“मुख्यमंत्रीजी” इन सवालों के कौन देगा जवाब, पेटलावद में मारे गए 79 लोग आज भी कुछ कह रहे हैं!!!

- Advertisement -

सलमान शैख़@ झाबुआ Live
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके झाबुआ के छोटे से शहर पेटलावद में गत छः वर्ष पहले यानि 12 सितम्बर 2015 को हुए एक धमाके ने 79 लोगों की जान ले ली। अब बात 79 लोगों की मौत की करें या उस विस्फोटक की, जो बेहद सामान्य तरीके से इस क्रूर हादसे की वजह बना।
पेटलवाद हादसे के बाद सरकार और प्रशासन की लापरवाही पर यू तो ऐसे की सवाल खड़े हुए है, लेकिन मुख्यमंत्रीजी हमारे ये कुछ ही सवाल ही है जिनका आज हादसे को 6 साल होने आ गए है जवाब कही से कोई देता नजर नही आ रहा है। पेटलावद का हर नागरिक कहना चाह रहा है कि सरकार अगर जिंदा हो, तो नजर आओ। आसन से नीचे उतरो और देखो तो सही, आपके नुमाइंदे आपकी इच्छाशक्ति को कैसे पलीता लगा रहे हैं।
मौत का सौदा इतनी आसानी से!
झाबुआ के पेटलावद के एक रेस्तरां में जिस विस्फोट ने 79 लोगों की जान ली उसका जिम्मेदार था रेस्तरां के पास स्थित एक गोदाम में गैरकानूनी ढंग से जिलेटिन रॉड्स रखने वाला राजेंद्र कासवा। कासवा इस घटना के बाद सरकार द्वारा तीसरी बार मे मृत घोषित हो गया, लेकिन कासवा की कहानी हमारे सिस्टम की खामियों की ऐसी जीती-जागती गवाह है जोकि बेहद डरावनी और शर्मनाक है।
मौत के मुखर मतलब निकालती ये दुकानें चल क्यों रही थीं? कौन थे जो इन्हें संरक्षण दे रहे थे? कौन है जो नियमों को मुंह चिढ़ाते हुए इन्हें चलवाता है? और, जब हादसा हो जाता है तो चुपके से जांच करने वालों में शामिल हो जाता है। सवाल तो और भी हो सकते हैं, बात हर बार भरोसे से भरे पुख्ता जवाबों पर आकर अटक जाती है।
सवाल यह भी है कि राजेंद्र कांसवा ने 7 साल से दुकान किराए पर ले रखी थी। इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक दुकान पर था। मगर प्रशासन या पुलिस के अधिकारियों को इसकी खबर तक नहीं लगी।डिटोनेटर के लिए कांसवा के पास लायसेंस था। मगर रिहायशी इलाके में इतने बड़े पैमाने पर विस्फोटक रखने की इजाजत कहां से मिली बताया जाता है कि जिले में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से दुकानों पर डिटोनेटर रखा जाता था। अवैध रूप से होने वाला कारोबार करोड़ों रुपए का आंका गया था। मगर इसको लेकर प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं होती।
सरकार ने क्यों कासवा पर लगाम नहीं कसी?
राजेंद्र कासवा पिछले तीन दशकों से विस्फोटकों की अवैध तस्करी करता रहा है और इस मामले में 1981 में उसे गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि बावजूद इसके उसे पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) से लाइसेंस मिल गया था. उसे यह लाइसेंस माइनिंग बिजनेस के लिए मिला हुआ था, लेकिन उसने कथित तौर पर जिलेटिन रॉड्स को एक गोदाम में स्टोर कर रखा था। स्थानीय नागरिको का कहना है कि कासवा के बारे में पुलिस से कई बार शिकायत किए जाने के बावजूद उसके राजनीतिक रसूख की वजह से उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आज भी सो रहीं सरकारें और सुरक्षा एजेंसिया-
6 वर्ष पहले हुए इस धमाके ने राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया था, कि क्यों वे सालों से जारी इन विस्फोटकों की अवैध तस्करी को रोक पाने में नाकाम रही, इतना ही नहीं ये विस्फोटक आसानी से स्मगलर्स, किसानों और यहां तक की आतंकी संगठनों के हाथों तक पहुंचते रहे और सरकार और पुलिस सोई रही। यहां के किसान एक जिलेटिन छड़ को अवैध रूप से 100 से 150 रुपये में बेचते हैं। जरा सोचिए, किसी भी आतंकवादी संगठन के लिए ये विस्फोटक हासिल करना कितना आसान है और यह देश के लिए यह कितना घातक हो सकता है इसकी कल्पना से ही रूह कांप जाती है।
अमेरिका से सीखने की जरूरत
9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका पर कोई भी बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ है। इसकी वजह वहां की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी और आतंकवाद से निपटने का फूलप्रूफ इंतजाम है, लेकिन इसके उलट भारत की सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां कभी भी देश को आतंकी हमलों से पूरी तरह महफूज नहीं बना पाईं। यह घटना आतंकी घटनाओं के प्रति सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के शर्मनाक रवैये को उजागर करती है। इस लापरवाही की कीमत देश के लिए किस कदर भयावह साबित हो सकती है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। पेटलावद में 79 लोगों की मौत आज भी देश की सरकारों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जो उनसे यह कह रही है कि अगर अब भी देश की सुरक्षा के फूलप्रूफ इंतजाम नहीं किए गए तो देश को पेटलावद जैसी और दुखद घटनाओं के लिए तैयार रहना होगा।