डोल ग्यारस पर निकली भव्य शोभायात्रा

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झाबुआ लाइव के लिए  कल्याणपुरा से गगन पंचाल की रिपोर्ट-

डोल ग्यारस पर आज नगर में चारभुजा नाथ मन्दिर श्री कृष्णा मन्दिर व श्री अम्बे माता मन्दिर से तीन डोल प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी निकाली गई जो राजवाड़ा परिसर पर एकत्रित होती है जहाँ पर परम्परा अनुसार राजपुत परिवार की महिलाएं भगवान की डोल की आगवानी कर पुजन करती है आरती होती है और भगवान की डोल पुरे नगर के भृमण पर बैंडबाजे ढोल ताशो व बड़ी संख्या में नाच, गान -भजन कीर्तन करते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ नगर की गुलाबी नदी पर पहुँचती है जहाँ पर भगवान एवं डोल को स्नान करवाकर महाआरती कर प्रसादी वितरण किया जाता है फिर वहा से अपने अपने मंदिरों पर पहुँचकर भगवान को झुले में झुलाया जाता है । हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी, जयझूलनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है।
इस तिथि को व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं।

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