दर्पण में नहीं आत्म-दर्पण में करे निरीक्षण : प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी

May

झाबुआ लाइव के लिए खवासा से अर्पित चोपड़ा की रिपोर्ट-
संसारी व्यक्ति हो या साधक आत्मा सभी को अपने अपने दोषों, भूलों व स्खलनाओं का आत्म निरीक्षण करना चाहिए। आत्म निरीक्षण से भूलों को सुधारने का मौका मिलता है पर स्वयं के दोषों और भूलों को देखना बहुत कठिन है। उक्त विचार प्रसिद्ध जैन संत आचार्य उमेशमुनि (अणु) के शिष्य बुद्धपुत्र प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी ने यहां स्थानक भवन में चल रही धर्मसभा के तीसरे दिन व्यक्त किए। प्रवर्तकश्री ने कहा कि मनुष्य स्वयं का दर्पण में तो निरीक्षण करता रहता है पर उसे दर्पण में नहीं आत्म-दर्पण में निरीक्षण करने की आवश्यकता है। आज दोषी व्यक्ति दोष पर मुलम्मा चढ़ाने के लिए उसमें गुणों का आरोपण करता है। ऐसे में यदि कोई साधक आत्मा अपने दोषों पर पर्दा डालने का प्रयास करती है तो वह साधक, साधक नहीं रहता है वरन वह विराधक बन जाता है। अपनी गलती को देखना मुश्किल है क्योंकि गलती, गलती लगती है नहीं है। मनुष्य मात्र को अपनी गलती देखने का अभ्यास करना चाहिए। क्योंकि आत्म निरीक्षण से आत्मा में जागृति आती है और जाग्रत व्यक्ति पापों से पीछे हटता है। धर्मसभा में हेमंतमुनिजी ने कहा कि वचन योग एक अद्भूत शक्ति है। विचार करे कि हम वचन शक्ति का सदुपयोग कर रहे है या दुरुपयोग, वचन से किसी को ठेस पहुचाना भी एक प्रकार की हिंसा हैए यह जैन शास्त्रों में भाव हिंसा में गर्भित की गई है।