झाबुआ लाइव के लिए बामनिया से लोकेंद्र चाणोदिया की रिपार्ट-
हम हमारे जीवन में यह विचार नहीं कर रहे है कि जो हमारे साथ आने वाला है उसके लिए हम क्या कर रहे है? हम अपने धंधे परिवार और दुनिया के बारे में विचार कर रहे है, हम यह विचार नहीं कर रहे कि हमारी आत्मा का क्या हो रहा है? हम आत्मा की शुद्धि के लिए धर्मार्जन नही कर रहे है। हमे आत्मा का ज्ञान हो जाना चाहिए। मै कौन हूं ? मै कहाॅ से आया हूं ? और मुझे कहां जाना है? उक्त उद्गार महावीर स्वामी मंदिर में एक महत्ती धर्म सभा में मुनि श्री दर्षन रक्षित विजय जी मसा ने दिए। मुनि श्री ने बताया कि मोहनी कर्म संसार की चीजो में ममत्व पैदा करता है। मकान मेरा, पत्नि मेरी, पैसा मेरा, परिवार मेरा, लेकिन मंदिर किसका, भगवान किसका तो कहते है संघ का। हम आज तक अपने आप को उस भगवान को समर्पित ही नहीं कर पाए। क्यांेकि मोहनीकर्म हमे संसार में भटका रहा है। सभी प्राणियो में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी आत्मा को जहा चाहे वहा ले जा सकता है। मनुष्य जन्म हमें जंक्षन जैसा मिला है, मानव जन्म हमें भोग के लिए नही योग के लिए मिला है। जो भोग में रहता है उसका जीवन व्यर्थ है। योग करने में जीवन समर्थ बनता है। हमें संसार भाव से पार होना है तो नित पूजा, प्रतिक्रमण और धर्म ध्यान करना चाहिए। आज हम खुद ही अपने आप को भटकाने में लगे है। हम अपने बच्चो को संस्कार नही दे पा रहे है। हम उसे अच्छा डाॅक्टर, इंजीनियर या अच्छी पढ़ाई जरूर करवाना चाहते है किंतु उसे संस्कार देना नहीं चाहते। उक्त प्रवचन आचार्य अक्षयभद्र सूरी मसा आदि ठाणा 4 के सानिध्य में हुए। बामनिया मे वर्तमान में साध्वि दर्शिाता रक्ष श्री जी आदिठाणा 10 भी विराजीत है। साधु साध्वी मंडल आगामी 7 दिनो तक बामनिया ही विराजित है।
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