवती की अनेक शक्तियां भी निराकार स्वरूप में शिला के स्वरूप में पूजी जाती है। जिससे उनके उपासक पर भगवती की सभी शक्तियां प्रसन्न रहती है।
वर्णन कुछ इस प्रकार आया
दुर्गा सप्तशती मैं इनका वर्णन कुछ इस प्रकार आया है। व्याप्तं तयेत सकलं ब्रह्मांड मनुजेश्वर, भगवती की शक्तियों से ब्रह्मांड भरा हुआ है। महांकाल्या महाकाले महामारी स्वरूपया: सेव काली महामारी सैव सृष्टि र्भवत्यजा। भवकाले नृणां सैव लक्ष्मी व्रद्धिप्रदा गृहे। सेवा भावे तथा अलक्ष्मीरविनाशोप जायते,भगवती महाकाली की ये अजेय अविनाशी शक्तियां है, जो रुष्ट होने पर संसार को रोग शोक और महामारी बनकर आती है और विनाश कर देती है। ओर प्रसन्न होने पर लक्ष्मी, धन धान्य, की व्रद्धि करके सम्पन्न करके सभी महामारियों का नाश करके भक्तो को सुखी कर देती है।
इसलिए होती है ये पूजन
स्कंद पुराण में भगवान कार्तिकेय, अगस्त्यजी को भगवती का चरित्र सुनाते हुये कहते है कि एक बार अपने किसी भक्त का अपमान करने के कारण भगवती राजराजेश्वरी आद्याकाली की कालरात्रि नामक शीलता शक्ति ब्रह्मांड का विनाश करने को उद्यत हुई थी तब देवताओ ने महादेव ओर माता पार्वती से भगवती कालरात्रि के क्रोध को शांत करने की प्राथना की। तब भगवान महादेव ने माता पार्वती सहित जगदम्बा कालरात्रि का शीतला स्वरूप में पूजन करके भगवती कालरात्रि प्रत्येक स्थान पर विराजमान होकर समस्त बाधाओं से विश्व की रक्षा करने का वरदान मांगा था।
महादेव व मां पार्वती ने किया था ये पूजन
तब भगवान शंकर और मां पार्वतीजी ने चैत्र कृष्णप्रतिपदा से चैत्र कृष्ण सप्तमी तक जगदम्बा का पूजन किया था। कहते है की भगवती कालरात्रि ने उन्हें वरदान दिया था कि मधुमास के प्रारम्भ के इन सप्त दिवस में मेरी उग्र शक्तियों को शांत करने के लिये जो भी मनुष्य देवी या देवता मेरा ओर मेरे शक्ति गणों का शीतल जल से अभिषेक करेगा उसके घर मे कभी भी महामारी जनित बाधाएं ओर रोग जनित कष्ट नही आएंगे। मेरे आशीर्वाद से वो लोग निरोग रहकर धन धान्य से परिवार से समृद्ध रहेंगे। मेरे वाहन गर्दभ के बारह नामो से जो मेरे वाहन गर्दभ की पूजा स्तुति करेगा मेरी कृपा से उसके 64 रोग नष्ट होकर निरोग शरीर आरोग्य प्राप्त करेंगे।

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