सरकारी संख्या के साथ महज औपचारिकता बनकर रह गया झाबुआ उत्सव

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नवनीत त्रिवेदी@झाबुआ

सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने विगत दिनों घोषणा करते हुए कि आदेश भी दिए थे कि हर संभाग – हर जिले – हर – विकासखंड और हर ग्राम का जन्मदिन मनाया जाए, इसे  उत्सव जिसे मनाया जाए ताकि परंपरा जीवित रहे, इसी आदेश के तारतम्य में जिला प्रशासन में भी योजना बनाते हुए जिले में शुरू हो रहे भगोरिया उत्सव के एक रोज पूर्व झाबुआ उत्सव मनाने का फैसला लिया, वैसे तो झाबुआ उत्सव में झाबुआ जिले के सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को सहभगिता करनी थी, मगर यह उत्सव सरकारी संख्या के साथ औपचारिकता बन रह गया, उत्सव के प्रारंभ से अंत तक कई सारे रोचक किस्से हुए – कहीं नोकझोंक हुई तो कहीं विवाद की स्थिति भी बनी देखिए इस खास खबर में –

1 – झाबुआ जिले की पारंपरिक पोशाक जिसे बंडी ( जनजाति कलाकृति रचित पोशाक ) को लेकर सुबह जिला मुख्यालय के विश्राम गृह में उस समय असमंजस की स्थिति निर्मित हो गई जब सभी जिलाधिकारियों एवं कुछ जनप्रतिनिधियों को यह बंडी दी गई एवं बाकी को राजवाड़ा पर देंगे कहकर टाल दिया गया, दबी जुबान में कुछ ग्रामीण जनप्रतिनिधियों ने ये आरोप लगाया कि हमें यह कहकर बुलाया गया था कि आप की पोशाक – खानपान एवं सारी व्यवस्था प्रशासन करेगा, मगर यह वादा भी ढाक के तीन पात साबित हुआ..

 2 – झाबुआ उत्सव को लेकर विगत कई दिनों से जो तैयारियां चल रही थी उसे देखते हुए कयास लगाए जा रहे थे की उत्सव में चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन निकलने वाले विशाल चल समारोह जैसी भारी भीड़ उमड़ेगी, पूरे शहर में पैर रखने तक की भी जगह नहीं होगी, लेकिन झाबुआ उत्सव के तय समय के 1 घंटे बाद तक भी राजवाड़े पर कुछेक सरकारी अधिकारी, उनके अधीनस्थ एवं एक संगठन पदाधिकारी मय परिवार के साथ दिखाई दे रहे थे, शहरी एवं ग्रामीण जनता का कार्यक्रम से दूरी बनाना भी विचारणीय है….!!

3 – कार्यक्रम का पूरी तरह से प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा किया गया बहिष्कार भी सुबह से ही लोगों की जुबान पर है, वैसे शहरी हो या ग्रामीण, सभी कार्यक्रम को झाबुआ का मिडिया पूर्ण रूप से कवरेज देता रहा है लेकिन किसी भी मीडिया द्वारा कार्यक्रम का किया गया बहिष्कार बहुत सारे प्रश्नों को एक साथ जन्म दे रहा है।

4 -कल के कार्यक्रम में क्षेत्रीय सांसद गुमान सिंह डामोर के अनुपस्थिति की भी चहुंओर चर्चा चलती रही, नाम न छापने की शर्त पर सांसद जी के एक करीबी ने बताया कि साहब तो रतलाम दिशा की बैठक लेने गए हैं, लेकिन कल ही दिशा की बैठक लेने का कारण यह भी था की झाबुआ उत्सव के निमंत्रण पत्र में या  उत्सव के लिए लगाए गए फ्लेक्स वोटिंग में सांसद जी के प्रोटोकॉल का ध्यान नहीं रखा गया, उनका कहीं नाम नहीं छपवाया गया इस बात से सांसद जी भी खासे नाराज है।

