निजी स्कूल संचालकों-पुस्तक विक्रेताओं की जुगलबंदी से पालक हालाकान

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
स्कूल प्रबंधन और पुस्तक प्रकाशक की वर्षो से चली आ रही सांठगांठ लगातार रंग दिखा रही है। पालकों के चेहरे का रंग उड़ गया। निजी स्कूल प्रबंधन सीबीएसई के नाम पर जमकर फीस की उगाही पालकों से कर रहे हैं। वहीं पाठ्यक्रमों, यूनिफार्म का ठेका निजी पुस्तक विक्रेताओं को सौंपकर जमकर कमीशन की उगाही में मशगुल है, लेकिन इन सबके बीच जिम्मेदार शिक्षा विभाग के अफसर, प्रशासनिक अधिकारी यह सब जानते हुए भी आंख मूंद कर बैठे है। बच्चों की परीक्षा समाप्त होने के बाद नए सिलेबस के लिए पालक परेशान होते दिख रहे है। प्रतिवर्ष बच्चों के सिलेबस में एक दो नये चेप्टर जोडक़र पुरानी किताबों के रद्दी की टोकरी में डालने को मजबूर पालक नई किताबों के लिए पुस्तक विक्रेताओं के यहां चक्कर लगा रहे है।
दावो की सच्चाई कुछ और-
चाहे स्कूल प्रबंधन एक दुकान की जगह खूले बाजार में पुस्तके उपलब्ध मिलने के दावे करे किन्तु सच्चाई यही है कि पुस्तके मिलेगी वही जहां स्कूल प्रबंधन ने तय कर रखा है। पालको से मोटी फीस वसूलने के बाद भी पुस्तक विक्रताओं से सांठगांठ कर अपने लाभ के लिए पालकों को परेशान करने से भी बाज नही आते है।
आधा अधूरा सिलेबस
हालात यह है कि इन पुस्तक विक्रेताओ की यहां पूरा सिलेबस उपलब्ध नही है। जबकी पुस्तक विक्रेताओं से जनवरी में ही नई पुस्तके फायनल कराने के लिए इन स्कूल संचालको से नया सिलेबस तय करा लेते है। इन स्कूल संचालको की हठधर्मिता नही कहे तो क्या कहे?
हवा में उड़ा देते हैं आदेश-
सरकारी नियमों को धता बता कर स्कूलों के प्रबंधन यह दिखाने से भी नही चूकते है कि उन्हें किसी का भय नही है। हैरत की बात तो यह है कि इन स्कूलों पर नियंत्रण करने वाले जिम्मेदार आंख मूंद कर बैठे है। केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले इन स्कूलों को आदेश दिए हुए हैं कि बच्चों को एनसीआरटी सिलेबस सें ही पढ़ाया जाए, जबकि एक या दो बुक ही एनसीआरटी शामिल की जाती है। विचारणीय यह कि एनसीआरटी की उक्त पुस्तके नाममात्र मूल्य पर उपलब्ध रहती है। स्कूल प्रबंधकों व पुस्तक प्रकाशक कि मिलीभगत वाले इस व्यापार में लाखों रुपये के कमीशन का खेल होता है। इनके स्वार्थ वाली शिक्षा व्यवस्था में पालक ठगा जा रहा है। अब देखना होगा कि कब जिम्मेदार अपनी आंख खोलकर पालको को ठगने से बचाएंगे।

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