चंद्रशेखर आजाद नगर। बेटी के कन्यादान में गौदान से अच्छा कोई दान नहीं होता। होने वाली बहु का व्यवहार जानना हो तो उसकी बिदाई देखी जाती हैं। पुरूष का चरित्र देखना हो तो उसकी अंतिम बिदाई देखी जाती| बेटी की बिदाई पर मोहल्ले की माता बहने भावुक हो जाये तो समझ लेना की होने वाली बहु सरल,सहज व मिलनसार हैं। जबकि पुरूष की अंतिम बिदाई पर यदि नगर में सन्नाटा छा जाये तो समझ लेना जाने वाला पुरूष उदार चरित्र व मिलनसार था।

 
						 
			