सत्यसाई समिति ने मनाया क्रिसमस व दत्त जयंती पर्व

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झाबुआ। ईसा मसीह के बारे बहुत कुछ कहा और लिखा गया है किन्तु उनके अवतरण एवं जीवन को लेकर हमे विचार करने पर एक अलग ही पक्ष का ज्ञान होता है। भारत के प्राचीन ऋषियों ने भक्ति के चार चरण बताये है पहला सालोक्य, दूसरा सामीप्य, तीसरा सायुज्य एव चोथा सारूप्य है। सालोक्य का अर्थ होता है जैसे कोई व्यक्ति किसी राजा के राज्य में एक नागरिक की तरह रहता है, वैसे ही व्यक्ति ईश्वर के राज्य में एक नागरिक की तरह रहता है। ईसा मसीह बचपन से पवित्र विचारों और आचरण वाले थे इसलिए कहा जा सकता है कि वे बचपन से ईश्वर के राज्य में थे। सामीप्य में जब कोई व्यक्ति राजा का सेवक बन जाये तो कहा जासकता है कि वह आम नागरकि के मुकाबले राजा के अधिक निकट हो गया है। ईसा मसीह ने यह स्टेज प्राप्त करली जब उन्होने कहा कि मैं ईश्वर का दूत हूं। तीसरा चरण सायुज्य याने जब व्यक्ति राजा का पुत्र या रिश्तेदार बन जाता है तो वह सेवक के मुकाबले राजा से अधिक निकट हो जाता है। ईसा मसीह ने यह स्थिति प्राप्त कर ली और उन्होने स्वयं ही कहा कि मैं ईश्वर का पुत्र हूं तथा अन्तिम चरण सारूप्य अर्थात जब व्यक्तिज स्वयं राजा या राजा के समान हो जाए। जब ईसा से पुछा गया कि यदि आप ईश्वर के पुत्र. है तो हमें अपने पिता के दर्शन कराओं तो ईसा मसीह ने कहा यदि तुमने मुझे पहचान लिया तो तुमने मेरे पिता को भी पहचान लिया। यदि तुमने मुझे देख लिया ता मेरे पिता को भी देख लिया क्योंकि मैं और मेरे पिता एक है। उक्त उदगार सत्यसाई सेवा समिति द्वारा 25 दिसम्बर को क्रिसमस एवं दत्तात्रय जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सौभाग्यसिंह चोहान ने व्यक्त किए। चोहान ने अत्रि ऋषि एवं माता अनुसुईया के कथासार का सुनाते हुए कहा कि मां के समान कोई और शक्तिशाली नही हो सकता। ब्रह्मा विष्णु एवं महेश मां अनुसुईया की परीक्षा के लिए उन्हे निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने की मांग करने पर उनके द्वारा अपने सतीबल से उन्हे नन्हे बालक बनाकर उनकी अभिलाषा को पूरा किया ओर उनके दर्शन के पश्चात वे दत्तात्रय स्वरूप में विश्व पूजित हुए। इस अवसर पर सर्वधर्म नाम संकीर्तन का आयोजन विवेकानंद कालोनी स्थित सत्यधाम पर किया गया। ओम नागर, शरद पंतोजी, नगीनलाल पंवार, राजेन्द्र सोनी, शिवकुमारी सोनी कृष्णा चोहान, शुभद्रा पंतोजी आदि ने आकर्षक कर्णप्रिय भजनों की प्रस्तुति दी। महामंगल आरती एवं प्रसादी वितरण के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ ।