पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट- हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी रंगों और पानी की बौछारों के बीच सिर्वी समाज ने सप्तमी पर जमकर होली खेली। होली खेलने का क्रम देर शाम तक चलता रहा। यह होली सिर्वी समाज बहुल चमठा चौक में खेली गई। सिर्वी मोहल्ला, पुराना बस स्टैंड आदि हिस्सों से रंगारंग गैर ढ़ोल डीजे की धुन पर निकाली गई, जोकि नगर के प्रमुख मार्गो से होती हुई वापस चमठे पर पंहुची। सप्तमी पर सुबह से ही सिर्वी समाज के लोगों द्वारा एक चौक में बड़े-बड़े लोहे के कड़ाव रख दिए गए, जिसमें पानी भरकर लाल रंग डाला गया। दोपहर होते-होते सैकड़ों महिला-पुरुष एकत्रित हो गए। लोहे के कड़ावों के एक सिरे पर महिलाएं हाथों में बैंत लेकर खड़ी थीं और दूसरी ओर पुरुष गैर के रूप में फाग गाते हुए सामने से आ रहे थे। जैसे ही पुरुषों ने महिलाओं पर हाथों से कड़ाव में भरा रंग उछाला महिलाओं ने उन पर बैंतों से वार करना शुरू कर दिया। महिलाओं के वार रोकने के लिए पुरुषों के पास अंग्रेजी के टी आकार का हत्था होता है।
सिर्वी समाज अनुसार समय बदल गया, पश्चिमी संस्कृति की ओर युवाओं का रूझान बढ़ा पर समाज में अब भी यह परंपरा जीवित है। यह पर्व मध्यप्रदेश के साथ राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में भी सिर्वी समाज बहुल ईलाकोंमें मनाया जाता हैं। कुक्षी, धुलेट, बड़वानी, मनावर, पेटलावद, सिंघाना, बदनावर, रूपगढ़ व टिमायची आदि स्थानों पर इस पर्व की धूमधाम देखी जा सकती है।
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