जीवन में सबके दो जन्म होते है, पहला जन्म माता पिता के द्वारा दिया जाता है तो व्यक्ति का दूसरा जन्म आत्मा के स्तर पर गुरू द्वारा दिया जाता है। इस पुनर्जन्म को पाने के बाद परमात्मा की अनुभूति होती है। गुरू जीवन आवश्यक हो जाता है। दाम्पत्य परमात्मा का प्रसाद होता है। पारिवारिक जीवन में गुरू का होना उसे दिव्यता प्रदान करता है। गुरू हमारे और परमात्मा के बीच सेतु का काम करते हैं। ईश्वर तक सीधे छलांग नहीं लगाई जा सकती है। हम एक ऐसा झरोखा चाहिए देव दर्शन के लिए और वह होता है हमारा गुरू। सच्चे गुरू और गृहस्थ में यह फर्क है कि गुरू संन्यासी, मुनि के रूप में समझा लेता है कि सब कुछ परमात्मा के भरोसे छोड़ दो। यह बात पण्डित विजयशंकर मेहता ने संकटमोचन हनुमान मंदिर सेवा समिति द्वारा हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित ’एक शाम सद्गुरू के नाम’ व्याख्यान के दौरान कहीं। नगर में सातवीं बार हो रहे इस कार्यक्रम का शुभारंभ हनुमानजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर समिति के जीवन पडियार, गजेन्द्रसिंह चन्द्रावत, महेश नागर, सुधीर कुश्वाह सहित बड़ी संख्या में समिति सदस्यों के अलावा गौरीशंकर दुबे, यशवंत भंडारी, प्रेम अदीबसिंह पंवार, एडीजे सहित अतिथियों ने हनुमान जयंती समारोह के आमंत्रण पत्र का विमाचेन किया। समिति की सीमा चैहान ने हनुमान टेकरी सेवा समिति का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए गजेन्द्रसिंह चंद्रावत ने विजयशंकर मेहता के अभी तक समिति द्वारा किए गए सफल बौद्धिक कार्यक्रमों को वर्णन प्रस्तुत किया। पण्डित मेहता ने खचाखच भरे पांडाल को गुरू महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि विज्ञान के इस युग में गुरू बनाने के पूर्व हर बात तर्क, समझ, एवं सीख के द्वारा तय की जाती है कि गुरू किसकों बनाया जाए किन्तु जीवन में कई बार ऐसा लगता है कि जो दिखता है वो वास्तव में होता नहीं है, और जो वास्तव में होता है वह दिखता नहीं है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण एवं रूकमणी का दृष्टांत सुनाते हुए बताया कि रूकमणी को भगवान ने पुर नदी पार करने के लिए साधु को सदा उपवासी एवं लौटती समय साधु ने नदी पार करने के लिए श्रीकृष्ण को अखंड ब्रह्मचारी होने की बात कह कर नदी पार होने के चमत्कार का जिक्र करते हुए कहा कि वास्तव में जो होता है वह दिखता नहीं है और जो दिखता है वह होता नहीं।
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