अधिकारियों, सरपंच-सचिव की मिलीभगत से शौचालय निर्माण के नाम पर शासन को लगा रहे चूना, हितग्राही परेशान

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हरीश राठौड़, पेटलावद
मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को आगे बढाने और हर घर मे शौचालय बनाने के लिए प्रशासन के आला अधिकारियों पर कसावट की जिसके चलते झाबुआ जिले मे पेटलावद तहसील को 2 अक्टूबर के पूर्व पूर्ण ओडीएफ घोषित करने और हर ग्राम पंचायत मे शौचालय संपूर्ण कर हितग्राही को लाभ लेने का निर्देश गत दिनों जारी किया गया है, और जिसके चलते पेटलावद क्षेत्र के मुख्यकार्यापालन अधिकारी द्वारा काम मे लापरवाही करने वाले सरंपच-सचिव के खिलाफ सख्त रवैया भी अपना लिया हैं किन्तु इस ओडीएफ व शौचालय के निर्माण में शासन द्वारा किस तरीके से हितग्राहियों के नाम पर बंदर बाट मची हैं इसका कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं
ये है शासन के निर्देश
शासन के द्धारा प्रत्येक ग्रामीण के घर शौचालय निमार्ण करने और इसका उपयोग करने हेतु हितग्राही को प्रेरित करने की योजना शासन द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत बनायी है। और प्रत्येक हितग्राही को 12 हजार की राशि सीधे उसके खाते में डालने का स्पष्ठ निदेश है किन्तु क्षेत्र में अधिकारियों-सरपंचों और सचिवों की मिलीभगत के चलते ना तो हितग्राहियो से शौचालय का निमार्ण करवाया जा रहा है और न ही उनके खाते में पैसा डाला जा रहा हैं। अधिकारियों की माने तो हितग्रहियों के खाते मे पैसा इस लिए नहीं डाला जा रहा है क्योंकि हितग्रहियों द्वारा शौचालय का निर्माण ही नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते सरंपच, सचिवों और निजी ठेकेदारों और वेंडरों के माध्यम से शौचालय बनवाये जा रहे है। इन शौचालय का बनाने का खर्चा 7 से 8 हजार रूपये प्रति शौचालय आ रहा है और शासन द्वारा 12 हजार रूपये की राशि वेेंडर या ठेकेदार के खाते मे डालकर बची राशि की बंदर बाट की जा रही है।
लगने वाली निमार्ण सामग्री पर एक नजर
निमार्ण ठेकेदार और सरकारी इंजीनिर की माने तो एक शौचालय के निर्माण में 120 से 130 (गुजराती पेटर्न की ईंट) बजार मूल्य लगभग 4 हजार रूपये और दरवाजा बाजार मूल्य लगभग 1 हजार रूपये, सीट बाजार मूल्य लगभग 500 रूपये, उपर का शेड 500 तथा शौचालय निर्माण की मजदूरी 1500 रूपये कुल खर्च लगभग 8 हजार रूपये हो रहा है, किंतु ठेकेदार व वेंडर के खाते मे 12 हजार डाले जा रहे है। इस तरह से जिस शौचालय का निर्माण खर्च 8 हजार रूपये आ रहा है। उसके 12 हजार शासन द्वारा दिये जा रहे है। लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत के चलते वो भी हितग्राही के खाते में नहीं जा रहे जिससे सीधा पता चल रहा है कि शेष राशि का उपयोग कहा हो रहा है। ऐसी स्थिति में मोदी जी के स्वच्छता अभियान पर भ्रष्टाचार की गंदगी हावी हो गई है और सरकारी कर्मचारी, सरंपच, सचिव व ठेकेदार आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं।
ग्रामीण परेशान
ग्रामीण परेशान हो रहे है। कई लोगों ने शौचालय का निर्माण कर लिया है किंतु उनके पैसे नहीं दिए जा रहे है। जिस कारण से वे कई महिनों से जनपद और पंचायत के चक्कर काट रहे है किंतु सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसा ही एक मामला ग्राम पंचायत टोडी का आया है जिसमें सोमा डामर ने शौचालय का निर्माण चार माह पहले कर लिया किंतु उसे उसकी प्रोत्साहन राशि नहीं दी जा रही है। वह राशि प्राप्त करने के लिए परेशान हो रहा है। कई बार शिकायत कर दी किंतु उसे संतुष्टी पूर्ण जवाब नहीं मिल पा रहा है। जबकि बाहर से आ रहे ठेकेदारों के दूसरे दिन भुगतान हो रहे है क्योंकि वह कमीशन दे रहे है और गरीब व्यक्ति जिसने शौचालय का निर्माण करा है वह परेशान हो रहा है।आखिर यह कैसी जनपद की निगरानी है। आखिर सीईओं का क्या काम है। परेशान लोगों की सहायता करना किंतु वह सुनने को ही तैयार नहीं है।

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