झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
अलविदा अलविदा अलविदा है माह-ए-रमजान अब अलविदा हैं माह-ए-रमजान अब…अलविदा है। मुस्लिम धर्मावलंबियो ने जामा मस्जिद में माहे रमजान के आखरी जुमे (जुमा तुलविदा) पर शहर के ईमाम अब्दुल खालिक साहब से अलविदा का कुतबा सुना। जब कुतबा पढ़ा गया तो सभी की आंखे नम हो गई। रमजान के आखरी जुमे के मौके पर ईमाम अब्दुल खालिक साहब ने तकरीर फरमाते हुए कहा पवित्र माह रमजान सब्र का महीना हैं और इसका बदला जन्नत हैं। रोजदार इस माह में सिर्फ खुदा को राजी करने के लिए अपनी सभी मन की चाहतो को छोड़ दे तो उसे इसका बदला जन्नत मिलता हैं। ऐ ईमान वालो तुम सब्र करो, सब्र का बदला जन्नत है।
ईमाम साहब ने आगे कहा इसे हमदर्दी का माह भी कहते हैं। रोजा रखने के दौरान इंसान को भूख, प्यास आदि तकलीफ का तजुर्बा हो जाता हैं। वह गरीबो को के तकलीफ, उनकी प्यास और भूख को समझ लेता हैं। तकलीफ में गरीबों को कैसे जीवन गुजारना पड़ता। प्यारे रसूल (स.व.) उनकी हम गुनाहगार उम्मत के लिए अगाह से दुआ करते हैं और हर उम्मीद पूरी कर हमारी मुश्किलों को हल करते हैं।
अल्लाह और बंदे के बीच छिपा राज है रोजा:
बंगाल से आए मौलाना बदरूल हसन जो ईमाम अब्दुल खालिक साहब के उस्ताद है उन्होने तकरीर फरमाते हुए रोजा अल्लाह और बंदे के बीच का छिपा हुआ राज है। इसे सिर्फ अल्लाह जानता है या फिर बंदा। पवित्र माह रमजान में रोजा ही ऐसी इबादत है। जिसका बदला खुद अल्लाह देता है। इसलिए इस माह में कोई गलती नहीं करनी चाहिए। जिसने मां-बाप की खिदमत की वह इंसान दुनिया में भी खुश और आखिरत में खुश होगा। नानपुर आलीराजपुर से आए ईमाम गुुलाब नबी ने कहा जिस व्यक्ति ने अपने मां-बाप की खिदमत की वो द़ुनिया में खुश और आखिरत में भी खुश होगा और वो व्यक्ति जन्नति होगा। शराबी, माता-पिता का फरमान नहीं मानने वाले, रिश्तों को खत्म करने वाले, लोगों से जलन करने वालों को अल्लाह माफ नहीं करता।
नमाज अदा करने बड़ी संख्या में पहुंचे समाज के लोग-
शुक्रवार को माह का आखिरी जुमा (जमात उलविदा) हुआ। रमजान के आखिरी जुमे का खास महत्व होता है। इस दिन सालभर के दौरान छूटी नमाज (कयाजे उमरी) को भी पढक़र समाजजन ने धर्म कमाया। पवित्र माह के आखिरी जुमे में नगर सहित झाबुआ, रतलाम, बदनावर, रायपुरिया, बामनिया, सारंगी, करवड़, बरवेट, झकनावदा सहित जगह-जगह से बड़ी संख्या में समाजजनो ने यहां की जामा मस्जिद में आकर सामूहिक नमाज अदा की।
हजार महीनो की रात से बेहतर है शबे कद्र: ईमाम अब्दुल खालिक साहब
अल्लाह ने शबे कद्र की रात को हजार महीनो की रातों से बेहतर करार दिया हैं। यह रात इबादत में अपना अलग ही मुकाम रखती हैं। अल्लाह ने 23 साल की मुद्दत से इस रात में कुरआन को हमारे आका (स.व.) की बारगाह में नाजील फरमाया। इस रात में अगाह हमारी जायज दुआओं नेक मकसद में कामयाबी देता है। शराबी, माता-पिता का फरमान नहीं मानने वाले, रिश्तों को खत्म करने वाले, लोगों से जलन करने वालों को अल्लाह माफ नहीं करता। यह बाते शहर के ईमाम अब्दुल खालिक साहब ने कही। आप गुरूवार रात साढ़े 10 बजे शबे कद्र की रात जामा मस्जिद में समाजजनो के बीच तकरीर में बोल रहे थे। आपने कहा लयलतुलकद्र की रात की निशानियों में यह है कि चरिन्द-परिन्द सभी खामोश रहते हैं। एक अजीब तरह का सुकून फिजा में महसूस किया जाता है।
रात में मसजिदो में हुए कई आयोजन:
समाज ने पवित्र माह रमजान मुबारक में आने वाली शबे कद्र की रात इबादत में गुजारी। इस अवसर पर मस्जिद की सजावट की गई। शहर की दोनो मस्जिदों में रात में समाज के लोगो ने अल्लाह की इबादत की। मुस्लिम समाज के बुजुर्गो से लेकर बच्चों भी बड़ी संख्या में यहां नमाज अदा करने पहुचेे।
ईशा की नमाज के बाद तरावीह (कुरआन की तिलावत) पढ़ी गई। उसके बाद मस्जिद में शहर ईमाम इस रात महत्व के बारे में समाज के लोगो को बताया। पुरूषो के साथ महिलाएं और बालिकाओ ने भी इस रात को घर पर जागकर खुदा की ईबादत कर दुआएं मांगी। दोनो मस्जिदो में स्वल्पहार के बाद सामूहिक सहरी का आयोजन कर रोजेदारो को सहरी करवाई गई।