आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और देश-प्रदेश समेत अंतर्राष्ट्रीय मीडिया जगत में ऐसी महिलाओं को सम्मान और जगह मिलेगी जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में खुद को बेहतर साबित किया है। लेकिन अधिकांश सम्मानित होने वाली महिलाएं ऐसे खानदानों और परिवेश से आती हैं जहां इस तरह की उपलब्धियां पाना शायद कोई बड़ी बात नहीं है। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आइये हम आपको मिलवाते हैं आदिवासी अंचल झाबुआ की उस बीपीएल कार्डधारी एवं सिलिकोसिस से पीडि़त जाम्बुड़ीबाई से जिसने अपने जीवन जीवटता के साथ समाज को समर्पित कर दिया। पेश है इस महिला के इस नेक काम को सलाम करती अब्दुल वली खान की यह स्पेशल रिपोर्ट।
झाबुआ जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर पर रुनखेड़ा गांव में रहने वाली 45 वर्षीय जाम्बुड़ीबाई खुद सिलिकोसिस से पीडि़त हैं। इतना ही नहीं उनके परिवार के आठ सदस्य भी इस बीमारी से ग्रसित है। यह पता होने के बावजूद भी कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और इसका अंत दुखद है उसके बावजूद भी जाम्बुड़ीबाई अपने गांव एवं उसके आसपास के एक दर्जन गांवों जिनमें पिपलिया, करड़ावद, गेहलर बड़ी, गेहलर छोटी, मसुरिया, बलवन, अमरपुरा, गणेशपुरा आदि शामिल है उन गांवों के फलियों में पहुंचती है और सिलिकोसिस पीडि़तों की अपने तरीके से मदद करती हैं। कभी वे दवाइयां उपलब्ध करवाने में सहयोग करती हैं तो कभी पीडि़तों और उनके परिवारों का नाम शासन स्तर पर सिलिकोसिस पीडि़त के रूप में पंजीबद्ध करवाने की मुहिम जुटती है। उनकी कोशिश होती है कि सिलिकोसिस पीडि़त की यदि इस इलाके में मौत हो तो इसका पोस्टमार्टम करवाया जाए, ताकि उसकी रिपोर्ट के आधार पर भविष्य में पीडि़त परिवार को आजीविका के लिए कोई मुआवजा मिल सके।
कई तरह की यात्राएं:
सिलिकोसिस पीडि़त जाम्बुड़ीबाई सिलिकोसिस पीडि़तों की लड़ाई लडऩे में पीडि़त नहीं है वे दिल्ली में जंतर-मंतर में धरना कर चुकी है, तो साथ ही भोपाल तक भी प्रदर्शन में पीछे नहीं रही। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से लेकर हर उस प्लेटफार्म पर जाम्बुड़ीबाई दिखाई दी, जहां पर सिलिकोसिस पीडि़तों को न्याय मिल सकता था। जाम्बुड़ीबाई की लड़ाई इस उम्मीद से जारी है कि उनके रहते वे सिलिकोसिस पीडि़तों को मुआवजा दिलवा सके और कम से कम उनकी मौत के पहले होने वाली तकलीफों को कम कर सके।
बीपीएल परिवार से हैं जाम्बुड़ीबाई
जाम्बुड़ीबाई रुनखेड़ा में बीपीएल परिवार से ताल्लुक रखती है और उनका परिवार आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है। सिलिकोसिस पीडि़तों की लड़ाई लडऩे के साथ-साथ जाम्बुड़ीबाई अपने पारिवारिक मोर्चे पर जीवटता दिखाती है। वे अपने पशुओं के साथ-साथ रसोई को भी संभालती है और फिर खेतों में भी काम कर लेती हैं। साथ-ही साथ परिवार के सिलिकोसिस पीडि़त सदस्यों का भी वे खुद ख्याल रखती हैं।
सरकारी रवैये से नाखुश है जाम्बुड़ीबाई
रुनखेड़ा की जाम्बुड़ीबाई सिलिकोसिस पीडि़तों कोलेकर गुजरात सरकार और मध्यप्रदेश सरकार की नीति और नीयत से काफी खफा है। उनके अनुसार गुजरात की फैक्ट्रियों में काम करने के दौरान मजदूर मौत के शिकार हुए हैं या अपनी मौत का इंतजार सिलिकोसिस बीमारी पाकर कर रहे हैं। लेकिन गुजरात सरकार ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि इस बात का कोई सबूत नहींहै कि मजदूरों ने गुजरात की फैक्ट्रियों में काम किया है, जबकि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग गुजरात सरकार को मृतक के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपए देने के निर्देश दे चुका है। वहीं मध्यप्रदेश सरकार को पीडि़त परिवारों के लिए पुनर्वास पैकेज देने की बात कहीं जा चुकी है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है। सिलिकोसिस पीडि़त अभी भी अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं और उनके परिजन मुआवजे के इंतजार में बैठे हैं। न तो परिजनों के लिए रोजगार मूलक कोई योजना मध्यप्रदेश शासन दे पाया है और न ही सही ढंग से बीपीएल का लाभ मिल पा रहा है।