चार्तुमास के दौरान बह रही है धर्म की गंगा

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झाबुआ लाइव के लिए पारा से अंतिम बलसोरा की रिपोर्ट-
अंतिम बलसोरा पारा। नगर में चार्तुमास हेतु विराजित श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी की सुशिष्या साध्वी भगवंत अविचल दृष्टाश्रीजी ने सोमवार को प्रवचन देते कहा कि आधुनिक शिक्षा में संस्कार नही हैं। साध्वीजी ने आधुनिक शिक्षा की कमियों को गिनाते कहा कि आज समाज में संस्कारों की कितनी कमी होती जा रही है इसका अंदाजा तो ऐसेे ही लग जाता है कि आजकल के माता-पिता को अपने बच्चो के लिए इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वे आधा घंटा भी उनके पास बैठकर उन्हें धर्म की शिक्षा दे समझाएं और अच्छे संस्कार दें। वह माता शत्रु के समान है जिसने अपने बालक को संस्कारित नहीं किया वह पिता बेरी के समान है जिसने अपने बच्चे को संस्कार नहीं दिए।
कॉन्वेंट में शिक्षा के नाम पर माता-पिता सोचते हैं कि अब हमारा बच्चा पढ़-लिख कर होशियार बन जाएगा और बडा आदमी बन जाएगा लेकिन वहां जो शिक्षा परोसी जाती है उसमें आत्मा कहां है। वहां तो जहर ही जहर है। संसार में बिगडने, भटकने के साधन बढ़ते जा रहे हैं और धार्मिक संस्कारों के साधन घटते जा रहे हैं। ये सब आपने विचार नहीं किया, आप उसे कितना ही संभाल कर रखिये लेकिन जब बचपन से ही बच्चा जैसे माहौल में पलता है, पढता है और जो सीखता है उसमें वे ही संस्कार आएंगे। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष जितेन्द्र कोठारी ने कहा की अगर हममे ज्ञान ही नहीं है कि अमुक पदार्थ में जीव है पानी में जीव है तो उनके प्रति हमारे मन दया कैसे जागेगी इसलिए जीवन में क्रिया करने से पहले विवेक का होना जरूरी है।
शिविर आरंभ
प्रचार मंत्री सुशील छाजेड़ ने बताया कि लोकसंत आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय जयंत सेन सूरीश्वरजी ने शिविरों के माध्यम से धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा दिया था और उसी का यह परिणाम है कि त्रिस्तुतिक पाट परंपरा में वर्तमान में लोकसंत का गच्छ सबसे बड़ा है। साथ ही साथ धार्मिक क्रियाओं में भी गुरुदेव ने समाज को एक से बढ़ कर एक धर्म धुरंधर दिए हैं। छाजेड़ ने बताया कि पारा में चार्तुमास करने पधारी साध्वीजी मसा अविचलद्रष्टा श्रीजी आदि ठाना 7 ने भी रविवार से धार्मिक शिविर का आयोजन आरंभ किया है। प्रतिदिन दोपहर में लगने वाले इस शिविर में धार्मिक ज्ञान के साथ जीवन में उपयोग होने वाले संस्कारों के बारे में भी विस्तृत समझाया जाएगा।

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