झाबुआ Live पड़ताल: अस्तित्व खोने की ओर तेजी से अग्रसर हैं प्राचीन कुएं-बावड़ियां

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Salman Shaikh@ Petlawad..

एक समय था जब कुओ और बावडिय़ों से ही नगरवासियों की प्यास बूझती थी। अब तालाब से नलों के द्वारा घर-घर पानी पहुंचने लगा ओर पुराने कुएं जो आज भी अच्छा पानी दे सकते हैं कि ओर किसी का ध्यान नही हैं। इससे इनके अस्तित्व पर संकट पैदा होता जा रहा है। नतीजतन कुएं कचरा घर की शक्ल ले चुके हैं। समय-समय पर देखरेख होती तो ओर समय-समय पर सफाई की गई होती तो आज इसका जलस्तर अच्छा होता। पानी बचाने की ओर नपा का ध्यान कम हैं। अभी तक इसे लेकर एक भी प्रोजेक्ट तैयार नही हुआ।

जिन पेयजल स्त्रोतो के पनघटो पर कभी पानी के लिए लोगो की आवाजाही बनी रहती थी, आज सन्नाटा पसरा हुआ है। यह प्राचीन कुएं, बावडिय़ा सालभर लोगो की प्यास बझाने के काम आते थे। आज हालत यह है कि सरकारी मशीनरी को इन स्त्रोतो की जरा भी फिक्र नही है। आम नागरिको को भी इसकी परवाह नही है। यदि इन जलस्त्रोतो की ठीक से देखभाल की जाए, तो हजारो लोगो की इनसे प्यास बुझ सकती है।

सरकारी बैठको में पानी समस्या पर चर्चा के समय कभी-कभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन कुओं और बावडिय़ो की उपयोगिता, इसकी ठीक से सार-संभाल पर बात तो कर लेते है, लेकिन बैठक तक ही उसे याद रखते है। बाद में इन कुओं, बावडिय़ो को सब भूल जाते है। गर्मी में वाटर लेवल नीचे जाने पर कई जगह पेयजल संकट उत्पन्न हो जाता है। तब लोग आंदोलन करते है तो प्रशासन को इनकी याद आती है।

1. नाना बां तंबोली की बावड़ी-

नगर के रहने वाले नानूराम तंबोली ने पंपावती नदी के तट के करीब 100 साल पहले एक बावड़ी बनाई थी। इस बावड़ी की खासियत यह थी कि उस समय फ्रीज तो हुआ नही करते थे, लेकिन इसका पानी इतना ठंडा रहता था कि पूरा नगर यहां पानी भरने के लिए आता था। नानूरामजी के स्वर्गवास के बाद इस बावड़ी का नाम नाना बां की बावड़ी से फेमस हो गया। कई वर्षो तक लोग इससे पानी लेते रहे, लेकिन धीरे-धीरे देखरेख के अभाव में यह बावड़ी जीर्ण-शीर्ण हो गई और पूरी तरह विलुप्त हो गई। जिसके कारण नाना बा की बावड़ी अब कहानीयो में सीमटकर रह गई।

2. पंचोली बावड़ी और लुहारिया कुआं-

गुर्जर समाज के साथ अन्य समाजो के सदस्यो ने मिलकर तेजाजी मंदिर के सामने सन् 1964 में एक बावड़ी का निर्माण किया था। इसी के पास लुहारिया कुआं भी बनाया गया। एक समय था जब इन दोनो जगह से पूरे पेटलावद के लिए पानी आता था, लेकिन यह भी दुर्दशा का शिकार हो गए और देखरेख नही होने के कारण पंचोली बावड़ी ने कूड़े का रूप ले लिया। आज इस जगह केवल गंदगी ही गंदगी पसरी पड़ी रहती है।

3. निलकंठेश्वर महादेव मंदिर का कुआं: पानी हैं फिर भी कुआं बना कचरा घर-

नगर में स्थित निलकंठेश्वर महादेव मंदिर परिसर में स्थित एक कुआं हैं। जो पूरी तरह कचराघर बन गया हैं। लोग सारा कुड़ा इसमें डालते हैं। ऐसा नही कि कुआं सूखा हैं। इसमें आज भी पानी हैं। बस, उपयोग नही हो पा रहा। इसमें गंदगी जमा करने में श्रद्धालु भी जिम्मेदार हैं। इसकी सफाई कर पानी मंदिर के उपयोग के साथ आसपास के तीन वार्डों के लिए भी उपयोगी साबित होगा।

4. मुक्तिधाम कुआं: नही कर रहे पानी का उपयोग-

मुक्तिधाम का कुआं भरा हुआ हैं। इसके पानी का उपयोग ही नही हो रहा। लोगों ने इसे कचरा घर बना दिया। इसकी व्यवस्थित सफाई हो तो इसका प्रयोग अंतिम यात्रा में शामील होने वाले लोगों के लिए हो सकता हैं। साथ ईट भट्टों वालों को भी पानी विक्रय कर नपं अपनी आय बढा सकती हैं।

प्राचीन पेजल स्त्रोत देखरेख के अभाव में बदहाल-

समाजसेवी ओर पूर्व पार्षद ओम सोनी ने बताया देखरेख के अभाव में ये प्राचीन पेयजल स्त्रोत बदहाल हो गए है। अब महज सिर्फ कचरा-पात्र बनकर रह गए है। जो योजनाएं बनाई गई वह महज कागजी साबित हुई। जिसके कारण प्राचीन कुओं और बावडिय़ो का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।

मेरे पिताजी ने बनाई थी बावड़ी, लेकिन आज बन गई कुड़ाघर-

लुणचंद कुमारावत ने बताया मेरे पिताजी ने 100 वर्ष पहले बावड़ी का निर्माण किया था, लेकिन सारसंभाल के अभाव में बावड़ी का पानी दूषित हो गया है। यह केवल कचरा पात्र बन गया है। यहां आज भी पानी है। अगर इन जलस्त्रोतो की सार-संभाल की जाए, तो पेयजल की काफी समस्या का समाधान हो सकता है। तंबोली बावड़ी के पास एक धलाकुंड था, जिससे नगरवासी दिन-रात पानी भरते थे, लेकिन वह भी विलुप्त हो गया।

प्रयास जारी हैं-

सीएमओ रूपकिशोर कुलश्रेष्ठ ने बताया कुओं की सफाई की ओर परिषद कार्य कर रही हैं। जल्द ही इस ओर सफाई कार्य किया जाएगा।