हम इस्लामी है हमसे इस्लाम जिंदा है, हिंदुस्तान है इसलिए मुसलमान जिंदा है

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सलमान शैख़@ झाबुआ Live
पेटलावद। मंगते है करम उनका सदा मांग रहे है.. दिन रात मदिने की दुआ मांग रहे है..।… मध्यप्रदेश के भोपाल के मुकर्रम वारसी ने जब ये शेर पढ़ा तो आयोजन स्थल तालियों से गूंज उठा।
जी हां, खुशनुमे सुहाने मौसम के साथ, इत्र की खुश्बु की महक के बीच सूर और ताल की से संगत मिलाती कव्वाल पार्टी, सूफी संतो और हर कलाम पर कव्वाल पर नोटो की बारिश करते बाहर से आए ख्वाजा के दीवानो और नबी से मोहब्बत करने वाले। यह नजारा था हजरत दातार ओढ़ी वाले दादा रेहमतुल्लाह अलैह के 16वें सालाना उर्स मुबारक का।
शुक्रवार रात सरकार के दरबार में महफिल ए सिमां अपने शबाब पर रही। पहले जावरा (मप्र) से तशरीफ लाए प्रसिद्ध कव्वाल यूसूफ फारूख साहब ने मंच संभाला। इसके बाद भोपाल (मप्र) से आए हाजी मुकर्रम वारसी साहब ने मंच संभालकर अपने कलाम पेश किए। उन्होनें ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि हर आशिकाना रसूल झूम उठा। उन्होनें रसूल के नाम कलाम सुनाते हुए कहा- सब सर के बल आते है यहां, ये ऐसी हस्ती है शेर अली बाबा के रोजे पर ये रहमत बरसती है, फक्र है कि हम हिंदुस्तानी है, तो पांडाल तालियों से गूंज उठा। कव्वाल पार्टी एक के बाद एक वे कलाम पेश करते चले गए और दाद देने वालों ने भी जमकर नजराना लुटाया।
जावरा (मप्र) से तशरीफ लाए यूसूफ फारूक ने हम्द की पेशकश के साथ महफिल ए समां का आगाज किया। उन्होनें संगीत के स्वर लहरियों के साथ अपना कलाम कुछ इस तरह सुनाया- ये कैसा जादू तूने निगाहे यार किया..मै बेकरार न था तूने बेकरार किया। इसके बाद प्यारे नबी की शान में नात ए रसूल पेश की। डेढ़ घंटे से अधिक समय तक उन्होंने मंच संभाला। रात करीबन 3 बजे के बाद गजलो का दौर शुरू हुआ, जिसमें कव्वालों ने प्रेम मोहब्बत से भरपूर गजलें पेश कर श्रोताओं का मनोरंजन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन झाबुआ से आए रियाज काजी साहब ने किया। कार्यक्रम में इदौर, झाबुआ, राणापुर, भाभरा, थांदला, रतलाम, धार, कुशलगढ़ (राजस्थान), दाहोद (गुजरात) सहित कई जगहो से श्रद्धालु कव्वाली की महफिल सुनने के लिए यहां पहुंचे थे। उर्स कमेटी ने सभी का तहेदिल से आभार माना है।
*सूफी संतो ने बढ़ाई महफील की रौनक-*
महफील एक सिमां में कलियर साबीर ए पाक से आए बाबा हापीजउद्दीन, अर्चना दीदी वारसी, फरजाना आपा (बियाबानी), कलीम बाबा (रतलाम), मुश्ताक बाबा (सागोर), साकीर अली शाह (मण्डलेश्वर) सहित कई सूफी संत मौजूद थे। कव्वाली सुनने आए श्रद्धालुओं के उपर गुलाब के फुलो की बारिश भी की गई।
*मुकर्रम वारसी:*
*नबी की शान में पेश की नातेपाक-*
हुस्न पे जिनके जग मतवाला नाम है जिनका कमली वाला..मंगते खाली हाथ न लोटे..,
कितनी मिली खैरात न पूछो, उनका करम फिर उनका करम है..उनके करम की बात ना पूछो, उनके मंगते है उनके मंगते है।
*ख्वाजा की शान में मनकबत पेश की:*
कोई कोम हो, कोई जात हो, कोई धर्म हो.. लेकिन ख्वाजा सबको देते है।
सबके लिए अजमेर का दरवाजा खुला है, ख्वाजा मेरा धनवान है धन बांट रहा है।
*पीर की शान में पेश किया कलाम-*
मुझमे हर रंग अब तुम्हारा है.., अब तो कह दो कि तू हमारा।
जिंदगी सिर्फ एक सहारा है.., हम तो तेरे है तू हमारा है।
*दर्द सह कर भी तूझे याद किए जाते है:*
दर्द सहकर भी तूझे याद किए जाते है.., तेरे दिवाने तूझे याद किए जाते है..।
तूझे नवाजे न नवाजे तेरी मर्जी जाना, हम तो सजदे तेरी चोखट पर किए जाते है।
*यूसूफ फारूख:*
*नबी की शान में कलाम पेश किया-*
जिधर कभी खोल के कुरआन के पारे देखे.., हमे घर बेठे मोहम्मद (सव) के नजारे दिखे।
*ख्वाजा की शान में मनकबत पेश की-*
जिधर भी देखिए ख्वाजा का बोल-बाला है.., अताए ख्वाजा का अंदाज ही निराला है।
*वाह क्या जुदो करम है शाहे बतहा तेरा..-*
वाह क्या जुदो करम है शाहे बतहा तेरा.., नही सुनता ही नही मांगने वाला तेरा..।
फर्श वाले तेरी शोकत का उलू क्या जाने.., खुशरवा अर्श पे उठता हे फरेरा तेरा।