जैविक खेती का सहारा लेकर संपन्नता की ओर बढ़ रहे क्षेत्र के किसान

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झाबुआ- जिला पिछड़ा जिला की गिनती में आता है। यकीनन कई मायनें में है। आज इस जिलें में पर्याप्त खाद्यान्न नहीं है, रोजगार के अवसर नहीं के बराबर, कुपोषण की समस्या अति गंभीर है, पशुपालन कम हो गया है। पीने के पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। जबकि बारिश तो प्रतिवर्ष होकर क्षेत्र को हरियाली बना देती है। शिक्षा-स्वास्थ्य की गुणवता पर प्रश्नचिन्ह लगा है। कुल मिलाकर रोजमर्रा का जीवन कई रूपों में समस्या से जुड़ गया है। आजीविका के साधन सीमित होते चले जा रहे हंै। आज की आवश्यकता है संपन्नता। संपन्नता को यहां का ग्रामीणजन ‘भरयू घेर’ से जानते है। प्रगति संस्थाा अपने एक छोटे से प्रयास से सक्षमता परियोजना द्वारा इस परिलक्ष्य को बैठकों और प्रदर्शनी के माध्यम से आमजन तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है। इसी तारतम्य संस्था ने मेघनगर व काकनवानी भगोरिया हाट में क्षेत्र की विलुप्त हो चुकी खेती अर्थात पुराने छोटे बीजों की खेती वापसी की है। ये छोटे बीज क्षेत्र की धरोहर है। भगोरिया हाट में किसानों ने बड़ी संख्या में प्रदर्शनी तथा इन बीजों की मांग भी रखी है। संस्था ने इन किसानों की सूची भी बनाई है। शिक्षित किसान पढक़र जानकारी प्राप्त कर ले, इसके लिए उन्हें नि:शुल्क एक छोटी पुस्तिका भी वितरित की। प्रदर्शनी में रालो, कोदरा, बावटो, गजरो, बाजरी, हामली, भादली, सीणो, कूरी, बटटी, अलसी आदि के बीज लोगों को देखने हेतु रखे थे। उपरोक्त सभी बीजों की खेती पूरी तरह से जैविक विधि से की जाती है। यह अनाज में भरपूर मात्रा में प्रौटीन युक्त होते हैं। इन अनाजों में कुपोषण मिटाने की भरपूर शक्ति है। अगर किसान इस बात को गंभीरता से ले तो जिले में कुपोषण की समस्या समाप्त हो सकती है। इस बारे में किसान प्रकाश खडिया का कहना है कि उसने इस साल अपने खेत में कोदो लगाया था। वही बसु गांव रोजिया का कहना है कि इस वर्ष कोदो, कूरी, ज्वार, रालो तथा खाटी भिंडी, अपने खेत में लगाई। कोद्रा व कूरी को छोडक़र बाकी मिश्रित फसल के रूप में बोई। रोजिया के ही पेमा ने इस वर्ष अपने खेत में अलसी पहली बार लगाई। प्रदर्शनी का अवलोकन थान्दला के तहसीलदार, काकनवानी, टीआई जनपद अध्यक्ष, जिला जनपद सदस्य, राजेश डामोर, कई सरपंच व तडवी कोटवाल, व हमारों किसान मौजूद थे। काकनवानी बीज समिति के सदस्य किसान दल महिला व पुरुष दोनों व प्रगति संस्था द्वारा प्रदर्शनी लगाई गई थी। थान्दला सक्षम कार्यक्षेत्र के किसानों 15 किसानों ने वर्तमान रबी मौसम में सुजाता किस्म के गेहूं फसल की बोवनी की। इस गेहूं को बीज के रूप में कई किसानों के बीच जबर्दस्त मांग है। सुजाता गेहूं की गुणवत्ता को सभी जानते हैं इसकी फसल 5 फीट ऊंची होती है और जैविक खाद द्वारा भरपूर फसल ली जाती है। इसी के साथ सुजाता गेहूं सूखने के बाद बीज खिरते नहीं है। इसका लंबा तना होने के कारण अधिक मात्रा में भूसा प्राप्त किया जाता है। इसी के साथ यह कम सिंचाई वाली फसल है। सुजाता गेहूं एक बीघा जमीन में बोने पर जैविक खाद से करीब 9 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होता है।