पंचायत चुनाव की शंका- कुशंका के चलते मतदाताओं की बढ़ने लगी है पूछ परख ,कोई चाय तो कोई नाश्ता तो कोई शाम को खिला रहे हैं गराडू जलेबी

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

ग्राम पंचायतों का कार्यकाल बहुत पहले समाप्त हो चुका है ।लेकिन कोरोना के कारण तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा पुराने सरपंचों को ग्राम प्रधान का दर्जा देते हुए आगामी चुनाव तक उनका कार्यकाल आगे बढ़ा दिया जाने से उनके भावी उम्मीदवारों को मायूसी जरूर हुई थी ।मगर महामारी के चलते वे भी मन मसोस कर बैठ गए अब चुनाव की ‘सुरसुरी’ छोड़ी जा रही है इसके कारण चुनाव लड़ने और लड़ाने वालों के कान खड़े होकर उन्होंने मतदाताओं में “पैठ” बनाना प्रारंभ कर दी है जिसकी चर्चा चाय तथा पान की दुकानों पर सुनाई देने लगी है।

जैसा की विदित है कि ग्राम पंचायतों का 5 वर्षों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है तथा चुनाव होने थे इसी बीच कोरोना की महामारी ने दस्तक दे दी इस कारण चुनाव संभव नहीं थे प्रदेश में सत्तासीन हुई तत्कालीन  कमलनाथ सरकार ने पंचायतों में काफी सरपंचों काबिज सरपंचों को ग्राम प्रधान का दर्जा देकर कार्यकाल बढ़ा दिया कोरोना के कारण बढ़े कार्यकाल से भावी उम्मीदवारों में मायूसी छा गई तो कार्यरत वे सरपंच जिसका कार्यकाल समाप्त हो रहा था उनका कार्यकाल बढ़ जाने से खुश नजर आए जो चुनाव की रणनीति बनाकर तैयारी कर रहे थे वे चुप बैठे बैठ गए ।मगर अब समाचारों के माध्यम से आगामी साल जनवरी या फरवरी में चुनाव की सुगबुगाहट आने लगी है जिस कारण चुप बैठे भावी उम्मीदवारों के कान खड़े हो गए तथा विगत तीन-चार दिनों से सक्रियता भी बढ़ती नजर आने लगी है ।एक पान व्यवसाई ने बताया कि उनकी दुकान पर भी चुनावी चर्चा होने लगी है ।भावी उम्मीदवार जब देखते कहीं पर सात-आठ लोग खड़े हैं तो वहां आकर मीठी मीठी बातों के साथ-साथ मीठी मीठी चाय का आर्डर भी चाय वालों को दे देते हैं। कुछ नमकीन तो कुछ जलेबी भी मंगा लेते हैं तो कई शाम को गराडु तथा जलेबी वालों को भी ऑर्डर देकर सामग्री मंगा लेते हैं या स्वयं लेकर आ जाते हैं तथा लोगों को खिलाते हैं पूछने पर हंसकर कह देते हैं ठंड का मौसम चालू हो गया है। खाने पीने की इच्छा थी मगर अकेले खाया पिया नहीं जाता है कुछ दोस्त साथ हो तो अच्छा लगता है ।मगर मतदाता भी चतुर है जहां दो चार होते हैं वहां दो चार और बुला लेते हैं और इस तरह भावी उम्मीदवारों द्वारा की जा रही खातिरदारी का मजा ले रहे हैं।