मानव सेवा से अधिक साधना-आराधना नही होती है: श्री एम

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श्री एम की पत्रकार वार्ता मे मोजूद मीडियाकर्मी
श्री एम की पत्रकार वार्ता मे मोजूद मीडियाकर्मी

झाबुआ। मानव सेवा से अधिक साधना-आराधना नही होती है। मानव एकता के बारे में वेदो में भी कहा गया है। भारतीय संस्कृति का मूलाधार ही लोका समस्ता सुखिनः भवन्तु पर आधारित है। इतना सब कुछ यहां होने के बाद भी कभी कभार लोग भूल जाते है और हिंसा का मार्ग अपना लेते हैं । यदि मानव हिंसा के बारे में सोचना ही छोड दे, अपने पास-पड़ोस के ही लोगों के दुख दर्दो को अपना दुख मानने लगे तो हिंसा की भावना कभी पैदा हो ही नही सकती। उक्त बात गुरुवार को पत्रकार वार्ता में आशा यात्रा के प्रणेता संत श्री एम ने कहीं। श्री एम द्वारा स्थापित सत्संग फाउंडेशन द्वारा मानव एकता तानव एकता मिशन द्वारा शांति और सोहार्द्रता के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली जा रही 7500 किलो मीटर लंबी पद यात्रा जो 500 दिनो मे पूर्ण होगी तथा देश के 11 राज्यो से गुजरेगी के माध्यम से सभी क्षेत्रो के लोगो को एक साथ जोड़ने का संदेश प्रदान कर रही है।

व्यक्ति चलता फिर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर

श्री एम पत्रकारों को संबोधित करते हुए
श्री एम पत्रकारों को संबोधित करते हुए

श्री एम ने इस अवसर पर अपने बारे में कहा कि कबीर की तरह ही वे भी मुस्लिम परिवार मे जन्मे है। 19 सालो तक हिमालय में जाकर साधना की और गुरू के निर्देश पर ही मानव एकता के इस कार्य को अंगीकार किया है। उन्होने कहा कि परमात्मा सर्वव्यापी है और उसका एक अंश प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान है। प्रत्येक व्यक्ति चलता फिर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर या उपासना स्थल है। उन्होने बताया कि पदयात्रा करके वे लोगो को मानवीय एकता के संदेश के माध्यम से जोडने का काम कर रहे हैं। उन्होने कहा कि इस यात्रा का नाम आशा यात्रा इसीलिए रखा गया है कि उन्हे पूरा भरोसा एवं आशा है कि उसका उद्देश्य कुछ हद तक जरूर असर दिखाएगा।
उन्होने बताया कि उनकी यात्रा के द्वारा मानव एकता के बीज इस यात्रा के दौरान बोए जा रहे हैजिसका अगसर आगामी 10-20 सालों में एक विराट वृक्ष के रूप मे दिखाई जरूर देगा। उन्होने कहा कि लोका समस्ता सुखिना भवन्तु ही हमारा ध्येय है। उन्होने शांति का अर्थ बताते हुए कहा कि हर धर्म में इस संदेश को प्रचारित किया गया है। मुस्लिम सलाम मे जो सलाम किया जाता है उसका भी अर्थ शांति ही है।
श्री एम ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि शहरों मे तो लोग प्रेक्टिकल होते है, किन्तु गांवों में माहोल अलग ही है । आपसी सद्भाव प्रेम की भावना आज भी दिखाई देती है। उन्होने रालेगांव सीटी के हेवटे बाजार के सरपंच पोपटराव का जिक्र करते हुए कहा कि इस ग्राम मे सभी हिंदू परिवार के लोग हे केवल दो ही परिवार मुस्लिम है वहां आपसी प्रेम एवं सदभाव एवं साम्प्रदायिक सदभावना का अनुकरणीय उदाहरण देखने को मिला है वहां दो मुस्लिम परिवार होने के बाद भी वहां आलिया की मजार पर पूरे गांव की ओर से चादर चढ़ाई जाती है और सभी मिलजुल कर रहते है। उन्होने कहा कि आज भी देख की 70 प्रतिशत आबादी शांति चाहती है। कालेज एवं स्कूलों के छात्रों को इस भावना को अंगीकार कराना चाहिए। बच्चे भी यही चाहते है। उन्होने कहा कि इस आदिवासी इलाके में भी उन्हे अच्छा रिस्पांस मिला है और उनकी तमन्ना है कि यहां सर्वधर्म का केन्द्र बनना चाहिए ताकि सभी धर्मो के लोग मिल कर यहां चर्चा कर सके और इस मिशन को आगे बढाते रहे।
स्ंत श्री एम ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा के संदेश को घर घर तक पहुंचाने के लिये ही उनका भी मिशन काम कर रहा है। इस कार्य को पब्लिक प्रापर्टी बनाना चाहिए। उन्होने एक सवाल के जवाब मे बताया कि हमे वोट बेंक की राजनीति से कुछ थोडा आगे होना चाहिये और वे जहां भी गये वहां उन्होने इस बारे में संवाद स्थापित किया है। नेतागणों को भारत के बारे में सोचना चाहिए। उन्होने अपनी यात्रा के अनुभव सुनाते हुए कहा कि आज तक उन्हे एक भी ऐसा व्यक्ति नही मिला जो कट्टरपंथी हो। ऐसे लोगों से भी मिला और उनमे भी नकारात्मक रवैया नही दिखा है वे लोग भी हमसे खुल कर बात करते है और संवाद स्थापित करते हैं।
श्री एम ने स्थानीय भाषा का क्षेत्र मे प्रभाव होने के बारे में उत्तर देते हुए कहा कि वे जिस राज्य में जाते हे वहां की बोली बोलते है जिससे उनके संदेश के बारे में लोगो मे आत्मीयता बढ़ती है। विदेश यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि विदेशो मे भी उनके मिशन के बारे मे सकारात्मक दिखाई दी है। उन्होने आव्हान किया कि सभी लोग हमारे साथ जुड़े और मानव एकता के इस अभियान में सहयोग-सहकार प्रदान करें ।
फोटो सलग्न-

श्री एम पत्रकारों को संबोधित करते हुए

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