आधुनिकता की दौड़ में विलुप्त होती परंपराएं, विलुप्त होता संझा पर्व

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योगेन्द्र राठौड़, सोंडवा

श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण कार्य किया जाता है। ये तो सब जानते हैं लेकिन इन दिनो संजा बनाने की भी परंपरा रही है। संझा पर्व का उत्साह अब इस आदिवासी अंचल में लगभग खत्म होने को है। कुंआरी कन्याएं गोबर से घर की दीवार पर बनाती है संझा बाई, 16 दिनों तक युवतियां करती थी आरती और आराधना।

श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण कार्य किया जाता है। ये तो सब जानते हैं लेकिन इन दिनो संजा बनाने की भी परंपरा रही है। जिसके बारे में हर कोई नहीं जानता है। आज भी कई इलाकों में घर की चौपाल पर संजा बनाई जाती है। भाद्रपद माह की शुक्ल पूर्णिमा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक कुंआरी कन्याएं द्वारा संजा पर्व मनाया जाता है। जो मालवा-निमाड़, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि इलाकों में प्रचलित है।श्राद्ध पक्ष में 16 दिन तक रोज लड़कियां दिवारों पर गोबर से आकृतियां बनाती हैं। जिसे संजा कहा जाता है। इन दिनों संजा माता का पूजन कर गीत गाए जाते हैं। प्रसाद का भोग लगाने से पहले सभी सहेलियों को प्रसाद बताना होता है जिसे ताड़ना कहते हैं। इस पर्व के आखरी दिन यानी सर्व पितृ अमावस्या को 16 दिन बनाई गई सूखी आकृतियों को नदी में विसर्जित किया जाता है। संजा पर्व के दिनों में रोजाना शाम को कुंआरी कन्याएं घर-घर जाकर कई गीत गाकर संजादेवी को मनाती हैं। प्रसाद वितरण किया जाता हैं। इस पर्व को लेकर खासकर ग्रामीण अंचल में युवतियों में खासा उत्साह रहता है।

जानिए संजा पर गाए जाने वाले गीत…

‘संझा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का।’ ‘संझा तू थारा घर जा कि थारी मां मारेगी कि कूटेगी, चांद गयो गुजरात, हरणी का बड़ा-बड़ा दांत, कि छोरा-छोरी डरपेगा भई डरपेगा।’

संझा बाई को ससुराल जाने का संदेश देते हुए ये गीत गाया जाता है

‘छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाय, जिसमें बैठी संझा बाई सासरे जाय, घाघरो घमकाती जाय, लूगड़ो लटकाती जाय, बिछिया बजाती जाय’। ‘म्हारा आकड़ा सुनार, म्हारा बाकड़ा सुनार म्हारी नथनी घड़ई दो मालवा जाऊं प्रतिदिन युवतियां संजाबाई के गीत गाकर रोज अलग अलग प्रकार की प्रसाद भी वितरित करी जाती थी । श्राद्ध शुरू हो ते ही संजाबाई का यह पर्व शुरू हो जाता है। शाम ढलते ही युवतियां संजाबाई बनाने व उनकी पूजा करने की तैयारी शुरू कर देती थी । 16 दिन तक संजा बाई के गीत सुनाई देंते थे। जो अब इस क्षेत्र में ना के बराबर सूनाई देते हैं।