मामला फर्जी एफआईआर का, आखिर अपने ही बुने चक्रव्यूह में फंस गई ‘कल्याणपुरा पुलिस’

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गगन पंचाल, कल्याणपुरा
कहावत है जो दूसरों के लिए गड्ढे खोदता है एक दिन खुद उसी मे गिरता है। आम्र्स एक्ट की फर्जी कारवाई करते हुए आरोप है कि कल्याणपुरा पुलिस ने नानसिंह नामक शख्स को जबरन एक मामूली विवाद मे 10 मार्च को अवैध हिरासत में लिया ओर 11 मार्च को उससे एक तलवार बरामद होना बताकर उस पर 25 आम्र्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और कथित हिरासत के दौरान उससे मारपीट की गई और उसका मोबाइल तक तोड़ दिया गया ओर 12 तारीख को उसका मेडिकल कल्याणपुरा के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर करवाया गया।परेशान नानसिंह अपने बच्चो की चिंता मे वहा से डरकर भाग गया क्योंकि उससे 10 हजार मांगे जा रहे थे। वरना ऐसी धारा लगाने की धमकी दी जा रही थी जिससे नानसिंह को 4 से 6 महीने जेल मे रहने का डर हो गया था।

इस तरह अपने ही बुने चक्रव्यूह में उलझती गई पुलिस

कल्याणपुरा पुलिस इस मामले मे अपने ही चक्रव्यूह में एक के बाद एक गलती कर उलझती गई। सबसे पहले 11 मार्च को ऑनलाइन एफआईआर हुई जिसमे नानसिंह के खिलाफ अपराध क्रमांक 87/19 दर्ज की गई ओर उसे गिरफ्तार बताया गया व डीएसआर के जरिये एसपी ओर शाशन को अपराध होने ओर आरोपी नानसिंह के गिरफ्तार होने की सूचना दी गई। 12 मार्च को मेडिकल करवाया गया जिसकी रिपोर्ट 12 मार्च को ही कल्याणपुरा पुलिस को सौंंप दी गई। मगर आरोपी नानसिंह डर के कारण पुलिस हिरासत से फरार हो चुका था लेकिन इसके बावजूद कल्याणपुरा पुलिस ने ना तो अपने विभाग को फरार होने की सूचना दी ओर ना ही फरार होने के आरोप में एफआईआर दर्ज की। उलटा रोजनामचे मे आरोपी को कोर्ट मे पेश करने ओर वापसी की सुचना विधिवत सान्हा नंबर के साथ दर्ज की गई। 16 मार्च को पुलिस ने नानसिंह की पत्नी को उठाया ओर उसे प्रताडि़त किया तब आकर नानसिंह हाजिर हुआ ण्ण् कल्याणपुरा पुलिस ने 16 मार्च को ही नानसिंह को कोर्ट मे पेश कर दिया ओर 12 मार्च वाले मेडिकल रिपोर्ट को डायरी मे 16 मार्च की मेडिकल रिपोर्ट कहकर पेश किया गया जहा नानसिंह को जमानत मिल गई, यहां कल्याणपुरा पुलिस फिर फंस गई। क्योंकि एफआईआर ओर नानसिंह की गिरफ्तारी 11 मार्च की और मेडिकल 12 मार्च का तो फिर 16 मार्च को मेडिकल कैसे? बडा सवाल यह भी कि कोर्ट में एफआईआर पेश की गई थी या नहीं? अगर नही तो क्यों नही पेश की गई? क्या 12 मार्च के मेडिकल को 16 मार्च किया गया? अगर हां तो यह एक ओर हेराफेरी है?

चालान कैसे करे इस उलझन में फंसी कल्याणपुरा पुलिस

अब तक झाबुआ की अदालत मे दो पेशी लग चुकी है ओर पुलिस चालान नही कर पायी है। अब अगले महीने की तारीख लगी है चालान कैसे पेश करे। यह कल्याणपुरा पुलिस को नही सुझ रहा है। अगर चालान पेश होगा तो सवाल खड़ा होगा कि 11 की एफआईआर तो आरोपी 16 को कैसे पेश किया गया? इसी उधेड़बुन मे पुलिस उलझी है बताते है कि टीआई कल्याणपुरा कभी डीपीओ खींची के दरबार मे हाजिरी लगा रही है तो कभी सत्ता पक्ष के नेताओ से मिलकर बचाने की फरियाद लगा रही है। मगर फिलहाल रास्ता बचने का नही मिला है निजी वकीलों से भी पुलिस काउंसिलिंग कर रही है लेकिन फिलहाल रास्ता नहीं है एसपी ने एएसपी विजय डावर को जांच दी है बताते है जांच पुरी हो चुकी है मगर कारवाई फिलहाल नही हुई है।

हो सकता है निलंबन और विभागीय जांच…

पुलिस सूत्र बताते है कि जांच मे कल्याणपुरा पुलिस की ऊपर वर्णित तमाम गलतियां सिद्ध हुई है। अब गेंद एसपी के पाले मे हैं। जानकार बताते है कि पूरा मामला ही गंभीर आपराधिक लापरवाही का है जो लगातार की गई। इसलिए इस मामले मे जिम्मेदारों का निलंबन हो सकता है ओर विभागीय जांच भी होगी।

इस कोशिश की चर्चा विभाग में

इस पूरे मामले मे पुलिस विभाग मे एक चर्चा जोरो पर है वह यह कि टीआई गीता सोलंकी अपने रसुख का इस्तेमाल कर बचना चाहती है व मामला अधीनस्थ स्टाफ पर ढोलने की कोशिश में है, लेकिन दस्तावेजी सबूत ओर आपराधिक मामलो के दर्ज होने से लेकर न्यायालय में पेश होने के टीआई की भूमिका महत्वपूर्ण होती है साथ ही वायरलेस संदेश बिना टीआई के संज्ञान से जारी नही होते? और पूरा स्टाफ इस मामले मे टीआई की भूमिका सिद्ध करने वाले बयान एएसपी को दे चुका है।

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