गमगीन माहौल में हुआ कोटा हादसे में दिवंगत हुए 3 श्रमिको का अंतिम संस्कार, विधायक भी पहुंचे जूनापानी, परिजनों को बंधाई ढांढस ….

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सलमान शैख@ झाबुआ Live
कोई घर बनाने के लिए पैसे जुटाने की तमन्ना के साथ, तो कोई बहन के हाथ पीले करने के लिए पैसे कमाने के लिए परदेस गया था। इन सब की हसरतें तो अधूरी रह ही गईं, अब वे अपनों का मुंह भी नहीं देख पाएंगे।
बीते मंगलवार को कोटा के बलिता गांव में सिवरेज लाइन की सफाई के दौरान हुए हादसे में दिवंगत हुए झाबुआ जिले के पेटलावद के जूनापानी गांव के तीन श्रमिको को उनके गांव लाया गया। यहां गमगीन माहौल में उनका अंतिम संस्कार किया गया। गांव के तीन जवान युवकों की मौत से पूरे गांव में शोक का वातावरण है। उनके अंतिम संस्कार में विधायक वालसिंह मेड़ा अपने कार्यकर्ताओं के साथ पहुंचे और तीनों श्रमिको को भावमिनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए परिवार को ढांढस बंधाई और उन्हें सांत्वना दिलाई। साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार की ओर से मिलने वाली मुआवजा राशि मुहैया कराने का वे हर संभव प्रयास करेंगे। वहीं भाजपा अजजा मोर्चा जिलाध्यक्ष अजमेर सिंह भूरिया, प्रदीप सिंह तारखेड़ी सहित स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी अंतिम संस्कार में पहुंचे और श्रद्धांजलि अर्पित की।
तीनों युवक जवान थे:
बेरोजगारी काट रहे युवा दूसरे शहरों में ये सोचकर जाते हैं कि पैसे कमाकर घरवालों को बेहतर जीवन देंगे, लेकिन कई ममाले ऐसे भी आए कि बेचारे लौट ही नहीं पाए। कोटा में हुए हादसे में भी जिन 3 लोगो की जान गई उनकी उम्र 20,24 ओर 25 थी।
ऐसा नहीं है कि राज्य के बाहर कामगारों की मौत की यह पहली घटना है। दूसरे प्रदेशों में आदिवासी मजदूरों की मौत की खबरें अक्सर आती हैं। हर ऐसी घटना के बाद गम जताया जाता है और मुआवजे का एलान होता है। एक-दो दिन सोशल मीडिया पर शोक संदेश तैरते हैं। धीरे-धीरे इन मजदूरों की मौत की असली वजह बेरोजगारी और पलायन को भुला दिया जाता है। कुछ दिनों बाद फिर ऐसी ही घटना होती है और फिर शोक और मुआवजे का सिलसिला शुरू हो जाता है। आखिर क्षेत्र के भोलेभाले आदिवासी रोजी-रोटी की खातिर परदेश में कब तक मरते रहेंगे? क्या यही इनकी नियति बन गई है.?
सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी पलायन पर विराम नहीं लग पा रहा है। यही वजह है कि आए दिन आदिवासी अंचल झाबुआ जिले से ग्रामीण आदिवासी अपने घर से पलायन कर जाते है और दूसरे राज्य में मजदूरी के दौरान अपनी जान गंवा देते है। जूनापानी गांव के 3 युवा बेरोजगार भी अपने परिजनों के साथ काम की तलाश में पलायन को राजस्थान निकले थे। यहां उन्हें सिवरेज सफाई का काम मिला था, वह कहते है न कि मजबूरी इंसान से कुछ भी करवा सकती है, ठीक वैसे ही बेचारे भोलेभाले आदिवासी इस कार्य को कर रहे थे, लेकिन उन्हें पता नही था कि यह काम उनकी जिंदगी का आखरी काम होगा।
विधायक बोले: 15 सालो में भाजपा सरकार पलायन रोकने में नाकामयाब:
विधायक वालसिंह मेड़ा ने झाबुआ Live से चर्चा में बताया नौजवान सदस्यों का जाना परिवार में अत्यंत पीड़ादायक होता है। ईश्वर से प्रार्थना है कि मृतक की आत्मा को श्रीचरणों में स्थान दें। तीनों युवकों के परिजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है। दुःख की इस घड़ी में ईश्वर परिवार को संबल प्रदान करें। उन्होंने आगे बताया प्रदेश में बीते 15 सालों से भाजपा की सरकार है और इन 15 सालों में पलायन का ग्राफ घटने की बजाय और बड़ गया है। हमारे जिले के भोलेभाले आदिवासी अपने परिवार को पालने की मजबूरी में नालियों की सफाई तक का काम कर रहे है। स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन नहीं होने तथा पलायन पर रोक लगाने में राज्य सरकार के विफल होने से परिवार के भरण-पोषण के लिए के लिए दूसरे राज्यों में जोखिम भरे उद्योग में काम करने को स्थानीय मजदूर विवश हो रहे हैं। पलायन रोकने में भाजपा सरकार फेल साबित हुई है, जिसका दंश जिले के आदिवासी भुगत रहे है। भाजपा सरकार के पास इसका कोई जवाब नही हैं।

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