महाभारत मे हार के बाद दुर्योधन ने ऊंगलियों के इशारे से बताये थे हार के तीन कारण

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झाबुआ / अलीराजपुर लाइव डेस्क की स्पेशल रिपोर्ट ।

eA22Ut6दुर्योधन के बारे में आप कितना जानते है वो आज आपको पता चल जायेगा, अपने पिता धृतराष्ट की ही भांति योग्य होके भी सिंघासन हाथ से निकल जाने के डर से वो शकुनि की बातों में आके खलनायक बन गया था. आज बताते है आपको दुर्योधन के जन्म से लेके मौत तक के अनजाने सारे तथ्य.
दुर्योधन के नाम का अर्थ है दुस्साहसिक योद्धा, कंही कंही उसका नाय सुयोधन भी बताते है लेकिन ये बात कम लोग ही जानते है की दुर्योधन कलियुग का अवतार था. दुर्योधन जब जन्मा था तो उसके मुंह से रोने की आवाज की जगह गधे की आवाज निकली थी जिसका जवाब महल के बहार खड़े गधे ने भी दिया था.।YUx7nDr
इस संकेत पर विदुर ने धृतराष्ट्र से उसे मार देने की सलाह दी थी लेकिन वो नही माना, क्योंकि उसे दानवो की भविष्य वाणी याद थी के भविष्य का राजा अजेय होगा. दुर्योधन की जन्म की कहानी तो हम आपसे पहले ही बता चुके है, कैसे गंधारी के पेट से मांस का टुकड़ा हुआ जो घड़ो में रख कर बच्चो में बदले.
भीम से दुर्योधन खासा नफरत करता था क्योंकि वो बलि होने के कारन कौरव भाइयो को खेल में पीटता था, इसलिए उसने भीम को जहर देके मरने की भी कोशिश की थी. अपने इस द्वेष के कारण वो कृपाचार्य और द्रोणाचार्य से शिक्षा लेके भी बलराम जी से गदा अरु मल्ल की शिक्षा लेने गया और उनके सर्वश्रेष्ठ शिष्य बन गया.
लाक्षागृह में जलने की साजिश, जुए में पांडवो के राज्यों को छीन द्रौपदी के अपमानित करके भी दुर्योधन ने जब पांडवो को वनवास भेज दिया तो वंहा भी उन्हें खूब दौड़ाया. दुर्वासा को पांडवो के पास भेजने का भी उसकी की राय थी. ऐसे में एक बार दुर्योधन चित्रसेन गन्धर्व के हत्थे चढ़ गया ।

ऐसे में युधिष्ठिर ने भीम और अर्जुन से कह के उसे बचाया, तब दुर्योधन ने अर्जुन से एक वर दिया जो की वो उसके जीते कभी भी मांग सकता था. शर्मिंदा होके दुर्योधन मरने के लिए अन्न का त्याग कर दिया था लेकिन तब कर्ण ने उसे अर्जुन की मरने की शपथ लेके बचाया तब तक कर्ण ने मदिरा पान न करने की कसम ली थी.
जब पांडव वनवास में थे तो दुर्योधन कर्ण को लेके दिग्गविजय यात्रा पर निकला था, इसे पूरा कर दुर्योधन ने वैष्णव यज्ञ किया जो की उसे विश्व का राजा बना गया था. भगवान विष्णु के बाद वो ऐसा करने वाला दूसरा व्यक्ति बना, वो दुनिया का सबसे ताकतवर और धनि राजा बन गया यंहा तक की उसने इंद्रासन के लिए भी सोचना शुरू कर दिया था.
शांति वार्ता के प्रयास भी बहुत हुए, यकीन माने की कृष्ण ने दुर्योधन से पांडवो के लिए सिर्फ पांच गांव मांगे थे लेकिन उसने पांच भिस्ता जमीं देने से भी इंकार कर दिया. जब उसने कृष्ण को भी बंदी बनाने का प्रयास किया तो उन्होंने विश्वरूप धर के सब को अँधा कर दिया था और वंहा से निकल गए थे.

युद्ध के दौरना दुर्योधन अपने 99 भाइयो की मौत के बाद भी नही रोया था लेकिन कर्ण की मौत के बाद वो टूट गया और फुट फुट कर बहुत रोया. अपना गुस्सा उसने चेतिकाना को मार के उतारा लेकिन हार दिखने पर वो जाके सरोवर में छुप गया, जब पांडवो ने उसे धुंध लिया तो उसने पांडवो को हस्तिनापुर उपहार स्वरुप देने और वनवास जाने की बात कही थी.
लेकिन युधिष्ठर ने कहा की हस्तिनापुर उसका नही है, और उन्होंने दुर्योधन को ये प्रलोभन दिया की वो किसी भी पांडव से अपने मनचाहे हथियार से लड़े और जीते. जितने पर उसे युद्ध विजेता घोषित किया जायेगा, लेकिन इस पर भी दुर्योधन ने भीम से गदा युद्ध ही स्वीकारा और बुरी तरह घायल हो मारा गया.

मरते हुए दुर्योधन हाथ की तीन अंगुलिया दिखा के कुछ इशारा कर रहा था जो कोई नही पढ़ पा रहा था, अंत में कृष्ण ने उनका अर्थ बताया और वो अंगुली निचे करता है और फिर मर जाता है. वो इशारे थे हस्तिनापुर के बहार किला न बनाना, अगर वो ऐसा करता तो युद्ध टाल सकता था.

दूसरा विदुर को युद्ध करने के लिए राजी न कर पाना, विदुर न होने से शकुनि नीतिकार बना लेकिन वो होते तो कृष्ण से भी अच्छे नीतिकार होते और विजय होती. आखिर इशारा था की अश्वथामा जो की शिव का अवतार था उसे अगर सेनापति बनता तो वो विष्णु अवतार कृष्ण पे भरी पड़ता. ऐसे थी दुर्योधन की कहानी…।