संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की नहीं हुई सुनवाई खून से पत्र लिखकर राष्ट्रपति से की इच्छा मृत्यु की मांग

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झाबुआ लाइव से दिनेश वर्मा की रिपोर्ट
2 1दस वर्षों से संविदा पर कार्यरत स्वास्थ्यकर्मी पिछले 11 दिनों से अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर है। 11 दिन बीत जाने के बाद भी सरकार ने उनकी मांगों पर अभी तक विचार नहीं किया है जिसके चलते हताश संविदा कर्मचारी खून से पत्र लिखकर राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे है।
शासन की स्वास्थ्य योजनाओं को दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्र तक पहुंचाने में विगत 10 वर्षों से महत्ती भूमिका अदा करने वाले संविदा स्वास्थ्यकर्मी पिछले 11 दिनों से हड़ताल पर रहकर अपनी 9 सूत्री मांग सरकार से कर रहे है। इन 11 दिनों में जहां इन कर्मचारियों द्वारा हड़ताल पर रहते हुए अपने काम को तो बंद किया हुआ है।
वहीं शासन का ध्यान आकर्षण करवाने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए जा रहे है जिसमें मुख्यमंत्री का सद्बुद्धि यज्ञ, भैंस के आगे बीन बजाना, मुख्यमंत्री का जन्मदिन मनाना एवं अपने आपको संविदा के बंधन से मुक्ति दिलवाए देने जैसे आयोजन किए है। लेकिन सरकार अभी भी इन संविदा कर्मियों की मांगों की ओर बिलकुल बेखबर है। इसके चलते संविदाकर्मी अब हताश हो चुके है और संविदा के इस बंधन से आजादी चाहते है और इसके लिए उन्होंने नेता सुभाषचंद्र बोस का वह तरीका अपनाया जिसमें उन्होंने खून देकर आजादी मांगी थी।
नियमित करो या इच्छा मृत्यु दो
गुरूवार को जिला चिकित्सालय में आंदोलन कर रहे संविदा स्वास्थ्य कर्मियों ने अपने खून देकर उस खून से महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक खत लिखा और इस खत में संविदा कर्मियों ने महामहिम से मांग की है कि शीघ्र ही उनकी समस्या को समझते हुए उन्हें नियमित किया जाए और अगर सरकार उन्हें नियमित नहीं करती है तो उन्हें इच्छा मृत्यु की अनुमती दी जाए। इस अवसर पर सभी हताश संविदा कर्मियों का कहना है कि वे 10 वर्षों से जिस प्रकार शासन की स्वास्थ्य सुविधाओं को ग्रामीणों तक पहुंचा रहे है और उन्हें लाभ दिला रहे है उसके एवज में सरकार से उनकी मांग है कि उनकी नियमितिकरण की मांग पूरी की जाए।
यह सेवाएं हो रही है प्रभावित
जिला चिकित्सालय समेत पूरे जिले में प्रबंधन से लेकर टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की जांच, डिलेवरी, जननी सुरक्षा, एनआरसी जैसी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कार्य कर रहे संविदाकर्मी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर है जिससे उपरोक्त सभी स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही है। चिकित्सालय में प्रबंधन सेवाएं ठप है तो ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण भी अनियमित हो चुका है जिसके चलते शासन की योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। शासन इन संविदा कर्मियों की मांगों को नजर अंदाज कर रही है तो वहीं संविदाकर्मी भी अपनी मांगों को लेकर अड़े है। अगर शीघ्र ही इन कर्मचारियों एवं शासन के बीच सुलह नहीं होती है या हड़ताल समाप्त नहीं होती है तो निश्चित ही इसका खामियाजा जिले की ग्रामीण एवं गरीब जनता को भुगतना पड़ सकता है और जो सरकार टीकाकरण एवं जननी सुरक्षा को लेकर अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते है वह उपलब्धियां हड़ताल के चलते खटाई में पड़ सकती है।