पेयजल के लिए हजारों ग्रामीण कर रहे जद्दोजहद, प्रशासन नहीं ले रहा सुध

May

झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
20160210_144234मेघनगर तहसील की ग्राम पंचायत छायन वर्तमान में भीषण जल संकट से दो-चार हो रही है। लगभग 2 हजार से अधिक आबादी वाला गांव पेयजल से वंचित है। ग्राम की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि ग्राम के चारों ओर वन विभाग की भूमि तथा एक छोटी सी नदी है, जहां बारिश के दौरान ही पानी आता है, बारिश खत्म पानी भी खत्म। इस ग्राम की छोटी सी नदी में कभी एक डेम बना हुआ था जो लगभग दो वर्ष पूर्व टूट गया है, लेकिन शासन या प्रशासन के किसी नुमाइंदे ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। ग्राम के लोगो का कहना है कि हमने कई बार प्रशासन को इस संबंध में निवेदन किया, लेकिन कोई हमारी सुध लेने को तैयार नहींहै। ऐसे में थक हारकर इस गांव के लोगों ने जो कि शत-प्रतिशत आबादी आदिवासी है, आदिवासी विकास परिषद के जिलाध्यक्ष जसवंतसिंह भाबर के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे। आदिवासी विकास परिषद के जिलाध्यक्ष भाबर, अजा के जिलाध्यक्ष जितेन्द्र धामन उक्त ग्राम में ग्रामीणों की समस्या से रूबरू होने पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने अपनी समस्या इन नेताओं को बताई एवं समाधान भी बताए।
हैंडपंप-कुओं का वाटर लेवल गिरा
गांव के लोगों ने बताया कि हमारे यहां की जमीन काली एवं उपजाऊ है, लेकिन पानी के अभाव में यहां पर खेती करना मुश्किल है। साथ ही यदि बारिश ज्यादा हो जाए तो बोवनी करना मुश्किल हो जाता है एवं बारिश कम होने की स्थिति में एक फसल लेना भी मुश्किल होता है। ग्रामीणों को बारिश में तो हैंडपंप तथा कुओं से पेयजल मिल जाता है, परंतु लगभग छह माह बाद हैंडपंप व कुए दम तोडऩे लगते है। वर्तमान में ग्राम में लगभग सूखा पड़ा है। ऐसी स्थित में यहां के लोगो को लगभग तीन किमी दूर से पेयजल लाना पड़ रहा है एवं पशुओं को भी पानी पिलाने हेतु तीन किमी दूर स्थित जल स्त्रोत तक ले जाना पड़ रहा है। फसल नही हो पानी की स्थिति में इस गांव के अधिकांश लोग आठ महीना पलायन पर होते है।
गांव के लोगो ने बताया कि यदि इस गांव की नदी में जो डेम टूट गया है, वह पुन: बनवा दिया जाता है तो समस्या का काफी हद तक समाधान संभव है। साथ ही इस गांव से लगी वन विभाग की भूमि ग्वाली नाका पर जहां लगभग 40 वर्ष पूर्व एक डेम प्रस्तावित था, जिसका काम भी लगभग एक महीना चालु रहा, यदि पुन: इसी स्थान पर डेम बनाया जाए तो ग्रामीणों को पानी और पानी से रोजगार आदि मिल जाएग। ग्वाली नाका भूमि पर कुछेक पेड़ तो है, परंतु वह सब सूखे है। इस जंगल में कई जंगली जानवर भी विचरण करते है, जो पीने के पानी के अभाव के चलते कभी कभी गांव में घूस जाते है, जिसके कारण ग्रामीणों दहशत का माहौल है। यदि इस भूमि पर डेम बने तब वन्य प्राणियों के लिये पीने के पानी की व्यवस्था होगी, वहीं आसपास का जंगल विकसित होगा। चूंकि यह स्थान ऊंचाई वाला है, इसलिए यदि यहां तालाब अगर भरा होगा तो इस गांव के समस्त कुए व हैंडपंप जल देेन की स्थिति में आ जाएंगे एवं इस गांव की काली उपजाऊ जमीन जो भी एक फसल भी सफलतापूर्वक नही दे रही है, दो फसले उन्नत होने लगेंगी। आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष जसवंत भाबर ने इस गांव के लगभग 400 लोगों के साथ बैठक कर उन्हे आश्वस्त किया कि इस गांव की समस्या बहुत गंभीर है, जिसे वे निश्चित रूप से प्रषासन को अवगत करवाकर इसका समाधान करेंगे व कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी इस समस्या से अवगत करवाएंगे। यदि फिर भी प्रशासन समस्या का समाधान नहीं करता है तो कांगे्रस के बैनर तले चरणबद्ध आंदोलन भी किया जाएगा।