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रितेश गुप्ता, थांदला

थांदला। किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान के विषय में सत्य तथ्य व प्रामाणिकता का पता लगाए बिना उसे चमत्कार मान कर नतमस्तक हो जाना सही नही है। वास्तव में दुनिया में चमत्कार जैसा कुछ होता नही है अपितु हर घटना के पीछे कोई न कोई रहस्य अवश्य होता है जिसे समझने की आवश्यकता होती हैए लेकिन तात्कालिक भौतिक सुख की लालसा में अनेक व्यक्ति चमत्कार की दिशा में भागते रहते है और नाना प्रकार के दु:ख उठाते है। उक्त प्रेरणादायक प्रवचन जैनाचार्य उमेशमुनिजी के अंतेवासी शिष्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी के निश्रा में चातुर्मास हेतु विराजित सन्त मधुर गायक पूज्य गिरिशमुनिजी ने कहे। रविवारीय धार्मिक शिक्षण क्लास में युवाओं को प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा कि भारत विविध धर्म का प्रवर्तक रहा है जहाँ सत्य धर्म की पहचान इस सूत्र से हो जाती है कि हमारी तरह दुनिया मे सभी जीव जीना चाहते है इसलिए अहिंसा परम् धर्म है व जियो औऱ जीने दो यह मंत्र है। लेकिन बिल्ली रास्ता काट दे तो टोटका, दुकान की पेड़ी पर चढ़ते ही झुक जाना, निर्जीव वस्तु पर पैर पड़ते ही झुक जाना, सभी देवालयों पर नतमस्तक होना ज्योतिष, तांत्रिक वास्तु पर विश्वास कर मिथ्या मान्यताओं में फंसकर जीव स्वयं अनेक कष्ट का उपार्जन कर लेता है। उन्होंने कहा जिस प्रकार थाली में रखा गुड़ गोबर एक समझ कर खाया नही जाता वैसे ही मनुष्य मनन करने के बजाय अंध श्रद्धा से दु:ख का उपार्जन ही करता है। उन्होंने कहा कि अशुभ निमित्त से विचारशील मनुष्य देखा देखी करते हुए मिथ्या मान्यताओं के भंवर में फंसता चला जा रहा है जबकि उसे सत्य का परीक्षण करते हुए उसे स्वीकार करना चाहिए। जो परभव नही मानता है, पुनर्जन्म नही मानता है, कर्म सिद्धांत को झुठलाता है यहां तक कि जीव के अस्तित्व पर भी प्रश्न खड़े करता है वह मिथ्या दृष्टि होता है व भव भव भटकना पड़ सकता है जबकि इसके विपरीत विषय कषाय पर जय पाने वाले अरिहंत सिद्ध को अपना आराध्य मानेए 5 महाव्रत, 5 समिति, 3 गुप्ति युक्त निर्ग्रन्थ साधु को धर्म गुरु व केवली भगवंत द्वारा विवेचित धर्म को धर्म मानता है उसे सम्यग दृष्टि जीव कहते है जो शीघ्र मोक्षगामी होता है। वह किसी चमत्कार को नमस्कार करने के बजाय नमस्कार मन्त्र में विश्वास करता हुआ आत्महित साधता है। धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पुज्य अभयमुनिजी ने कहा कि जिस प्रकार तीव्र धूप आदि से थका हुआ मेढंक भुजंग की छाव को सुख मान लेता है वैसे ही संसार रूपी भुजंग को नादान मनुष्य सुख रुप समझ बैठा है जबकि वह तो जीवन हरने वाला है। निर्णय तो स्वयं मनुष्य को ही करना है कि उसे इस क्षणिक सुख को पाना है या फिर वैराग्य भाव को बढ़ाते हुए शाश्वत सुख का मार्ग अपनाना है। दोपहर को बच्चों के लिए भी संस्कार शिविर का आयोजन किया गया जिसमें पुज्य अभयमुनीए व शुभेषमुनिजी व साध्वी पुज्या श्रीनिखिलशीलाजी आदि ठाणा ने बच्चों को संस्कारित किया।
नवपद की आराधना आयम्बिल की साधना
प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी की पावन निश्रा में नवपद ओलिजी के तीसरे दिन संघ नायक के गुणों का स्मरण करते हुए पूज्य श्री ने अणुश्री के अनमोल साहित्य प्रार्थना संग्रह से आचार्य स्तुति की विवेचना करते हुए कहा कि 36 गुणों व 8 सम्पदा से युक्त आचार्य संघ के कुशल संचालक होते है वे संघरूपी तीर्थ को धर्म में स्थापित करते हुए विचरण करते है। उन्होंने 30 महामोहनीय कर्म के प्रथम बोल की विवेचना भी की वही पूज्य धर्मदासजी के जीवन चारित्र का श्रोताओं को रसपान कराते हुए उनके बाल जीवन का वर्णन किया। पूज्य श्री के वचन पुण्य से 50 से ज्यादा तपस्वी आयम्बिलए निवि तप की आराधना कर रहे है।
27 को धर्मदासजी की दीक्षा जयंती आयम्बिल दिवस के रूप में मनायें
धर्मसभा का संचालन करते हुए संघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत ने कहा कि प्रवर्तक देव ने आगामी 27 अक्टोबर को धर्मदास सम्प्रदाय के नायक पूज्य धर्मदासजी की दीक्षा जयंती पर आयम्बिल तप की प्रेरणा दी है जिसे सकल संघ ने शिरोधार्य करते हुए आगामी 27 अक्टोबर को ऐतिहासिक आयम्बिल दिवस के रुप में मनाने को लालयीत है। इस दिन थांदला के सकल जैन समाज के साथ जेनेत्तर बन्धु भी आयम्बिल तप करने का संकल्प लेंगे। उन सभी तपस्वियों के तप का लाभ शांता देवी, राकेश कुमार, प्रफुल्ल कुमार नाकुसेठ तलेरा परिवार ने लिया है जबकि नवपद ओलिजी धर्मलता महिला मंडल द्वारा संचालित की जा रही है। आज की धर्म प्रभावना का लाभ राजलबाई कनकमल गादिया परिवार ने लिया वही बाहर से गुरु दर्शन को पधारें अतिथियों के आतिथ्य सत्कार का लाभ श्रीसंघ थांदला ने लिया। उक्त जानकारी संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने दी।

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