5 – झाबुआ उत्सव की रैली के पश्चात जब रैली उत्कृष्ट विद्यालय के खेल मैदान पर पहुंची तब प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के लिए एक अजीब स्थिति तब पैदा हुई जब मंच से भाजपा अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कलसिंह भाबर को मंचासीन होने के लिए आमंत्रित किया गया,  लेकिन वे मंच के सामने की ओर दर्शक दीर्घा में ही बैठे रहे, बताया जाता है कि झाबुआ उत्सव को लेकर हुई योजना बैठक में कलसिंह भाभर  को ना ही  आमंत्रित किया गया था , ना कोई सूचना दी गई थी.. मंच से कई बार नाम पुकारे जाने के बाद भी जब भाभर  मंच पर नहीं पहुंचे तो पहले भाजपा झाबुआ के 1 जिला महामंत्री उन्हें लेने गए, वे तब भी नहीं माने तो भाजपा जिलाध्यक्ष स्वयं उन्हें लेने गए फिर भाबर मंच पर आए और कुछ देर बाद वापस से मंच से नीचे उतर गए, इस सारे घटनाक्रम से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाभर भी जिला प्रशासन के इस रवैये से खासा नाराज है।

6 – वैसे तो यह कार्यक्रम पूर्णतः शासकीय था, जिला प्रशासन के आला अधिकारी कार्यक्रम के  संरक्षक थे, कार्यक्रम में होने वाला सारा खर्चा भी प्रशासन स्वयं व्यय कर रहा था, एक डिप्टी कलेक्टर को पूरे कार्यक्रम का नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया था.. लेकिन चौराहों की चर्चा में यह बात भी सामने आई है कि उत्सव के नाम पर व्यापारियों से भी जम कर उगाही की गई है।

7 – कार्यक्रम शुरू होने के समय जिले के प्रभारी मंत्री का झाबुआ आगमन हुआ, वैसे तो उन्हें कार्यक्रम के अंत तक रहना  था, लेकिन  मंत्री जी को किसी ने कान में यह कह दिया था कि कुछ महिलाएं मंत्री जी से मिलना चाहती है, कोई शिकायत करने चाहती है,

इसलिए मंत्री जी ने आधे कार्यक्रम में शामिल हो, एक परिचित के यहां शुभाशीष  देकर वापस भोपाल की ओर रवानगी कर ली, खैर यह मंत्री जी की दूरदर्शिता ही है कि सही समय पर सही जगह रवाना होकर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से बता दिया कि मुझे किसी भी विवाद में नहीं पड़ना है।

8 – उत्सव का अंत होते-होते एक नए विवाद में फिर से जन्म ले लिया जब एक कवि मंच से कविता पाठ कर रहे थे और भाजपा के एक पूर्व मुखिया ने कवि पर कोई टिप्पणी की, टिप्पणी के बाद उत्सव समिति के अध्यक्ष, एक शासकीय समाजसेवी एवं एक युवक ने पूर्व जिलाध्यक्ष को चुप कराते हुए ऐसे शब्द कह डाले जिससे वह नेता भी बिफर गए,  नोकझोंक से शुरू हुआ यह वाकया बढ़ते – बढ़ते व्यक्तिगत आरोपों, राजनीतिक टिप्पणियों और झूमा – झटकी तक पहुंच गया था, अंत में झाबुआ एसडीएम श्री गर्ग और जिला भाजपा के अध्यक्ष ने बीच-बचाव कर मामले को शांत कराया, खेर मामला शांत कराने में भी निवर्तमान  और वर्तमान मुखिया  में जमकर बहस चली..

वैसे यह उत्सव जिले के स्वघोषित मालिकों द्वारा तय किया गया था, ना तो  उत्सव मनाए जाने को लेकर इतिहासकारों से चर्चा की गई और ना ही इतिहास के पन्नों को खंगाला गया, इसलिए यह सरकारी उत्सव कुल मिलाकर असर – कारी नहीं हो पाया, देखते हैं कवि सम्मेलन से शुरू हुई है नोकझोंक कहां तक पहुंचती है। 

ऐसा सुना है कि जनप्रतिनिधियों एवं मीडिया की कार्यक्रम से दूरी और इस तरह के विवाद से साहेब बेहद नाराज है, देखते हैं यह नाराजी किस पर निकलती है.. तब तक बने रहिए झाबुआ अलीराजपुर लाइव के साथ..

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