भगवान को स्वर्ण छत्र चढ़ाये, हुए अनेक आयोजन
झाबुआ लाइव के लिए राणापुर से मयंक गोयल की रिपोर्ट-
नगर विगत तीन माह से दि. जैन समाज में भक्ति की पावन धारा बह रही हे। आचार्य श्री विध्यासागर जी महाराज से शिष्य पायसागर जी महाराज अपने अनमोल ज्ञान की रोशनी से पूरे नगर को रोशन कर रहे हे। वही इसी कड़ी में गुरुवार को अग्रवाल दि. जैन मंदिर में मूलनायक 1008 श्री आदिनाथ भगवान, शांतिनाथ भगवान, वर्तमान शासन नायक महावीर स्वामी प्रतिमा जी ऊपर स्वर्ण छत्र चढ़ाए गए। जिसके लिए समाज कई दिनो से तेयारियाँ चल रही थी। सुबह सभी समाजजन ढोल धमाकों के साथ दि. जैन बड़ा मंदिर में गुरुदेव मुनिश्री पायसागर जी, महानसागर जी, एवं क्षुललक सम्मार्ग सागर जी महाराज को अग्रवाल मंदिर जी लाया गया। उसके बाद मंत्रोचर के साथ भगवान का अभिषेक, शांतिधारा की गई। शांतिविधान की पूजन दाहोद से पधारे तरुण एंड पार्टी ने संगीतमय पूजा करवाई। जिसपर कोई अपने आप को थिरकने से नहीं रोक पाया। इस अवसर पर समाज के वरिष्ठ मोहनलाल अग्रवाल, माँगीलाल अग्रवाल, समाजनाउ आध्यक्ष पवन अग्रवाल, जयंतीलाल अग्रवाल, हँसमुखलाल कोड़ीया, नटवर लाल थनिया, अशोक अग्रवाल मुकेश अग्रवाल, राजेश अग्रवाल सभी समजना उपस्थित थे।
शांतिधारा के बाद वो घड़ी आइ जिसका सभी इंतज़ार का रहे थे। भगवान पर छत्र चढ़ाने के लिए बोली लेने एक से एक लोगों की होड़ लगी थी। वही भगवान आदिनाथ भगवान। को छत्र चढ़ाने की बोली स्वर्गीय सुशीला देवी की स्मृति में के श्रीमल मियाचंद अग्रवाल परिवार ने ली। शांतिनाथ भगवान की मोहनलाल हंसराज अग्रवाल, एवं भगवान महावीर की अग्रवाल महिला मंडल द्वारा ली गई। मंगल कलश रखने की बोली मदन लाल खेमचंद जी अग्रवाल परिवार, पाण्डुशीला विराजमान करने की बोली स्वर्गीय शुशील देवी रमेशचंद अग्रवाल परिवार, वही गंदोदक पात्र स्थापित करने की रमेशचन्द्र केश्रीमल अग्रवाल परिवार द्वारा बोली गई। लाभारथी परिवार द्वारा भगवान प्रतिमा ऊपर छत्र पूरे मंत्रोचार के साथ मुनि श्री पायसागर जी महाराज द्वारा चढ़वाए गए।
जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता हे
मुनि पायसागर जी महाराज ने प्रवचन में बताया कि जीवन में आपको कुछ पाना हे तो कुछ छोड़ना हो पड़ेगा। धर्म के लिए हमें कुछ ना कुछ करते रहना चाहिए। धर्म की रक्षा भी हमें ही करनी हे। जीवन निर्वाहन के नहीं हे जीवन निर्वाण के लिए जियों। जिसके लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। आप यहाँ मंदिर बेठे हो आपकी वीतरागता में प्रति कुछ भावना बनी तो आप तहा पर हो। वितरागता प्रति राग रहा तो निश्चित आप वितरागी बन्ने आपको कोई नहीं रोक सकता हे।