चंद्रभानसिंह भदोरिया @ चीफ एडिटर
आज नवंबर 2018 के पहले ” गुमानसिंह डामोर ” कोन है यह रतलाम – झाबुआ -अलीराजपुर जिले मे हर कोई नहीं जानता था लेकिन आज महज 180 दिनो यानी 6 महीने मे ही डामोर कैसै अचानक बीजेपी ओर इलाके के गुमान बन गये इसकी बडी दिलचस्प कहानी है पढ़िए हमारी यह स्पेशल रिपोर्ट ।
पेटलावद से अचानक झाबुआ विधानसभा आने की कहानी
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गुमानसिंह डामोर सेवानिवृत्ति के बाद से पेटलावद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की कोशिश मे थे ओर तत्कालीन बीजेपी विधायक पेटलावद निर्मला भूरिया को इसकी भनक लग गयी थी लिहाजा वे रणनीति के साथ गुमानसिंह डामोर की हर मोर्चे पर काट कर रही थी लेकिन डामोर तडवी – पटेल – सरपंचो से लगातार रुबरु हो रहे थे कुल मिलाकर पेटलावद की तैयारी पूरी थी एक बार तो पार्टी ने निर्मला भूरिया का टिकट होल्ड कर दिया था मगर निर्मला भूरिया ने दाहोद सांसद जसवंत सिंह ओर गुजरात के मंत्री बच्चु भाई खाबड की मदद ली ओर डामोर को फिर पार्टी ने अचानक झाबुआ से लड़ने का फरमान सुना दिया । डामोर के लिए झाबुआ विधानसभा बिलकुल नही थी .. उनके नाम का एलान होते ही बीजेपी के झाबुआ विधानसभा के तमाम नेता खिलाफ हो गये ओर कुछ ने तो डामोर के पुतले तक फूंक दिये । मगर डामोर आसानी से हार मानने वाले नही है उन्होंने अपने विश्वसनीय लोगो की टीम बनाई ओर तीसरी लाइन के रुप मे उनसे काम करवाया .. डामोर जानते थे कि बीजेपी के कई नेता उनके खिलाफ कांगेस से हाथ मिला चुके है लेकिन डामोर की रणनीति ऐसी थी कि ऐसे तमाम नेता ओर उनके मंसूबे धरे रह गये ओर डामोर 65 हजार से ज्यादा वोट पाकर जीतने मे कामयाब रहे ।
लोकसभा को लेकर आत्म विश्वास से भरे थे डामोर
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विधायक बनने के बाद गुमानसिंह डामोर उनका अगला लक्ष्य था लोकसभा रतलाम – झाबुआ से सांसद बनना ओर उन्होंने उसी दिशा मे काम करना शुरु कर दिया था ओर संगठन को अपनी इच्छा से अवगत करवा दिया था ओर कुछ दिनो के कयासों के बाद अंततः गुमानसिंह डामोर को लोकसभा का बीजेपी का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया ओर अपनी रणनीति से मोदी लहर पर सवार होकर गुमानसिंह डामोर लोकसभा पहुंच गये । रणनीति के तहत चुनाव प्रचार अभियान के दोरान उन्होंने कांति लाल भूरिया को कभी मच्छर जैसा मसलने वाला बयान दिया वही डाक्टर विक्रांत भूरिया को पप्पू की संज्ञा देना भी उनकी रणनीति थी .. हालांकि चुनाव अभियान के दोरान जिन्ना मामले पर उनकी जुबान भी फिसली लेकिन अगले दिन वे डैमेज कंट्रोल करने मे कामयाब रहे । सैलाना से लेकर अलीराजपुर के ककराना तक उनकी शख्सियत ने आम मतदाताओ को आकर्षित किया ।
इस्तीफे प्रसंग मे भी दिखाई अपनी पकड
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गुमान सिंह डामोर सिर्फ विधानसभा चुनाव ओर लोकसभा चुनाव जीतकर ही लोकप्रिय नही हुऐ बल्कि बडी वजह यह है कि उन्होंने पहले कांतिलाल भूरिया के बेटे को विधानसभा मे हराया ओर फिर लोकसभा मे खुद कांतिलाल भूरिया को मात दी .. स्मरण रहे कि खुद शिवराजसिंह चौहान ओर बीजेपी यह कहती आयी है कि झाबुआ – रतलाम इलाका कांगेस ओर भूरिया का परंपरागत गढ है इसलिऐ कांगेस यहा से जीतती है लेकिन डामोर ने लगातार दो बार इस गढ को 6 महीने के अंतर पर ढहा दिया इसलिऐ प्रदेश ओर नेशनल स्तर पर डामोर को बीजेपी का गुमान मान लिया गया ओर गुमानसिंह डामोर की इच्छा का सम्मान रखते हुऐ उनसे विधानसभा से इस्तीफा करवाया गया । इतना तय है कि अगर गुमानसिंह डामोर की जगह कोई ओर होता तो शायद पार्टी लोकसभा से इस्तीफा दिलवाती ।
यह भी जानिए इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर का सफर
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गुमानसिंह डामोर राजनीति मे आने के पहले मध्यप्रदेश के लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के चीफ इंजीनियर थे यानी विभाग के प्रदेश प्रमूख थे इसके पहले वे कई जिलों मे काय॔पालन यंत्रों ओर सीई भी रहे .. इस दोरान उनके सभी दलो ओर आर एस एस जैसै संगठनों से रिश्ते बनते चले गये । उनकी धम॔ पत्नी सूरज रोकडे डामोर भारतीय प्रशाशनिक सेवा की रिटायड॔ अधिकारी है ओर सचिव स्वास्थ विभाग मध्यप्रदेश शाशन के पद से रिटायड॔ है । खुद डामोर कह चुके है कि उनकी सफलता मे उनकी पत्नी सूरज रोकडे डामोर का महत्वपूर्ण योगदान है ।
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