इंतहा हो गई..इंतजार की..इनकी भी सुनो सरकार; क्या यही है सिस्टम …?

May

सलमान शैख़@ झाबुआ Live
वह कहते है ना कि सरकारी कार्य कोई सा भी हुआ, उसमें लेटलतीफी होती है। चाहे फिर वह किसी हादसे के बाद शासकीय योजनाओ का लाभ देने या फिर शासन की ओर से सहायता देने की बात हो। सभी कार्यो में कहीं न कहीं रूकावटे जरूर आती है।
सरकार चाहे कागजों में विकास के कितने भी दावे कर ले लेकिन धरातल पर अभी भी ऐसे कई परिवार हैं, जो शासन-प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा दिये गए दंश को झेलने को मजबूर है।
ऐसे ही एक परिवार के बारे में हम आपको बता रहे है, जो 5 वर्ष पूर्व हुए ब्लास्ट में परिवार की रीढ़ को खो बैठा था, तब से लगाकर आज भी पीड़ित परिवार को जो मिलना था वह नही मिल पाया और जो कुछ मिला उसमें भी परेशान होना पड़ रहा है। अब इसे सिस्टम की लापरवाही कहे या फिर उन पीड़ित परिवार की बदकिस्मती।
अब ओर कितना सब्र करे, सब्र करते-करते 1 साल होने को आ गया, लेकिन वेतन के ठिकाने नही…!! मामा शिवराज आपके दिल यानि पेटलावद में आपकी बहने शासन-प्रशासन की लालफीताशाही के कारण बहुत परेशान है। कछुए की तरह रेंगते सिस्टम से इनकी परेशानी और बढ़ गई है।
जी हां, हम बात कर रहे है गत 5 वर्ष पहले हुए पेटलावद में ब्लास्ट में दिवंगत हुए बद्दीलाल परमार के परिवार की। अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़कर गए बद्दीलाल ने यह नही सोचा होगा कि उनके जाने के बाद उनके परिवार का क्या होगा..? पीड़ित परिवार को जो नोकरी का वायदा सीएम शिवराज ने किए तो थे लेकिन उन्हें उनके अनुरूप नोकरी नही मिली ओर फिर मिली भी तो शासकीय स्कूलों में रसोइन की। उसमें भी हर बार वेतन के लिये इन पीड़ित महिलाओं को परेशान होना पड़ रहा है।
भीषण हादसे के बाद ढांढस बंधाते पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कई तरह की घोषणाएं कर गए थे, लेकिन उन घोषणाओं पर अमल जिस समय होना था उस समय नही हुआ।
आपको बता दे कि बद्दीलाल की पत्नी को रसोइन की नोकरी शासन ने दी थी, लेकिन उन्हें नोकरी देने के बाद उन्हें कभी इस स्कूल तो कभी उस स्कूल काम के लिए दौड़ाया गया और अब उन्हें इसी काम के लिए पेटलावद से करीब 6 किमी दूर बोराली स्कूल में भेज डियास गया। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन 11 माह का लंबा समय बीत गया और उन्हें वेतन नही मिल पाया। यह सरकारी सिस्टम की घोर लापरवाही को उजागर कर रहा है। आखिर क्यों उन्हें 11 माह से वेतन नही दिया गया यह बड़ा सवाल है।
अभी आने वाले कुछ दिनों बाद दिवाली का पर्व आने वाला है। उनका भी तो घर है वह कैसे दिवाली मनाएंगे। घर पर खाने के लाले ऊपर से वेतन में लेटलतीफी के कारण रामकन्याबाई बेहद परेशान है। वहीं मामा शिवराज द्वारा उन्हें उस समय पक्का मकान भी देने का वायदा किया था, लेकिन उसके भी आज तक पते नही है, सूची में नाम आये को 2 साल हो गए लेकिन राशि नही डल पाई। तो सवाल लाज़मी है सिस्टम पर, कि कैसे सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग इसमे बैठे अधिकारी करते है और उसका खामियाजा ऐसे आम और गरीब परिवार को भुगतना पड़ता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहने को तो अपने आप को बहनों का भाई और बेटियों का मामा कहते हैं पर सत्यता यह है कि उनके शासनकाल में महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है!!