कठ्ठीवाडा, एजेंसीः राज्य सरकार एक तरफ कोशिश और दावा करती है कि प्रदेशवासियों को किसी भी सरकारी सेवा के लिए ज्यादा इंतजार और भटकना नहीं पड़े लेकिन वहीं आदिवासी अंचल अलीराजपुर के कठ्ठीवाडा तहसील के तहत आने वाले 64 गांव के लोगों के लिए किसी की अकाल मौत हो जाने या हादसे में जान गंवाना दोहरा आघात लेकर आता है। पहले तो अपनों की मौत और फिर शव परीक्षण के लिए लंबा और खर्चीला सफर। इस वजह से कम से कम दो हजार रूपए का आर्थिक फटका तो लगता ही है साथ ही अंतिम संस्कार भी कई बार एक दिन तक टल जाता है।
21 सदी की यह कड़वी सच्चाई है कठ्ठीवाडा के 64 गांवों की। यहां शव परीक्षण गृह नही होने के कारण अकाल मौत या दुर्घटना के बाद के बाद अगर किसी कि मौत हो जाती जब उसके परिजनों को शव परीक्षण के लिए जिला चिकित्सालय ले जाने को कहा जाता है।
कठ्ठीवाडा में सामुदायिक अस्पताल होने के बावजूद यहां शव परीक्षण की सुविधा नहीं है। ऐसे मामलों को सीधी जिला अस्पताल भेजा जाता है। ऐसे में पहले ही अपनों की मौत का सदमा और फिर शव को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की मानसिक प्रताडना।
मुश्किल वक्त में परिजनों को बडी मुश्किल से प्रायवेट गाडी का सहारा लेना पडता जिसमें करीब दो हजार रुपए का खर्च अाता है। कई बार जिला अस्पताल में काम का दबाव ज्यादा होने या फिर शव परीक्षण के लिए देरी से पहुंचने पर वापस लौटने में शाम हो जाती है। चुंकि रिवाज के तहत शाम को अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है, जिससे लाश का अन्तिम सस्कार दूसरे दिन होता है।