ओर जिंदगी हार गया कुप्रथा ओर गरीबी से जंग लडता हुआ ” किसान “

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चंद्रभानसिंह भदोरिया  ( लेखक टीवी पत्रकार है ओर यह लेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है ) 

नाम -जहुं ..उम्र-52 वर्ष ..प्रोफाइल- BPL किसान ..मोतः जमीन गिरवी रखने ओर कुप्रथा से ना जुझ पाना ।

जी हा यही प्रोफाइल है उस आदिवासी किसान की जिसने आदिवासी समाज मे दहेज दापा की कुप्रथा से हार कर जिंदगी जीने का असफल प्रयास किया लेकिन आज तय दिनांक तक 4 लाख 60 हजार रुपये देने के उसके प्रयास अपनी जमीन गिरवी रखकर भी असफल रहे तो उसने इस जालिम दुनिया ओर बब॔र समाज से मुक्त होने की ठान ली ओर कीटनाशक पीकर हमेशा के लिए मोत की नींद सो गया । जहुं की यह कहानी पुलिस रोजनामचो मे पुलिस की अपनी पुलिसिया भाषा मे दर्ज होकर भुला दी जायेगी लेकिन जहुं की मोत खुद उसके समाज ओर उन राजनेताओं से सवाल भी पूछती है कि आखिर वे कैसै खेती को लाभ का धंधा होने का दावा करते है ? 52 साल का किसान जो जन्म से लेकर मोत तक बीपीएल ही रहा …उसके पास इतना रुपया भी नहीं था कि वह खुद को जिंदा रख सके अपने समाज की एक कुप्रथा से जुझ कर !

खेर जहुं की मोत तो सवाल खड़े करती है लेकिन जवाब हमेशा की तरह नहीं मिलेंगे ना तलाशें जायेंगे । कुल मिलाकर जहुं की छोटी से कहानी यह है कि जहुं के तीन पुत्र है उसका मंझले पुत्र बलवंत को गांव की ही एक लडकी से इश्क हो गया ओर वह 22 मई 2017 को उसे लेकर भाग गया । मामला पुलिस ओर भील पंचायत तक पहुंचा .. चुंकि लड़की बालिग थी इसलिए पुलिस ने कुछ नहीं किया लेकिन भील पंचायत ने तोड किया 4 लाख 60 हजार रुपये मे ओर तारीख नियत कर दी 26 जून यानी आज ..ओर तारीख के एक पखवाड़े पहले लड़की वालों ने जहुं को धमकाना शुरु कर दिया था कि समय पर रुपये नहीं दिए तो ठीक नहीं होगा..जहुं ने अपनी जमीन गिरवी रख कुछ रुपयों का इंतजाम किया मगर 4 लाख 60 रुपये जुटाने की जंग वह जमीन गिरवी रखकर भी हार गया ओर नतीजा जिंदगी से अलविदा होने का उसने फैसला किया । यह कहने को एक आपराधिक घटनाक्रम है लेकिन एक रिपोर्टर होने के नाते इस दर्द भरी विडंबना को जो महसूस किया इसलिए इस क्राइम इवेट को कथात्मक प्रस्तुत किया है ।

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